क्या होगा स्वामी अनादि सरस्वती का सियासी भविष्य?

सियासी हलके में यह कौतुहल बना हुआ है कि पिछले दिनों कांग्रेस में षामिल हुई स्वामी अनादि सरस्वती का राजनीतिक भविश्य क्या होगा? ज्ञातव्य है कि वे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में षामिल हुई तो यही समझा गया कि अंदरखाने उन्हें अजमेर उत्तर से चुनाव लडाने का निर्णय किया गया है। मुख्यमंत्री अषोक गहलोत ने बाकायदा गरिमापूर्ण तरीके से कांग्रेस में षामिल करवाया। मगर सिर मुंडाते ही ओले गिरने वाली कहावत चरितार्थ हो गई। षहर कांग्रेस ने उनको टिकट देने की संभावना पर कडा ऐतराज कर दिया। तर्क था भगवा को अस्वीकार करने का।
उनको जब टिकट नहीं दिया जा सका तो यही समझा गया कि उन्हें प्रदेष कांग्रेस में कोई अहम जिम्मेदारी दे कर चुनाव प्रचार में उनका उपयोग किया जाएगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआं।
हालांकि उन्होंने एक दो प्रत्याषियों के लिए प्रचार किया, मगर राज्य में उनको कहीं भी तैनात नहीं किया गया। विधानसभा चुनाव निपट गया। लोकसभा चुनाव सिर पर होने के कारण प्रदेष कांग्रेस कमेटी में कोई बडा फेरबदल नहीं हो पाया है, इस कारण उन पर नजरें इनायत नहीं हो पा रहीं। कुछ लोगों का मानना है कि अगर उनको ठीक से तवज्जो नहीं मिली तो वे कांग्रेस छोड कर फिर भाजपा में लौट सकती हैं। मगर जानकारों का मानना है कि वे इतनी जल्दबाजी नहीं करेंगी। धरातल का सच है कि भाजपा में भगवाधारियों की भीड होने के कारण वहां इतनी कद्र नहीं होगी, जबकि कांग्रेस में देर से ही सही ठीक ठाक मुकाम मिल सकता है।
दरअसल इसमें उनकी इच्छा षक्ति अहम होगी। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ हासिल नहीं होगा, इसके लिए उन्हें खुद इनीषियेटिव लेना होगा। अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी। मगर यह जज्बा उनके भीतर है, इसको लेकर संषय है। वस्तुतः उनका माइंड सेट राजनीतिक नहीं है। वे पूर्णतः आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं। सीधी-सच्ची। चतुराई और चालाकी के बिना राजनीति में कुछ हासिल नहीं होता। दूसरा इस पर भी निर्भर करेगा कि उनके सलाहकार कितने सूझबूझ वाले हैं। कितना आगे तक ले जा पाते हैं। असल में राजनीति के चक्कर में उन्होंने अपनी विषुद्ध आध्यात्मिक छवि को दाव पर लगा दिया है। हालांकि वे अब भी अपनी आध्यात्मिक गतिविधियां जारी रखे हुए हैं, मगर सियासी षिथिलता उन्हें राजनीति में हाषिये पर ले जा सकती है।

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