*अजमेर : भाजपा गढ़ कायम रखेगी या कांग्रेस छीनेगी*

-भाजपा के भागीरथ चौधरी ने गांवों में पकड़ बनाई है, तो कांग्रेस के रामचंद्र चौधरी की अच्छी पकड़ है
-दोनों दलों के प्रत्याशी खेती-किसानी वाले धरतीपुत्र, अब देखते हैं, मतदाता किसके माथे पर राजतिलक करते हैं

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉अजमेर में जहां भारतीय जनता पार्टी अपने गढ़ को बनाए और बचाए रखने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रही है, वहीं कांग्रेस इस गढ़ में सेंध लगाने के लिए पसीना बहा रही है। वैसे तो किसी समय अजमेर संसदीय क्षेत्र कांग्रेस का ही पक्का और मजबूत गढ़ था, लेकिन समय के थपेड़ों में कांग्रेस का गढ़ भाजपा का बन गया। यहां से भाजपा के रासासिंह रावत पांच बार सांसद रहे। उनके लगातार सांसद चुने जाने की रफ्तार को बीच में एक बार नामी कवयित्री कांग्रेस की कद्दावर नेता प्रभा ठाकुर ने तोड़ा था, किंतु वे करीब 11 माह ही सांसद रहीं, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार गिरने के कारण मध्यावधि चुनाव हो गए थे। इस मध्यावधि चुनाव में रासासिंह रावत फिर से जीत गए थे। वर्ष 2009 से 2014 तक अजमेर से कांग्रेस के कद्दावर नेता सचिन पायलट चुनाव जीतकर केंद्र की कांग्रेस सरकार में मंत्री बने थे, लेकिन वर्ष 2014 के चुनाव में उन्हें भाजपा के सांवरलाल जाट से मात खानी पड़ी थी।

प्रेम आनंदकर
जाट भी केंद्र की भाजपा सरकार में राज्यमंत्री बने, लेकिन ज्यादा समय मंत्री पद पर नहीं रह पाए। केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद राजस्थान की भाजपा सरकार ने उन्हें सांसद रहते हुए राजस्थान किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया था। जाट सांसद रहते हुए दिवंगत हो गए थे, तो अजमेर में हुए उप चुनाव में कांग्रेस के रघु शर्मा ने जाट के बेटे रामस्वरूप लांबा को हराया। वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा ने किशनगढ़ के पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी को मैदान में उतारा, तो कांग्रेस ने नामी उद्योगपति रिजु झुनझुनवाला को प्रत्याशी बनाया, लेकिन चौधरी की किस्मत ने जोर मारा और वे जीत गए। अब फिर लोकसभा चुनाव में भागीरथ चौधरी भाजपा प्रत्याशी बनाए गए हैं, तो कांग्रेस ने नए चेहरे अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरा को मैदान में उतारा है। भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी दोनों ही जाट हैं। अब अजमेर संसदीय क्षेत्र में चुनाव समर का आकलन करते हैं। कांग्रेस का यह गढ़ कांग्रेस की ही तथाकथित कमजोरियों, भीतरघात और बड़े नेताओं की आपसी लड़ाई-फूट के कारण उसके हाथ से फिसला है। भाजपा ने लगातार कड़ी मेहनत करते हुए कांग्रेस के इस गढ़ पर कब्जा जमाया है। अब दोनों में तीखा संघर्ष हो रहा है। कांग्रेस इस कोशिश में है कि जैसे-तैसे उसका यह पुराना गढ़ भाजपा के हाथ से निकलकर वापस कांग्रेस की झोली में आ जाए। जबकि भाजपा इस पर कब्जा बनाए रखने के लिए हर तीर को विफल करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। अजमेर संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, नसीराबाद, किशनगढ़, मसूदा, पुष्कर, केकड़ी और दूदू शामिल हैं। इनमें केकड़ी कुछ माह पहले तक अजमेर जिले का ही उपखंड था, किंतु पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने जो 17 नए जिले बनाए, उनमें केकड़ी को अजमेर से अलग कर नया जिला बना दिया। इसी प्रकार कुछ माह पहले तक जयपुर जिले का उपखंड रहा दूदू भी अब नया जिला बन गया है। करीब डेढ़ दशक पहले तक अजमेर संसदीय क्षेत्र में अजमेर जिले का ही उपखंड और विधानसभा क्षेत्र ब्यावर भी शामिल था, जिसे परिसीमन में अजमेर से हटाकर राजसमंद संसदीय क्षेत्र में शामिल कर दिया गया। उधर दूदू को जयपुर से तोड़कर अजमेर संसदीय क्षेत्र में मिला दिया गया। अब बात करते हैं नवंबर-2023 में हुए विधानसभा चुनाव की। अजमेर संसदीय क्षेत्र के आठ विधानसभा क्षेत्रों में से सात में भाजपा विजयी हुई है। यदि किशनगढ़ में भाजपा ने युवा नेता विकास चौधरा का टिकट काटने की बजाय उन्हें ही मैदान में उतारा होता तो आठों सीटों पर भाजपा का कब्जा होता। भाजपा का टिकट कटने से नाराज विकास चौधरी ने कांग्रेस का दामन थामा और उसके बैनर पर चुनाव जीता। किशनगढ़ में भाजपा प्रत्याशी मौजूदा सांसद भागीरथ चौधरी तीसरे नंबर पर रहे थे। अजमेर संसदीय क्षेत्र से जो सात विधायक चुने गए, उनमें से अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष, दूदू के विधायक प्रेम चंद बैरवा उप मुख्यमंत्री और पुष्कर के विधायक सुरेश सिंह रावत कैबिनेट स्तर के जल संसाधन मंत्री हैं। अब आंकड़ों पर गौर करें, तो अजमेर संसदीय क्षेत्र में 16 लाख से अधिक मतदाता हैं। अव्वल तो जिन सात विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस हारी है, उनमें हार के आंकड़े का अंतर पाटकर जीतने के लिए गिनती शुरू करनी पड़ेगी। जबकि भाजपा जीत के अंतर से आगे गिनती शुरू करेगी। इसी गणित को ध्यान में रखकर दोनों दलों ने चुनावी रणनीति बनाई है। इस रणनीति में दोनों दल कितने कामयाब होते हैं, यह तो आने वाला समय बताएगा। चूंकि भाजपा-कांग्रेस के उम्मीदवार दोनों ही जाट हैं, इसलिए जाट वोटों का बंटवारा होने की पूरी संभावना है। वैसे तो अजमेर संसदीय क्षेत्र में सभी जाति, धर्म, समुदाय, वर्ग और सम्प्रदाय के मतदाता हैं, लेकिन कुछ का झुकाव भाजपा, तो कुछ का झुकाव कांग्रेस की तरफ रहा है। रावत, राजपूत, वैश्य और ब्राह्मण भाजपा के वोट बैंक माने जाते हैं, तो अल्पसंख्यक, एससी-एसटी कांग्रेस के। इनमें भी सेंधमारी चलती रहती है। ओबीसी वर्ग में जातियों में भरमार है, जिनमें से कुछ कांग्रेस तो कुछ भाजपा के पाले में मानी जाती रही हैं। अब थोड़ी चर्चा उम्मीदवारों के बारे में भी कर लें। भाजपा के भागीरथ चौधरी चूंकि सांसद के रूप में एक पारी खेल चुके हैं, किंतु कोई बड़ी उपलब्धि उनके खाते में नहीं है। भागीरथ चौधरी और नागौर की भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुष्कर में आमसभा कर चुके हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का रोड शो कराने की योजना बनाई जा रही है। उधर कांग्रेस प्रत्याशी रामचंद्र चौधरी के लिए अजमेर में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आमसभा कर चुके हैं और अब केंद्रीय नेता राहुल गांधी या प्रियंका गांधी की आमसभा या रोड शो कराने की प्लानिंग है। रामचंद्र चौधरी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। सांसद रहते हुए भागीरथ चौधरी ने गांवों में पकड़ बनाई है, तो अजमेर डेयरी के 35 साल से लगातार अध्यक्ष रहते हुए रामचंद्र चौधरी की भी गांवों में अच्छी पकड़ है। दोनों ही खेती-किसानी वाले धरतीपुत्र हैं। अब देखते हैं, मतदाता किसके माथे पर राजतिलक करते हैं।

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