*स्थानीय स्तर से केंद्रीय स्तर तक सत्ता में भागीदारी का क्या अजमेर को फायदा मिलेगा,क्या विकास के भागीरथ बन सकेंगे चौधरी*
*आज दोपहर को उदयपुर से एक मित्र का फोन आया। बधाई दे रहा था। बोला,तुम्हारे अजमेर के तो अच्छे दिन आ गए। सभी समस्याएं अब चुटकी बजाते ही दूर जाएगी। तुम 72 घंटे में भी पानी नहीं आने के लिए रोते रहते हो,अब हो सकता है रोज आने लग जाए। अधूरे पड़े तुम्हारे शहर के रेलवे पुल आने वाले दो-तीन महीने में पूरे बन जाएंगे।। टूटी-फूटी सड़कें किसी हीरोइन की गाल की तरह समतल और चमकने लगे। किशनगढ़ के सूने पड़े हवाई अड्डे पर हर घंटे में फ्लाइट लैंड और टेक -आफ होने लगे। मैंने उससे पूछा, ऐसा क्या हो गया,जो यह सालों पुरानी समस्याएं तुम्हें चुटकी बजाते ही हल होती नजर आ रही है। तो वो बोला भाजपा की स्थानीय से लेकर दिल्ली तक की सत्ता की राजनीति में अजमेर को कितनी अहमियत मिल रही है और अजमेर की जनता भी भाजपा पर कितनी कुर्बान है।*
*उसकी बात सही भी थी। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में एकीकृत अजमेर की 8 विधानसभा सीटों में से सात पर भाजपा के उम्मीदवार विधायक बने। किशनगढ़ सीट से कांग्रेस के जो प्रत्याशी विकास चौधरी जीते, वो भी मूल रूप से भाजपा के थे और भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर कुछ दिन पहले ही दल बदल कर कांग्रेस में आए थे। उसके बाद अजमेर से पांचवीं बार जीते वासुदेव देवनानी को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया। तीसरी बार पुष्कर से जीते सुरेश रावत को कैबिनेट मंत्री का पद मिला। ओंकारसिंह लखावत को धरोहर प्रोन्नति प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाकर और ओमप्रकाश भडाणा को देवनारायण बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है। अजमेर नगर निगम सहित जिले की अधिकांश नगरपालिकाओं में भाजपा का बोर्ड है। यानि मेयर,सभापति,अध्यक्ष भाजपा के। जिला परिषद में भी उसका बहुमत है और बगावत कर जिला प्रमुख का चुनाव लड़कर जीतने वाली सुशील कंवर पलाड़ा और उनके पति भंवरसिंह पलाड़ा को भी भाजपा ने वापस लिया जा चुका है। अब दूसरी बार सांसद बने भागीरथ चौधरी को केंद्र सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया है यानी नीचे से लेकर ऊपर तक कड़ी से कड़ी ऐसी जुड़ी है कि भाजपा की रेलगाड़ी ही बन गई है। अब जिले का विकास वंदे भारत की रफ्तार जैसी गति से हो सकता है,क्योंकि इंजनों की तो अब कोई कमी नहीं है। जिस स्तर के इंजन की जरूरत है,उपलब्ध है। स्थानीय स्तर पर भी,राज्य स्तर पर भी और केंद्र स्तर पर भी। वैसे,भाजपा के अति उत्साही कार्यकर्ता तो भूपेंद्र यादव को भी अजमेर का ही मानते हैं। इसलिए उन्हें बोनस के रूप में बताते हैं। यादव नरेंद्र मोदी और अमित शाह के विश्वस्त है। हालांकि पिछले 10 साल से राजसभा सांसद और कुछ समय मंत्री रहने के बाद भी अजमेर के विकास में उनका कोई योगदान नजर नहीं आता। पिछली बार मंत्री बनने के बाद जब अजमेर आए थे, तो उन्होंने स्मार्ट सिटी के कामों में घोटाले की जांच का विश्वास दिलाया था। लेकिन ना तो जांच शुरू हुई और ना ही यादव खुद उसके बाद वापस अजमेर आए। अब तो वो अलवर से सांसद चुने गए हैं,तो अलवर ही प्राथमिकता होगा।*
*लेकिन क्या सत्ता के इतने सितारे अजमेर से होने के बावजूद शहर या जिला विकास के वह आयाम छू सका,जिसका वह हकदार था। निश्चित रूप से नहीं। अजमेर भाजपा का गढ़ बन चुका है। विधानसभा चुनावों में उसके नेता तीन से पांचवीं बार तक जीते हैं। अनीता भदेल भी अजमेर दक्षिण से पांचवी बार चुनी गई है। लेकिन सभी ने अजमेर के मतदाताओं से विश्वासघात ही किया है। उनके भरोसे को तोड़ा है। शहर सहित जिले में पानी का भीषण संकट है। लेकिन अखबारी खबरों और बैठकों के जरिए आदशों-निर्देशों से ही प्यास बुझाई जा रही है। पिछले 10 साल से केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार रही है,उसके बावजूद अजमेर में रेलवे ओवरब्रिज निर्माण अधूरे पड़े हुए हैं। इससे रोजाना हजारों लोगों को यातायात में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। एलिवेटेड रोड भी केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी योजना का हिस्सा है। लेकिन भाजपा नेताओं ने इस बेकार रोड का न बनने के दौरान विरोध किया और ना ही बनने के बाद इसके बेतरतीब उपयोग का। एलिवेटेड रोड ने शहर की सुंदरता को भी खत्म कर दिया। इसके निर्माण में हुए घोटाले की जांच की बातें भी हवा हो गई। किशनगढ़ के जिस हवाई अड्डे को जयपुर हवाई अड्डे के विकल्प के रूप में विकसित करने के सपने दिखाए जा रहे थे, हकीकत में वहां से वो उड़ाने भी बंद हो चुकी है, जिनसे हवाई अड्डा शुरू हुआ था। अब यहां से सप्ताह में दो-चार उडा़नें ही है। अजमेर जिले में रोजगार के लिए नए उद्योग-धंधे भी नहीं लग पाए और इस पर रिटायर्ड और टायर्ड लोगों के शहर का जो ठप्पा लगा है,वह और गहरा होता जा रहा है। युवाओं को भी रोजगार के लिए शहर छोड़ना पड़ रहा है। ये तो विकास से जुड़ी बड़ी समस्याएं हैं। इसके अलावा शहर की छोटी-मोटी समस्याएं तो अकूत है जिन्हें नगर निगम दूर हघ नहीं कर पा रहा है।*
*ऐसे में भागीरथ चौधरी के केंद्रीय मंत्री बनने से अजमेर की उम्मीदें फिर कुलांचे करने लगी है। लेकिन क्या चौधरी उन पर खरा उतरेंगे? क्या वाकई वह उपरोक्त समस्याओं के समाधान के लिए अपने नाम के अनुरूप अजमेर के विकास के भागीरथ बन सकेंगे? अगर वह ऐसा नहीं कर पाते हैं तो एक बार फिर यह साबित हो जाएगा कि अजमेर के जन प्रतिनिधियों की दूसरे जिलों के नेताओं की तरह सरकारों में चलती नहीं है। वह महज पदों के आभूषण पहनकर सत्ता का आनंद उठाते हैं। इसमें कोई शक नहीं की भाजपा के इतने सारे सत्ताधारी नेता एक-साथ मिलकर बैठे और अजमेर के विकास की पुरानी योजनाओं की क्रियान्वती पर चर्चा करें और विकास की नई योजनाओं का खाका बना उन्हें अमल में लाने के लिए जुट जाएं, तो शहर की कायापलट हो सकती है। लेकिन सवाल फिर वही है कि क्या अपनी-अपनी राजनीति चमकाने में लगे रहने वाले नेता कभी शहर और जिले को चमकाने के लिए एक साथ बैठ सकते हैं? लेकिन अपने मित्र के फोन के बाद से अब तक सोच रहा हूं कि उसने वाकई में बधाई दी थी या अजमेर के नेताओं की राजनीतिक नाकामी पर ताना मारा था।*
*■ ओम माथुर ■*
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