अनेक इतिहासकार मानते हैं कि अजमेर के प्रथम शासक अजयराज ही अजयपाल जोगी थे, जिनके नाम लेने मात्र से लोग स्वस्थ हो जाया करते थे। प्रसंगवश बाबा अजयपाल के बारे में और अधिक जानकारी भी ले लें।
अजयपाल बाबा का स्थान फॉयसागर से छह किलोमीटर दूर अजयसर गांव में है। इतिहासविद श्री शिव शर्मा के अनुसार विख्यात पत्रिका कल्याण् (सन् 1967) में पृ. 387 पर उल्लेख मिलता है कि पुष्कर में सृष्टि यज्ञ के समय प्रजापति ब्रह्मा ने भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए चार शिवलिंग स्थापित किए थे। उनमें एक अजगंध महादेव यहां प्रतिष्ठित किया था। संभवत इस अज नाम से ही अजयसर गांव बसाया गया। अब इस शिवलिंग का कोई अवशेष नहीं मिलता है। बारहवीं सदी में चौहान राजा अर्णाेराज ने यहां जो शिव मंदिर बनवाया, वह आज भी विद्यमान है। बाद में यह स्थान अजयपाल बाबा के नाम से विख्यात हुआ। गांव के लोग बताते हैं कि सपादलक्ष के राजा अजयपाल चौहान ने छठी सदी में बीठली पहाड़ी (अजयमेरू) पर एक सैनिक चौकी स्थापित की और अजयसर गांव बसाया। अपनी वृद्धावस्था में यह राजा सन्यासी के रूप में इसी स्थान पर रहा। वह तपस्या के बल पर सिद्ध जोगी हो गया था और इसीलिए अजयपाल बाबा कहा जाने लगा। किंतु कुछ इतिहासकार इस मान्यता को गलत मानते हैं क्योंकि उस समय तक नाथ पंथ का आरंभ नहीं हुआ था। बारहवीं सदी में मच्छेन्द्र नाथ (मत्स्येन्द्र) ने इस साधना पद्धति का आरंभ किया था। इसके बाद ही यह स्थान नाथ बाबा या नाथ जोगियों के साधना स्थल के रूप में विख्यात हुआ होगा। चौहान राजा अजयराज द्वितीय का समय बारहवीं सदी था वह भी आयु के अंतिम प्रहर में सन्यासी हो गया था। लेकिन हो सकता है कि वह यहां इस घाटी में रहा हो और उसी के नाम पर यह स्थान विख्यात हो गया हो। उधर अजमेर का गुर्जर समाज का मानना है कि अजैपाल गुर्जर जाति का एक सिद्ध पुरुष था। वह पक्का शिवभक्त एवं नाथ पंथ में दीक्षित था। उसके पास उच्च कोटि की तांत्रित सिद्धियां थीं। वह बकरी चराया करता था। उसके तपोबल से ही यह घाटी साधना स्थली बनी और उसी के नाम पर विख्यात हुई। इस संदर्भ में कहावत भी प्रचलित है- अजयपाल जोगी, काया राखे निरोगी। मुस्लिम समाज में इसी जोगी को अब्दुल्ला बियाबानी, भूखे को रोटी, प्यासे को पानी कहा गया है। इस अजयपाल बाबा की यहां एक सोटाधारी प्रतिमा है। प्रतिवर्ष भाद्रपद माह में दूसरे पखवाड़े के छठे दिन यहां बाबा का मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से कनफटे जोगी आते हैं।
अजयसर में बाबा अजयपाल के सिर की समाधि स्थापित है और धड़ की समाधि गुजरात के भुज कच्छ जिले के अंजार में स्थित है। अजयसर पर मुसलमानों की विशाल सेना का आक्रमण होने पर अजयपाल ने देखा कि संख्या बल ज्यादा होने से बचना मुश्किल है, तब विर्धमी के हाथों मरने के बजाय उन्होंने अपने हाथों अपना ही सिर काटकर आक्रमणकारियों पर हमला किया। बिना सिर के अजयपाल को लड़ते देखकर मुस्लिम सेना भाग खड़ी हुई। भागती सेना का पीछा करते हुए अजयपाल अंजार तक जा पहुंचे, जहां उनका धड़ निष्प्राण होकर गिर पड़ा। अंजार में बाबा अजयपाल का समाधि स्थल बना हुआ है।
अजयपाल बाबा की आध्यात्मिक शक्ति को व्यक्त करने वाली एक लोककथा बहुत प्रचलित है। रावण के सिपाही उनसे कर मांगने आए। उन्होंने सैनिकों को कहा- रावण की लंका का नक्शा इस जमीन की मिट्टी पर बनाओ। सैनिकों ने वैसा ही किया। तब बाबा ने उंगली से लंका के महल का एक कंगूरा मिटा दिया और उधर वास्तव में ही लंका में रावण के महल का एक कंगूरा टूट गया था। सैनिक उनका रूहानी रूप देखकर डर गए और यहां से लौट गए। इस लोककथा की सच्चाई कुछ और ही है- अजमेर के चौहान राजा सोमेश्वर ने लंकेश की उपाधि धारण की थी और उसके साथ अजयपाल जोगी की तकरार हो गई थी। उसका अहंकार दूर करने के लिए बाबा ने अपनी रूहानी ताकत के सहारे तारागढ़ का एक कंगूरा तोड़ दिया था। यह जोगी ख्वाजा साहब का भी समकालीन था। इस प्रसंग से संकेत मिलता है कि यह स्थान शक्ति साधना का केन्द्र भी था।
-तेजवाणी गिरधर 774206700
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