आखिर हम नहीं मना पाए अजमेर का स्थापना दिवस

हालांकि यह आज तक तय नहीं है कि अजमेर का स्थापना दिवस कब है, मगर मोटे तौर पर यह मान लिया गया है कि विक्रम संवत 1170 यानी सन् 1112 में चैत्र प्रतिपदा के दिन अजमेर की स्थापना हुई थी। चलो कोई बात नहीं, हमें ठीक से पता नहीं लग पाया कि अजमेर की स्थापना कब हुई, मगर हमने जिस तिथि को मान लिया है, उसे भी तो ठीक से नहीं मना रहे। हां, नवरात्र स्थापना, चैत्र प्रतिपदा, नवसंवत्सर के साथ औपचारिक रूप से अजमेर का स्थापना दिवस भी मना लिया, लेकिन उसे भव्य रूप से मनाने का ख्याल ही नहीं किया। चंद बुद्धिजीवियों ने जरूर इसे मना कर औपचारिकता निभाई है, मगर सवाल उठता है कि जैसे सिंधी समाज साल में एक बार चेटी चंड पर विषाल षोभायात्रा निकालता है, महावीर जयंती पर जैन समाज की ओर से विषाल जुलूस निकाला जाता है, हिंदूवादी संगठन राम नवमी को भव्य तरीके से मनाते है, अन्य समाज भी अपने अपने इश्ट देवताओं की जयंती धूमधाम से मनाते हैं, कावड यात्राएं निकालते हैं, क्या उसी तरह का भव्य आयोजन अजमेर के स्थापना दिवस पर नहीं किया जा सकता? असल में स्थापना दिवस मनाने की जिम्मेदारी किसी संस्था या संगठन पर आयद नहीं की जा सकती, और न ही किसी के बस की बात है, मगर अजमेर जिला प्रषासन व नगर निगम तो अपने संसाधनों से बडा आयोजन कर ही सकते हैं। जब हम दषहरा मना सकते हैं, गरबा का आयोजन कर सकते हैं, फागुन महोत्सव मना सकते हैं, बादषाह की सवारी निकाल सकते हैं, आनासागर जेटी पर आतिषबाजी कर सकते हैं, तो अजमेर स्थापना दिवस के लिए फंड क्यों नहीं जुटा सकते? यह तभी संभव हो सकता है, जब कि सिविल सोसायटी प्रषासन पर इसके लिए दबाव बनाए। यूं सिविल सोसायटी में अनेक संस्थाएं सक्रिय हैं, मगर एक भी इस स्थिति में नहीं है, जो दमदार तरीके से स्थापना दिवस मनाने का दबाव बना सकंे। और सबसे बडी बात कि उसके लिए जो विल चाहिए, वह अभी जागृत नहीं हो पाई है।

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