आज का अखबार पड़ा दो तीन समाचार ऐसे थे की मैंने सोच इसका विश्लेषण आप के साथ मिलकर करूँ.
पहला तो ये तो की आप सब को मुबारक हो RPSC ने ऐसा सॉफ्टवेर बना लिया (ऐसा अखबार में लिखा था) की अब कोई दिक्कत नहीं आयेगी मुझे ख़ुशी हुई की अब पेपर गलत सलत नहीं आयेंगे अरे भई पहले बना लेते तो कोई लोगो का भविष्य सुधर जाता.
दूसरी एक पुलिसमैन के बारे में था जिनकी मृत्यु हो गयी पूरी कहानी थी कैसे दीवान थे फिर पदनावत हो कर कैसे सिपाही बने, दो दिन से गैरहाजिर थे, किनसे दोस्ती यारी थी आदि अदि मतलब पुलिस को सब पता है फिर भी ऐसे आदमी को पुलिस जैसे महकमे जो की संवेदनशील होता है उसमे बहाल कर रखा है. सोचने का समय है हुक्मरानों के लिए.
तीसरी बात जो आजकल बहुत ज्यादा अखर रही है जिसे पड़ कर अफ़सोस भी होता है की महीने में कभी कभी किसी न किसी अजमेर के हिंदी अखबार में ये आता है की फलां शख्स की तबियत बहुत खराब है फलां बीमारी है आप से योगदान की अपेक्षा है.
इसमें दो बातें है खुद अखबार चला रहे हो तो पहले तो अपनी तरफ से अपनी हेसियत के अनुसार लाख दो लाख खुद मिलाने चाहिए फिर दुसरो से मांगना चाहिए तो इस से लोगो को भी प्रेरणा मिलेगी.
दूसरी बात ये सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था को उजागर करता है की कैसे करोडो अरबों रुपये खर्च होने के बाद भी गंभीर मरीज़ जिसके पास असबाब/रुपये नहीं है उसका इलाज नहीं हो प़ा रहा कैसे उसका इलाज होगा.
इन अखबारों को चाहिए की एक एक मरीज़ की आवाज उठाने की बजाये पुरे के पुरे अखबार रंग दे अस्पताल की भ्रष्ट व्यवस्था को सुधारने में और लिखना बंद न करे जब तक की व्यवस्था न सुधरे.
(कुछ तो सुधरे, सडकें नहीं सुधर रही तो अस्पताल तो सुधरे)
-ऐतेजाद अहमद खान