बार-बार निशाने पर आ जाते हैं बार अध्यक्ष टंडन

Rajesh Tandon 3अजमेर बार के अध्यक्ष राजेश टंडन का पिछला अध्यक्षीय काल भले ही अपेक्षाकृत चमकदार रहा हो, मगर इस बार तो वे बार-बार अपने ही वकील साथियों के निशाने पर आ रहे हैं। और दिलचस्प बात ये है कि जिस बार अध्यक्ष पद की बदौलत उन्होंने कांग्रेस में अहमियत पाई थी, उसी पार्टी का नेता होने के कारण ही उन्हें बार की नेतागिरी में दिक्कत आ जाती है।
हाल ही जब उन्होंने सरकार को सद्बुद्धि देने के लिए ख्वाजा साहब की दरगाह की जियारत करने का निर्णय किया तो कुछ वकीलों ने विरोध कर दिया। वकील संजीव टंडन, राजेश ईनाणी, प्रदीप कुमार, जितेंद्र खेतावत व विनोद शर्मा समेत अन्य वकीलों ने इस संबंध में टंडन को पत्र लिख कर जियारत को स्वार्थ से प्रेरित बताया और यात्रा के मुद्दे पर साधारण सभा बुलाने की मांग की। कुछ ऐसा ही विरोध पाक प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की यात्रा का विरोध करने के दौरान भी हुआ, जब कुछ कांग्रेसी विचारधारा के वकीलों ने इस पर ऐतराज जताया। असल में दिक्कत ये है कि बार अध्यक्ष होने के साथ-साथ वे राजनीतिक दल के नेता भी हैं। अगर कभी बार अध्यक्ष होने के नाते निष्पक्ष हो कर वकीलों की पैरवी करते हैं तो कांग्रेस से बुरे बन जाते हैं और अपनी कांग्रेसी छवि बचाने की कोशिश करते हैं तो अन्य विचारधारा के वकीलों के निशाने पर आ जाते हैं।
आपको याद होगा कि एक बार जब शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने वकीलों के बारे में कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी की तो टंडन को बार अध्यक्ष होने के नाते उनसे भिडऩा पड़ा, जिसका नतीजा ये हुआ कि उनकी फोकट में ही रलावता से टशल हो गई। रलावता के शागिर्दों ने टंडन को कड़ा जवाब देने की कोशिश की। इसी प्रकार बार अध्यक्ष के नाते शहर के हित में उर्स की बदइंतजामियों पर उग्र रुख अपनाया तो कांग्रेसियों ने उनके कपड़े फाडऩा शुरू कर दिया। उन्होंने एक दिन का उपवास किया तो उस पर प्रदेश कांग्रेस के महासचिव सुशील शर्मा ने यह कह विवाद किया कि टंडन को व्यक्तिगत रूप से आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन पार्टी के पूर्व सचिव की हैसियत से इस तरह के आंदोलन का अधिकार नहीं है। शर्मा ने टंडन के इस उपवास को सस्ती लोकप्रियता करार दिया। कुल मिला कर टंडन पर कांग्रेसी होने के बावजूद कांग्रेस सरकार को घेरने का आरोप झेलना पड़ा।
वैसे भी उनका मौजूदा कार्यकाल कुछ कमजोर साबित होता जा रहा है। अध्यक्ष भले ही वे हैं, मगर एंटी लॉबी के सचिव उनसे कहीं अधिक पावरफुल प्रतीत होते हैं। पावरफुल न भी हों, तो भी वे उन्हें चैक तो करते ही हैं। इसी के चलते एक बार प्रशासन से समझौता वार्ता करने के बाद विरोध का सामना करना पड़ा। अब वे समझौतावादी रुख रख कर ही अध्यक्ष पद को निभा रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर

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