यानि कि लेन-देन को लेकर ही अटकी थीं अस्पताल की पर्चियां

jln thumbअजमेर के जेएलएन अस्पताल के आउट डोर में पर्चियों के अभाव में बड़ा हंगामा हो गया। हालत ये हो गई कि मरीज व उनके परिजन ने अस्पताल अधीक्षक डॉ अशोक चौधरी के पीए प्रकाश का घेराव कर प्रदर्शन तक कर दिया। जानकारी ये आई कि अकाउंट शाखा ने पर्ची प्रिंट करने वाली फर्म का भुगतान रोक रखा था और जब हंगामा हुआ तो आनन-फानन में फर्म के रोके गए पांच लाख रुपए में से करीब चार लाख रुपए के दो अलग-अलग चेक पास कर दिए।
सवाल ये उठता है कि आखिर अकाउंट शाखा ने भुगतान क्यों रोक कर रखा था। यदि उसमें तकनीकी दिक्कत थी तो फिर बिना उसे दुरुस्त किए ही आनन-फानन में चैक कैसे जारी कर दिए? जाहिर है कि पर्ची बनाने वाली फर्म ने पहले ही चेता दिया होगा कि अगर भुगतान नहीं किया तो वह और पर्चियां नहीं देगी। बावजूद इसके भुगतान रोके रखा गया और हालत ये होने दी गई कि तकरीबन दो घंटे तक मरीजों को धक्के खिलाए गए तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? हालांकि अस्पताल अधीक्षक डॉ. चौधरी यह कह कर बचने की कोशिश कर रहे हैं कि लेखा विभाग की अनदेखी की वजह से फर्म का भुगतान समय पर नहीं हो पाने के चलते परेशानी का सामना करना पड़ा, मगर ऐसा कह कर क्या वे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं? जैसी कि जानकारी है अस्पताल कर्मियों ने एक सप्ताह पहले ही पर्ची खत्म होने की जानकारी अधिकारियों दे दी थी। साथ ही यह भी बताया था कि जिस फर्म को पर्ची छापने का ठेका दिया है, उसका करीब 5 लाख रुपए भुगतान नहीं होने से फर्म ने पर्ची देने से इनकार कर दिया है। अस्पताल अधीक्षक ने भी लेखा विभाग को शीघ्र ही फर्म का शेष भुगतान करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद भी समय रहते फर्म को भुगतान नहीं किया गया, इसका क्या अर्थ निकाला जाए? स्पष्ट है कि डॉ. चौधरी ने इस बारे में लापरवाही बरती। रहा सवाल अकाउंट शाख का तो संदेह यही होता है कि लेन-देन में कमी-बेसी के चलते ही उसने कोई न कोई अडंगा लगा कर भुगतान रोक रखा था, जो कि हंगामा होने पर अचानक हट गया।
-तेजवानी गिरधर

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