एसपी श्रीवास्तव भी रहे नकारा, अजमेर फोरम के प्रयासों पर फिरा पानी

gaurav shrivastavजब अजमेर के पुलिस बेड़े की कमान कड़क कहे जाने वाले गौरव श्रीवास्तव ने संभाली थी तो उन्होंने कहा था कि वे ईमानदारी की मिसाल पेश करेंगे, मगर उनका यह बयान आज उनको ही चिढ़ा रहा है। उनके कार्यभार संभालने को तीन माह से भी अधिक हो गया है, मगर निचले स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार की जद में शहर हृदयस्थल मदारगेट बेतरतीब यातायात व अस्थाई अतिक्रमणों के कारण सिसक रहा है। स्थिति से पहले से भी बदतर हो गई है। और इसी के साथ अजमेर फोरम की पहल पर वहां के दुकानदारों के साझा प्रयास पर भी पानी फिर गया है।
ज्ञातव्य है कि अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों की एकजुटता दिखाते हुए अपने अतिक्रमण इसी उम्मीद में हटाए थे कि वहां अवैध रूप से जमे ठेले हटा दिए जाएंगे। तत्कालीन एसपी राजेश मीणा ने इस पहल का स्वागत किया तो यह लगने लगा था कि शहर के इस सबसे व्यस्ततम बाजार की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले लेगा, मगर खुद मीणा के रवैये के कारण ही नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पाया। मीणा यह कह कर ठेले वालों को हटाने में आनाकानी कर रहे थे कि पहले निगम इसे नो वेंडर जोन घोषित करे और पहल करते हुए इमदाद मांगे, तभी वे कार्यवाही के आदेश देंगे। उनका तर्क ये था कि पहले नया वेंडर जोन घोषित किया जाए, तब जा कर ठेले वालों को हटाया जाना संभव होगा। असल बात ये है कि संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में गठित समिति मदार गेट को पहले से ही नो वेंडर जोन घोषित कर चुकी है। मीणा के तर्क के मुताबिक उसे निगम की ओर से नए सिरे से नो वेंडर जोन घोषित करने की जरूरत ही नहीं। पुलिस को खुद ही कार्यवाही करनी चाहिए थी। रहा सवाल मीणा के पहले वेंडर जोन घोषित करने का तो स्वाभाविक रूप से जो इलाका नो वेंडर जोन नहीं है, वही वेंडर जोन है। अव्वल तो उनका इससे कोई ताल्लुक ही नहीं था कि ठेले वालों को नो वेंडर जोन से हटा कर कहां खड़ा करवाना है। उनके इस तर्क से यह साफ हो गया कि वे तो ठेले वालों की पैरवी कर रहे थे। इसकी वजह ये थी कि इस बाजार से ट्रेफिक पुलिस कर्मी अच्छी खासी मंथली वसूलते हैं। यदि ठेले हटाए जाते तो उनकी मंथली मारी जाती।
Madar Gateखैर, मीणा तो खुद की मंथली लेने के मामले में जेल के अंदर चले गए, मगर उनके बाद आए श्रीवास्वत भी नकारा साबित हुए। अब हालात ये है कि मदार गेट फिर अतिक्रमण से घिर गया है। भलमनसाहत में आ कर दुकानदारों ने तो अतिक्रमण हटा कर अपने वाहन फुट ओवर ब्रिज के पास बने पार्किंग स्थल पर खड़े करने शुरू दिए और अपनी दुकानों के व्हाइट लाइन तक खिंचवा दी। मगर पुलिस वालों की मिलीभगत से ठेले वाले अपनी आदत से बाज नहीं आए। इस कारण बाजार में आम आदमी के चलने की जगह कम और अतिक्रमियों का कब्जा ज्यादा नजर आता है। अफसोसनाक बात है कि फोरम के कहने पर जीव सेवा समिति के सचिव जगदीश वच्छानी ने वहां लगी ठंडे पानी की प्याऊ भी हटवा दी, आज उसी स्थान पर ठेले व लुहारनियों ने कब्जा कर रखा है। पूरे मदारगेट को खूबसूरत बनाने के लिए तब सारी दुकानों पर एक ही आकार-प्रकार व रंग के बोर्ड लगाने का संकल्प भी हवा हो गया है।
-तेजवानी गिरधर

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