गत 26 मई को चुनाव अधिकारी आर.सी. बजाज व उनके सहयोगियों की देखरेख में सोसाइटी के नौ पदों के लिए चुनाव सम्पन्न हो गए। जनकपुरी में हुए मतदान के तहत करीब तीन हजार सदस्यों में से सिर्फ एक तिहाई यानी 1036 सदस्यों ने अपने मत डाले, जिसके तहत अध्यक्ष के.सी.गुप्ता वरिष्ठ उपाध्यक्ष आर.एस.निर्वाण, उपाध्यक्ष श्रीमती कुसुम गौत्तम महा सचिव सुरेश चन्द अग्रवाल सचिव प्रशासन जे.एस. राजावत सचिव वित्त आर.एन. विजयवर्गीय, सचिव विकास जगदीश प्रसाद शर्मा (पहले ही निर्विरोध निर्वाचित हो चुके थे) महिला सदस्य श्रीमती राधिका अग्रवाल तथा श्रीमती मधु गुप्ता विजयी घोषित हुए।
चुनावों को चुनौती देने की भी तैयारियां
मतदान से पूर्व उम्मीदवारों को अधूरी मतदाता सूचियां दिया जाना मतदान के दौरान अव्यवस्थाएं, फर्जी आधा मतदान, मतगणना जनकपुरी में व शेष दूसरे दिन शास्त्रीनगर पार्क-2 में कराना अध्यक्ष गुप्ता द्वारा चुनाव से पूर्व संस्था के लिए भूमि व भवन निर्माण हेतु आर्थिक सहायता सन्त श्री कृष्णानन्द द्वारा दिलवाने का मतदाताओं को झूंठा प्रलोभन दिलाना आदि अनेक मुद्दों के आधार पर अदालत में चुनौती दिए जाने की तैयारियां की जा रही है। चुनौती अध्यक्ष पद पर दूसरे स्थान पर रहे उम्मीदवार चिंरजीलाल व अन्यों के द्वारा दी जा सकती है।
विरोधी वातावरण के बावजूद गुप्ता टीम की विजय का रहस्य?
गुप्ता निर्वाण पर चारों ओर से लगी आरोपों की झडी के बावजूद इस टीम की विजय का क्या रहस्य था? इस प्रश्न का उत्तर इस टीम के ही कुछ सिपहसालारों से एवं कुछ पराजित उम्मीदवारों से मालूम हुआ है। जिसका सबसे बडा कारण तो यह बताया जा रहा है कि चुनाव से ठीक दो दिन पूर्व रिमझिम के 23 मई के अंक के पृष्ठ सं. 5 पर शीर्षक Óमैं अध्यक्ष पद पर कैसे पहुंचा शीर्षक से प्रकाशित समाचार की अन्तिम दस लाइनों में अंकित है:- माननीय सदस्यों से अपील करता हूं कि मुझे अध्यक्ष पर पर मेरे पैनल को एक अवसर और देवें ताकि इस कार्यकाल में मैं सन्त श्री कृष्णानन्द गुरूदेव से प्राप्त आशीर्वचन के अनुकूल सोसाइटी को भूमि दिलवाकर सोसाइटी भवन खडा कर सकूं। पैनल संलग्न ऊपर बाक्स में प्रस्तुत है। आपका अपना के.सी. गुप्ता अध्यक्ष
हालांकि गुप्ता का उक्त वक्तव्य राज्य स्तरीय अधिवेशन के दौरान सन्त श्री से कहीं भी सुनने देखने को नहीं मिला है फिर भी हो सकात है कि उन्होंने अपने लिखित पत्र में आश्वस्त कर दिया है। ऐसी ही आशा रूपी प्रलोभन से प्रभावित होकर सदस्यों ने गुप्ता पर लगे सभी आरोपों को भूलकर उनके पैनल को प्रचन्ड बहुमत से विजयी बना दिया। रिमझिम की भी भगवान से यही प्रार्थना है कि उक्त भ्रम साकार रूप लेवें। लेकिन यदि आशा के विपरीत यह छलावा ही सिद्ध हो गया तो फिर ÓÓतेरा क्या होगा रे………ÓÓ ही हालत होगी, जिसकी चुनावी पिटीशन भी बन सकती है।
इसके अलावा गुप्ता द्वारा अपना चिरपरिचित अहंकारी व हिटलरी व्यवहार त्याग कर सभी का खासकर हर विरोधी के चरण स्पर्श व पाय लागू की एक्टिंग किया जाना उनकी टीम को विजयी बनाने में सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध हुई। वैसे बूढी आत्माओं की कमजोर याददाश्त व उनके मन में पैदा हुई दया भावना ने उन्हें पिघला दिया और उनकी पुन: सत्तारूढ बनाने का कारण हो गया।
इसी तरह राज्यस्तरीय अधिवेशन में जिन्होने चाहे चाय के या भोजन के कूपन संग्रह करने का ही कार्य किया हो, उन सहित 150 सदस्यों को 16 हजार रूपए खर्च कर स्मृति चिन्ह दिया जाना गुप्ता की सोची समझी रणनीति थी क्योकि इस हेतु सदा की भांति किसी ने कोई मांग भी नहीं की थी। लेकिन मतदान के आवसर पर अहसानवश गुप्ता के पक्ष में वोट डालना भी एक कारण हो सकता है।इसी प्रकार गुप्ता टीम का एक खेल यह भी रहा कि उनकी टीम के हर उम्मीदवार के खिलाफ अधिक से अधिक उम्मीदवार खड़े होवे और वे बैठे भी नहीं। ताकि वे आपस में लडते-भिडते रहे उनके वोट आपस में ही बटते रहें। इसका अप्रत्यक्ष फायदा आखिर गुप्ता मिला और वह विजयी रही।
कुछ वरिष्ठ नागरिकों ने उपस्थित होकर रिमझिम कार्यालय में नैतिकता की बात की, जिसमें कुल मतदान या वोट का 33 प्रतिशत आने पर नैतिकता के आधार पर पद छोडने की बात कही कुछ ने कहा कि जो व्यक्ति समूह संयोजक हैं और वे कार्यकारिणी में निर्वाचित होगयें है उनको नैतिकता के आधार पर समूह संयोजक के पद से त्याग पत्र दे देना चाहिए जिससे एक व्यक्ति एक पद का सिद्धान्त लागू रहे तथा अन्य व्यक्ति को समूह संयोजक के कार्य करने का अवसर प्रदान हो यह व्यवस्था सोसाइटी के संविधान में उल्लेखनीय नहीं हैं, लेकिन नैतिकता व संस्था हित में उचित हो सकता है।
रिमझिम साप्ताहिक से साभार
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पराजित उम्मीदवारों को सकारात्मक रुख अपनाते हुए अपनी हार स्वीकार कर लेनी चाहिये. के. सी. गुप्ता की अध्यक्ष पद पर जीत का सबसे बड़ा कारण यही रहा है कि उनके खिलाफ पाँच उम्मीदवार थे और के. सी. गुप्ता विरोधी वोट बँट गए. यदि चुनाव परिणामों का विश्लेषण किया जाए तो एक बात सामने आती है कि उपाध्यक्ष पद पर श्रीमती कुसुम गौतम जीती, जो के. सी. गुप्ता पैनल में नहीं थी. मतदान के दौरान अव्यवस्थाये और फर्जी मतदान जैसे आरोप अब बेमानी हैं, यह सब हार जाने के बाद की सोच है. जहाँ तक मत गणना का सवाल है, वह् सभी के समक्ष पारदर्शिता के साथ हुई थी और मतगणना के समय बहुत से उम्मीदवार, उनके प्रतिनिधि और बहुत से सोसायटी सदस्य भी उपस्थित थे. ऐसे बहुत से उम्मीदवार मतगणना के समय शायद इसलिए उपस्थित नहीं थे, क्योंकि उन्हें अपनी हार का एहसास हो गया था और इसके लिए उन्हे किसी ओर को दोष नहीं देते हुए अपनी हार स्वीकार कर लेनी चाहिये. यह प्रजातांत्रिक प्रणाली का क्रूर सत्य है कि जब भी दो से अधिक उम्मीदवार चुनाव में खड़े होते हैं तो जीतने वाला उम्मीदवार चुनाव में मत देने वाले मतदाताओं की संख्या के 50 प्रतिशत से कम मत पाने के बाद भी जीत जाता है.
– केशव राम सिंघल