अजमेर उत्तर की प्रतिष्ठापूर्ण सीट, जहां पर कि प्रमुख दावेदारों यथा नरेन शहाणी भगत, डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, महेन्द्र सिंह रलावता सरीखों में से किसे टिकट मिलेगा, इसका कोई अता-पता नहीं है, वहां यकायक ऐसे दावेदार पैदा हो गए, जिनके बारे में न तो आज तक सुना गया था और न ही उनको टिकट मिलने का कोई आधार नजर आता है। ऐसे दावेदार भले ही अपने आपको बहुत बड़ा दावेदार महसूस करते हों, मगर आम जनता में यही चर्चा है कि वे केवल अपना नाम चलाने मात्र के लिए दावेदारी कर रहे हैं। दावेदारों की सूची देख कर आप खुद ही अनुमान लगा लेंगे कि वे कौन-कौन हैं।
खैर, बात करें मुद्दे की। हालांकि न्यास सदर नरेन शहाणी के खिलाफ एसीबी की ओर से एफआईआर दर्ज होने के बाद वे कुछ संकट में नजर आते हैं और पता नहीं कब उन पर इस्तीफे का दबाव आ जाए, मगर उन्होंने अपना दावा नहीं छोड़ा है। उधर शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता एक ओर तो अजमेर की दोनों सीटों का जिम्मा अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट को देने का प्रस्ताव पारित करवाते हैं तो दूसरी ओर उनके समर्थक उनको ही टिकट देने की पैरवी कर आते हैं। जाहिर सी बात है कि पायलट को सिर माथे बैठना उनकी मजबूरी है, जिन्होंने वरिष्ठ कांग्रेसजन के माथे उनको बैठा रखा है। बात अगर पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती की करें तो हालांकि वे पिछली बार हार का मुंह देख चुके हैं, मगर दावा करने से नहीं चूके। वजह ये कि पिछली बार वे मात्र 688 मतों के अंतर से हारे थे, जो कि कुछ खास नहीं है। पीछा अभी शहर कांगे्रस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ.सुरेश गर्ग ने भी नहीं छोड़ा है। उन्होंने पिछले चुनाव में तो टिकट नहीं मिलने निर्दलीय रूप में परचा तक भर दिया था और मान-मनौव्वल के बाद मैदान से हटे थे। उन्होंने तो अपनी जीत का समीकरण भी पर्यवेक्षक को बता दिया। वह पर्यवेक्षक को वह समझ में आया या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। शहर कांग्रेस महामंत्री सुकेश कांकरिया ने यह तर्क दे कर टिकट मांगा कि माणक चंद सोगानी के बाद जैन समाज को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। टिकट के लिए छात्र नेता सुनील लारा ने तो शक्ति प्रदर्शन भी किया। इसी प्रकार महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिम शेखजादा जुल्फिकार चिश्ती ने यह कह कर टिकट मांगा कि पहली बार कोई खादिम टिकट मांग रहा है, मानो जीत के आधार के कोई मायने ही नहीं हैं, समुदायों को रोटेशन के आधार पर टिकट दिया जाना चाहिए। बात करें अगर अजमेर बार एसोसिशन के अध्यक्ष राजेश टंडन की तो उन्होंने भी बिना किसी जातीय समीकरण के अपनी आदत के मुताबिक इस बार फिर टिकट मांग लिया, कदाचित यह सोच कर कि सिंधी-पंजाबी भाई-भाई होते हैं। पीछे पूर्व पार्षद हरीश मोतियानी भी नहीं रहे, जो कि पूर्व राजस्व मंत्री स्वर्गीय किशन मोटवानी के जमाने से दावेदार माने जाते हैं। पूर्व पार्षद रमेश सेनानी का दावा फिलहाल तो सामने नहीं आया है, जो कि काफी पुराने दावेदार रहे हैं। माली समाज के दम पर महेन्द्र तंवर और महेश चौहान भी दावेदारी के मैदान में आ खड़े हुए। राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. लाल थदानी का दावा इस बार कुछ और मजबूत हुआ नजर आता है कि भगत इन दिनों थोड़ी परेशानी में हैं। सिंधी समाज से नवगठित सिंधु सेना के संस्थापक नरेश राघानी हालांकि रीढ़ की हड्डी में दर्द की वजह से घर के बाहर नहीं निकले, मगर समझा जाता है कि वे बंकर में से बाद में निकल कर आएंगे। शहर महिला कांग्रेस की अध्यक्ष शबा खान ने पिछले दिनों की सक्रियता को बरकरार रखते हुए टिकट मांग लिया है। जब दावे फोकट में ही मांगे जा रहे हों तो सोनल मौर्य, जितेंद्र खेतावत, नरेंद्र सिंह शेखावत, रुस्तम चीता, सैयद अहसान यासीर चिश्ती आदि भी पीछे क्यों रहते? एक नाम और चर्चा में है, पार्षद रश्मि हिंगोरानी का, जो सिंधी और महिला होने के नाते टिकट की दावेदार हैं, मगर वे भी खुल कर सामने नहीं आईं। कुल कर अजमेर उत्तर में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। देखना ये है कि किस्मत किसकी बुलंद साबित होती है।
-तेजवानी गिरधर

kya chunaav lade aur koi post paaye bina desh aur sthaaniy star par seva nahi ki jaa sakti ??