दरगाह में भीड़ पर काबू के लिए चर्चाओं से कुछ नहीं होगा

jhanda 2हाल ही पुलिस अधिकारियों ने दरगाह और गंज थाना क्षेत्रों के सीएलजी मेंबरों की बैठक में दरगाह में भीड़ के बेकाबू होने से भगदड़ के हालात जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के उपायों पर चर्चा गई। ऐसी चर्चाएं न जाने कितनी बार हो चुकी हैं। जाहिर तौर पर उनमें उपयोगी सुझाव भी आते रहे हैं। मगर होता ये है कि ऐसे सुझाव कहने-सुनने में तो अच्छे लगते हैं, पर जब उन पर अमल की बात आती है तो दरगाह से जुड़े सभी पक्षों का तालमेल टूट जाता है।
दरअसल जायरीन की आवक लगातार बढ़ रही है। हर माह पडऩे वाली महाना छठी और जुम्मे की नमाज के अलावा आए दिन कोई न कोई रस्म अदायगी होने के कारण यहां जायरीन का तांता लगा ही रहता है। उर्स के दौरान तो फिर भी पूरा बंदोबस्त होता है, मगर छठी को प्रशासन हल्के में लेता है, जबकि हालत ये है कि इस दौरान स्थिति बेकाबू हो जाती है। इसका नजारा पिछली छठी में भी नजर आया। इस कारण एक बार फिर भीड़ पर काबू पाने के उपायों पर चर्चा शुरू हो गई है।
असल में सीधे तौर पर दरगाह के मामलात से जुड़े हैं जायरीन को जियारत कराने व अन्य रस्में अदा करने वाले वाले खादिमों की संस्था अंजुमन, दरगाह के अंदरूनी इंतजामात देखने वाली दरगाह कमेटी और पुलिस व प्रशासन। इन सब के बीच बेहतर तालमेल की सख्त जरूरत है, लेकिन दुर्भाग्य से ये कभी एकराय नहीं हुए, इस कारण आए दिन यहां अनेक समस्याओं से जायरीन को रूबरू होना पड़ता है। उनका समुचित समाधान न होने के कारण देश-विदेश से आने वाले लाखों जायरीन यहां से गलत संदेश ले कर जाते हैं, जिसकी किसी को फिक्र नहीं है। या यूं कहें कि फिक्र तो है लेकिन अपनी-अपनी जिद के कारण उस फिक्र का कोई भी रास्ता नहीं निकाला जा सका है।
jhanda 5हालात तो यहां तक बदतर हैं कि वीआईपी और वीवीआईपी तक यहां आ कर तकलीफ पाते हैं, जब कि वे आते यहां सुकून पाने को हैं। ये तो गनीमत है कि जायरीन का ख्वाजा साहब से रूहानी वास्ता है, इस कारण सभी प्रकार की तकलीफें भोग कर भी वे जियारत करने को चले आते हैं, वरना इंताजामात के हिसाब देखा जाए तो एक बार यहां आने वाला दुबारा आने से तौबा कर जाए। भीड़ की वजह से यहां कई बार भगदड़ भी मच चुकी है। एक बार तो छह जायरीन की मौत तक हो गई। भीड़ में धक्का-मुक्की तो आम बात है ही। भीड़ से निपटने के लिए मेले के दौरान वन वे का उपाय खोजा गया था। उसे एक बार अमल में भी लाया गया। वह काफी कारगर रहा भी। इस पर खादिमों ने ऐतराज किया तो प्रशासन ने हाथ खींच लिए। इस मामले में खादिमों का मानना है कि जो भी जायरीन यहां आता है, वह केवल जियारत के लिए नहीं बल्कि यहां की अनेक रस्मों में भी शिरकत करना चाहता है। उसकी इच्छा होती है कि वह दरगाह के भीतर मौजूद मस्जिदों में नमाज अदा करे और कव्वाली का आनंद ले, लेकिन वन वे करने से वह ऐसा नहीं कर पाता और उसकी इच्छा अधूरी ही रह जाती है। खादिमों के विरोध के कारण वन वे व्यवस्था में ढि़लाई बरती गई, परिणामस्वरूप आज तक धक्का-मुक्की का कोई इलाज नहीं किया जा सका। इसी धक्का-मुक्की के कारण जेब कटना यहां की सबसे बड़ी समस्या है। उसका भी आज तक कोई समाधान नहीं हो पाया है। कई बार तो वीआईपी की जेब भी कट चुकी है। परेशानी ये है कि दरगाह के अंदर जैसे ही पुलिस का बंदोबस्त ज्यादा किया जाता है और उनकी रोका-टोकी होती है तो खादिमों को वह नागवार गुजरती है। इस कारण हर उर्स सहित आम दिनों में भी पुलिस व खादिमों के बीच टकराव होता ही है। कई बार पुलिस वाले पिट भी चुके हैं। बाद में समझौता ही आखिरी रास्ता होता है, लेकिन इसका परिणाम ये होता है कि पुलिस वाले जितने उत्साह के साथ लगने चाहिए वे नहीं लगते।
अंजुमन, दरगाह कमेटी और प्रशासन को चाहिए कि पिछली छठी के दौरान भगदड़ जैसी स्थिति से सबक लेते हुए सख्त कदम उठाने की संयुक्त पहल करें, वरना किसी दिन बड़ा हादसा हो जाएगा और हम आह-ओह करते रह जाएंगे।
-तेजवानी गिरधर

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