खनन तो खनन…फिर वैध कैसे ?

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की आड़ में मनमर्जी…!
khananजयपुर / प्रदेश में हो रहे खनन को लेकर चारों ओर हल्ला हो रहा है लेकर किसी भी नेता,अधिकारी और कोर्ट ने यह ध्यान देने की कोशिश नहीं की कि बढ़ते खनन से हमारे प्रदेश की पुरा सम्पदा लुप्त होने के कगार पर पहुंच जाएगी ना ही अपने आपको सामाजिक कार्यकर्ता कहने वाले प्रदेश के दर्जनों संगठन सामने आ रहे है। जो संगठन छोटी-छोटी बातों पर धरना प्रदर्शन करने रोड़ पर पहुंच जाते है आखिर प्रदेश के इतने बड़े मुद्दे पर कैसे चुप्पी साधे है। इन सब बातों को लेकर प्रदेशवासियों के मन में एक ही सवाल उठता है कि क्या सरकार के लिए खनन मात्र एक मोटी कमाई का जरिया है जो लीज के नाम पर करवाया जा रहा है,आखिर खनन तो खनन है जो अवैध है…फिर लीज देकर कैसे वैध हो सकता है ? पहले रोक लगाना फिर हटाना सरकार कोई सी भी हो लगता है शायद सबकी आदत हो गई है। जो हाईकोर्ट यह कहकर रोक लगा देता है कि यह गलत है और अब नहीं होना चाहिए इसे रोक दो वही उसे फिर शुरू करने की अनुमति दी जाती है। खनन को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट कितना ही सख्त हो लेकिन नेता इस
पर भी राजनीति की रोटियां सेंकने से नहीं चूक रहे फिर चाहे खनन मिट्टी का हो पत्थर का रसूखदारों को फायदा पहुंचाने के लिए पूरा सरकारी अमला लग जाता है जुगाड़ में…जैसा कि अब से पहले कई बार देखने को मिलता रहा है…लेकिन जिस तरह से भाजपा ने सरकार बनाते ही बजरी खनन को सहमति दी
उससे तो चुनाव में हुए खर्चे की रिकवरी की बू आनी शुरू हो गई और राजनीतिज्ञों में ऐसी चर्चाएं शुरू हो गई है । जैसा कि माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने हाईकोर्ट के निर्देश पर लीज धारकों को खनन करने की अनुमति दी है जिससे प्रदेश के परेशान भवन निर्माण मालिकों को कुछ राहत मिल सके साथ ही राजधानी जयपुर शहर के ठप पड़े विकास कार्य फिर से गति पकड़ सके लेकिन लीज धारकों की मनमानी से प्रदेशवासियों और निर्माण कम्पनियों में भी विरोध के स्वर मुखर हो गए है । लेकिन इनकी समस्या की ओर अब तक किसी भी विभाग के मंत्री और अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया बजरी के
लीज एग्रीमेंट के बाद रविवार 22 दिसम्बर को दो महीने की परेशान के बाद जयपुर बजरी मंडी में जैसे ही ट्रक पहुंचे तो भाव सुन लोगों के होश उड़ गए । बनास व अन्य नदियों में पहले ट्रक चालकों को बजरी भराई व रायल्टी सहित 4 से 5 रु फीट में मिल रही थी । अब खान विभाग ने बजरी की लीज कुछ लोगों
ने सौंप दी है। लीज धारक नदी में ही 15  रु फीट से अधिक कीमत पर बजरी उपलब्ध करा रहे है इसमें ट्रक चालक टोल व अन्य खर्च के 25 रु शामिल कर 40  रु फीट मांग रहे है ।दो माह से लगी रोक के बाद रविवार को बाजार में बजरी तो पहुंची लेकिन दो गुना दरों के चलते खरीददार लौट गए उंची दरों को लेकर
भवन निर्माताओं में रोष है और वे खान विभाग को कोस रहे है । उधर खान विभाग ने दरों पर नियंत्रण से साफ इनकार कर दिया है। खान एवं भू विज्ञान विभाग के निदेशक डी.एस. मारू ने कहा है कि लीज धारक बजरी का मालिक है अब वे बजरी की कीमतें कितनी भी वसूल सकते । बजरी कीमतों पर नियंत्रण का
विभाग के पास कोई अधिकार नहीं है लीज न्यायालय के निर्देश पर दी गई है।
बात करते पूर्ववर्ती गहलोत सरकार की जिसने खनन रोकने को लेकर सख्त निर्देश तो खूब जारी किए लेकिन उनकी ही आड़ में विभागीय अधिकारियों और नेताओं ने जमकर चांदी कूटी…और राजधानी को वल्र्ड क्लास सिटी बनाने का वादा करने वाली गहलोत सरकार पूरे कार्यकाल में प्रस्तावित दर्जनों
प्रोजेक्टों में से कई को तो जमीन पर भी नहीं उतार सकी और कई बड़े प्रोजेक्टों को अधूरे छोड़ शहरवासियों को दिखाए सपनों को तोड़ दिया….और अब सारे प्रोजेक्ट भाजपा की झोली में डाल दिए या यू कहे भ्रष्टचार की भेंट चढ़े प्रोजेक्टों का पाप अब भाजपा सरकार के सिर मढ़ दिया जाएगा…

पुरूषोत्तम जोशी
पुरूषोत्तम जोशी

जानकार सूत्रों की माने तो खान विभाग ने न्यायालय के निर्देश पर राज्य का बजरी कारोबार 10 हजार लोगों से छीनकर फिलहाल मात्र 82 लोगों को सौंप दिया है। राज्य में 82 लीज जरूर दी गई लेकिन इनका वास्तविक मालिक एक ही बड़ा ग्रुप है । उसके पास 65 से 70 फीसदी बजरी कारोबार है। खान विभाग ने पांच साल के लिए लीज देकर लीज मालिकों को मनमर्जी से कीमतें वसूलने का के लिए स्वतंत्र कर दिया है । विभाग ने लीजें देने के दौरान बजरी की कीमतों पर नियंत्रण को लेकर कोई नीति नहीं बनाई । खास बात यह है कि लीज के लिए बजरी के अधिक प्लाॅट सृजित कर ज्यादा लोगों के हाथ कारोबार दिया जा सकता था,लेकिन विभाग ने इसमें रुचि नहीं ली।
जयपुर से पुरूषोत्तम जोशी की रिपोर्ट

error: Content is protected !!