इसे पलाड़ा का दावा समझा जा सकता है

b s palada
सम्मेलन का फोटो दैनिक भास्कर से साभार

हाल ही आयोजित पंचायतीराज सशक्तिकरण सम्मेलन में जिस तरह का मंजर था और जैसी भाजपा के युवा नेता भंवर सिंह पलाड़ा की बॉडी लैंग्वेज थी, उसे पलाड़ा की ओर से आगामी लोकसभा चुनाव के लिए दावेदारी भी समझा जा सकता है।
असल में यह समारोह मूलत: निवर्तमान जिला प्रमुख व पलाड़ा की धर्मपत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के शानदार कार्यकाल के बाद ऐतिहासिक विदाई की शक्ल लिए हुए था, मगर जिस प्रकार पलाड़ा ने कहा कि अभी तो लोकसभा का फाइनल बाकी है, उससे वहां मौजूद सारे नेता व कार्यकर्ता समझ गए कि भाजपा के लिए खाली पड़ी लोकसभा सीट के लिए दावेदारी का आगाज हो गया है। वैसे भी श्रीमती किरण माहेश्वरी के हार कर जाने के बाद यह मैदान खाली ही है। स्थानीय नेताओं में दम था नहीं, इस कारण उन्हें भेजा गया था। बात रही पूर्व सांसद व मौजूदा शहर भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत की तो, अजमेर संसदीय क्षेत्र से मगरा-ब्यावर का रावत बहुल इलाका परिसीमन के साथ हटा दिए जाने के बाद उनका दावा पहले ही कमजोर हो गया। हालंकि दावा वे अब भी कर सकते हैं, मगर वे आकर्षक चेहरा नहीं रहे और उनका कार्यकाल उपलब्धियों से शून्य होने के कारण संभव है भाजपा उन पर दाव न खेले। बात अगर पलाड़ा करें तो इस बात में कोई दोराय नहीं कि उन्होंने अपनी पत्नी के माध्यम से पूरे जिले में जिस प्रकार विकास कार्य करवाए, उनसे उनकी खूब वाहवाही हुई। यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हो कर परफोरमेंस पर ठप्पा भी लगवा लिया।
b s palara 1सम्मेलन की सफलता इसमें मौजूद छह भाजपा विधायकों और प्रमुख नेताओं के साथ भारी भीड़ से आंकी जा सकती है। इसमें संसदीय क्षेत्र में शामिल दूदू के कार्यकर्ता भी थे।
जहां तक सम्मेलन के औचित्य का सवाल है, उसे दैनिक भास्कर के चीफ रिपोर्टर सुरेश कासलीवाल ने कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है:-आने वाले हर व्यक्ति के मन में एक ही सवाल था, जिला प्रमुख सुशील कंवर पलाड़ा को मसूदा क्षेत्र से विधायक बने पंद्रह दिन हो गए हैं, ऐसे में अब पंचायतीराज सशक्तिकरण सम्मेलन आयोजित किए जाने का क्या औचित्य है? सम्मेलन में पंचायतीराज सशक्तिकरण के नाम पर कोई चर्चा भी नहीं हुई और न ही पंचायत राज के प्रतिनिधियों के अधिकार बढ़ाने या वेतन-भत्ते को लेकर ही कोई बात हो पाई। विधायकों ने इसे जिला प्रमुख की ऐतिहासिक विदाई का समारोह जरूर कहा।
यानि कि साफ है कि यह सम्मेलन श्रीमती पलाड़ा की विदाई के साथ ही स्वयं पलाड़ा की दावेदारी का आगाज करता नजर आया। रहा सवाल टिकट मिलने का तो टिकट कैसे लिया जाता है, इसका अंदाजा हाल ही मसूदा में पत्नी के लिए दमदारी से टिकट हासिल किए जाने से लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं जिले में सर्वाधिक घमासान वाली सीट, जहां देहात जिला अध्यक्ष तक बागी हो कर खड़े हो गए, उसके बाद भी जिस प्रकार जीत हासिल की, उससे उन्होंने ये भी साबित कर दिया कि उनकी रणनीति कितनी कारगर है। यदि ये माना जाए कि केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट ही अजमेर से चुनाव लडऩे वाले हैं तो उनसे मुकाबले के लिए जैसी साधन संपन्नता चाहिए, वह उनमें है ही। उनके दावे में एक बड़ी बाधा सिर्फ ये आ सकती है कि इस बार किसी जाट नेता का दावा कुछ ज्यादा मजबूत होगा, क्योंकि जाटों की तादात काफी है। यह बात दीगर है कि जाटों में सर्वाधिक दमदार नसीराबाद से जीते मौजूदा जलदाय मंत्री प्रो. सांवर लाल जाट ही हैं, जो कि इस चुनाव में कोई रुचि नहीं लेंगे। उनके जैसा जाना-पहचाना दूसरा जाट चेहरा फिलहाल नजर नहीं आता। जो कुछ भी हो, पलाड़ा ने एक तरह से अपना दावा तो ठोक ही दिया है।
-तेजवानी गिरधर

error: Content is protected !!