मोदी बेवसाइट कोबरापोस्ट और गुलेल के निशाने पर

27_06_2013-modimum-प्रमोद भार्गव- दंगे भड़कने के आरोप से बचे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी बेवसाइट कोबरापोस्ट और गुलेल के निशाने पर आ गए हैं। मोदी पर इन बेवसाइटों ने एक निर्दोष महिला की जासूसी करने का आरोप लगाया है। इस मामले को केंद्र की सप्रंग सरकार ने आनन-फानन में संज्ञान में लेते हुए जांच आयोग नियुक्त करने का फैसला ले लिया। मंत्रीमंडल की बैठक में यह फैसला आयोग कानून की धारा-3 के तहत किया गया। यह धारा केंद्र को किसी भी मामले पर जांच आयोग बिठाने का अधिकार देती है। गृह मंत्रालय के प्रस्ताव से गठित इस आयोग के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीष होंगे।

इस आयोग के गठन से जुड़ी विडंबना यह रही कि इस जासूसी कांड की जांच, गुजरात सरकार द्वारा बिठाया गया जांच आयोग पहले से ही कर रहा है। इस वजह से यह संदेह उठना स्वाभाविक है कि मोदी की लोकप्रियता और भाजपा द्वारा उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोशित कर दिए जाने के कारण, मोदी को बेवजह ऐसे विवाद में फंसाने की कोशिश की जा रही है, जिस पर आयोग बिठाने को कोर्इ आधार ही नहीं बनता ? अब तक मोदी को घेरने के जितने भी अवसर केंद्र को मिले हैं, उन्हें साधने की हर संभव कोशिश केंद्र सरकार करती रही है, लेकिन मोदी हैं कि साफ बच निकलते हैं। 2002 में गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों के मामले में भी विशेष जांच दल ;एसआर्इटी की रिपोर्ट से सहमत होते हुए, अहमदाबाद की मेटोपालिटन अदालत ने मोदी को क्लीनचिट दे दी है। जाहिर है, एक बार उन्हें फिर कथित जासूसी कांड में फंसाने के लिए केंद्र ने मोदी की गर्दन में फंदा डालने की कोशिश तेज कर दी है।

भाजपा के भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कानूनी कठघरे में खड़ा करने की यह केंद्र सरकार चौथी कोशिश है। इसके पहले 2002 के सांप्रदायिक दंगो, सोहराबददीन और इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ कांडों में मोदी को दोषी ठहराने की कोशिशें हुर्इं। लेकिन मोदी का बाल भी बांका नहीं हुआ। जिस दिन मोदी को महिला जासूसी कांड में घसीटने की दृष्टि से केंद्र ने आयोग बिठाया, उसी दिन गोधरा नरसंहार में मोदी को अहमदाबाद की एक अदालत ने निर्दोष ठहरा दिया। इस मामले में जाकिया जाफरी की मांग पर गोधरा कांड की जांच एएसआर्इटी ने सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर की गर्इ थी। यह जांच सीबीआर्इ के निदेशक आर के राघवन के नेतृत्व में हुर्इ थी। जाकिया जाफरी ने आरोप लगाया था कि उनके पति और कांग्रेस नेता अहसान जाफरी समेत 68 लोगों की हत्या 28 फरवरी 2002 को अहदाबाद की गुलमर्ग सोसायटी में एक हिंसक भीड़ ने की थी, जिसे भड़काने का काम नरेंद्र मोदी ने किया था। राघवन द्वारा 2011 में अदालत को जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें मोदी को दोषी ठहराने लायक सबूत नहीं मिले। बावजूद जाकिया जाफरी इस मामले को मेटोपालिटन अदालत ले गर्इं। वहां भी इस प्रकरण को खारिज कर दिया गया।

अब नए सिरे से मोदी को उलझाने के लिए एक ऐसे मामले में केंद्र ने आयोग गठन की पहल की है, जिसमें जासूसी कांड से कथित तौर से पीडि़त न तो महिला की कोर्इ शिकायत है और न ही उसके परिजनों की ओर से जांच की कोर्इ मांग उठार्इ गर्इ है ? इसके उलट जब यह मामला बेवसाइट की सुर्खी बना था, तब गुजरात सरकार ने सफार्इ देते हुए कहा था कि महिला पर निगरानी रखने का आदेश संबंधित युवती की सुरक्षा के मददेनजर उसके परिवार के आवेदन पर दिया गया था। इसलिए इसे किसी महिला की निजता में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता। युवती के पिता ने इस संबंध में राज्य सरकार को लिखा एक पत्र भी जारी किया है, जिसमें बेटी को सुरक्षा उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया है।

दरअसल इस मामले को उछालने और इसे सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचाने का काम गुजरात के निलंबित आर्इएएस प्रदीप शर्मा ने किया है। 1984 बैच के प्रदीप के विरुद्ध 2008 में कच्छ में भूमि आंबटन में गड़बड़ी बरते जाने सहित पांच आपराधिक मामले दर्ज हैं। अदालत से प्रदीप शर्मा ने अनुरोध किया है कि कोबरापोस्ट और गुलेल न्यूज पोर्टलों ने जो आडियों टेप जारी किए हैं, उन्हें संज्ञान में ले। इन पोर्टलों ने दावा किया है कि गुजरात के पूर्व गृहमंत्री अमित शाह और नरेंद्र मोदी के बीच जो वार्तालाप हुआ है, उसमें ‘साहब की ओर से एक युवती पर निगरानी रखने के बहाने उसकी दैनिक गतिविधियों की जासूसी करने का आदेश है। शाह और एक आर्इपीएस अधिकारी की इसी मामले से जुड़ी बातचीत का टेप भी पोर्टलों ने जारी किया है। कथित जासूसी का यह मामला 2009 का है।

प्रमोद भार्गव
प्रमोद भार्गव

दरअसल, इस मामले को अवैध निगरानी मानते हुए सत्ता और पुलिस मशीनरी का दुरुपयोग माना जा रहा है। इसे राज्य द्वारा प्रायोजित तरीके से किसी नागरिक की गुप्तचरी करने के कारण, व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर निर्लज्ज दखल भी कांग्रेसियों ने माना है। इस लिहाज से यह जासूसी दूरसंचार व सूचना तकनीक अधिनियमों का उल्लंघन मानी गर्इ है। इसे ही आधार बिंदू मानकर केंद्र सरकार ने आयोग बिठाने का फैसला लिया है। आयोग बिठाने के परिप्रेक्ष्य में दलीलें दी जा रही हैं कि गुजरात का जासूसी कांड राज्य की संस्थागत नैतिकता और कार्यप्रणाली से जुड़ा एक गंभीर मसला है। मोदी सरकार ने लोकतांत्रिक प्रशासन के न्यूनतम मानदण्डों का भी पालन नहीं किया हैं। लिहाजा यह गुप्तचरी अनैतिक व अवैध प्रकि्रया है, जिसे संज्ञान में लेकर जांच की जाना जरुरी है।

लेकिन जिस जल्दबाजी में केंद्र द्वारा आयोग गठन का फैसला लिया गया, उसकी परछार्इ में सवाल उठना लाजिमी हैं। जब किसी जासूसी मामले में राज्य सरकार खुद जांच आयोग बिठा चुकी है तो उसकी रिपोर्ट आने से पहले एकाएक केंद्र को आयोग बिठाने की क्या जरुरत थी ? वह भी जब, तब लोकसभा चुनाव निकट हैं। राजनीतिक दलों ने चुनावी षंखनाद षुरु कर दिये हैं। मार्च 2014 में निर्वाचन आयोग अधिसूचना जारी करने वाला है ? आयोग को तीन माह में जांच पूरी कर लेने का समय तय किया गया है। जबकि हम जानते हैं, आयोगों द्वारा जांचें जिस धीमी गति से की जाती हैं, उसमें वर्षों बीत जाते हैं। जाहिर है, इस मुददे का राजनीतिकरण किया जाकर इसे बेवजह तूल दिया जा रहा है। केंद्र राजनीतिक दुर्भावना और मोदी के चरित्र हनन की दृष्टि से इस प्रकरण को आगे बढ़ा रही है, जिससे मोदी का राजनैतिक भविष्य चौपट हो जाए। इस मामले को इसलिए भी तूल देने की जरुरत नहीं थी, क्योंकि लड़की की निगरानी उसके परिजनों के अनुरोध पर की जा रही थी और युवती ने अपनी निजता के हनन अथवा स्वतंत्रता में हस्तक्षेप की फरियाद किसी संस्था को नहीं की थी ? जाहिर है, आयोग की जांच के निष्कर्ष प्याज के छिलके साबित होंगे। और कांग्रेस हाथ मलती रह जाएगी, क्यूँकि उसका इस जांच से कोर्इ राजनीतिक मकसद हल होने वाला नहीं है। http://www.pravakta.com

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