क्या प्रदेश भाजपा को अपने केन्द्र की मांग पर ही शक है?

एक ओर भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व व सांसदों ने कोयला घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग करते हुए सरकार की नाक में दम कर रखा है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश भाजपा इस बात का सर्वे करवा रही है कि भाजपा की इस मांग का कितने लोग समर्थन करते हैं और कितने नहीं। यानि की जो मांग की जा रही है, वह जायज है या नहीं? उसके पक्ष में कितने लोग हैं और कितने विपक्ष में?
इस सर्वे के लिए प्रदेश भाजपा की वेबसाइट आरएजे.बीजेपी.ओआरजी का सहारा लिया गया है। कैसी दिलचस्प बात है। जब भाजपा मांग कर ही चुकी है तो उस पर रायशुमारी का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। उसके बाद यह जानने का कोई अर्थ ही नहीं है कि उसे कितने लोग समर्थन दे रहे हैं? जब मांग करने का निर्णय ही ऊपर से हुआ है, नीचे की राय लेता भी कौन है, तो बाद में नीचे से फीडबैक लेने के कोई मायने ही नहीं रह जाते। अगर यही सर्वे मांग उठाने से पहले किया गया होता, समझ में भी आता कि लोगों की भावनाओं के अनुरूप कदम उठाने के लिए सर्वे कराया गया है।
उससे भी बड़ी बात ये कि इस प्रकार के सर्वे या फीडबैक के परिणाम कभी वास्तविक नहीं आ सकते। जो भी परिणाम आएगा, पक्ष में ही आएगा। खुशफहमी पैदा करेगा। उसकी अपनी विशेष वजह है। यूं वेबसाइट सार्वजनिक होती है, मगर चूंकि इस पर आने वाले अधिकतर लोग स्वाभाविक रूप से भाजपा के ही कार्यकर्ता होंगे, भला यही तो राय देंगे न कि भाजपा ने इस्तीफे की मांग करके ठीक ही किया है। ऐसा कौन सा कार्यकर्ता होगा, जो कि यह राय देगा कि इस्तीफे की मांग नहीं करनी चहिए थी। और ऐसे में प्रदेश भाजपा के नेता मन ही मन खुश होंगे कि देखो कितने लोग भाजपा की मांग का समर्थन कर रहे हैं। एक बात और। हालांकि इस बात की कोई भी संभावना नहीं है कि सर्वे में मांग के विपक्ष में राय आएगी, मगर परिणाम यदि नकारात्मक में आता है तो क्या भाजपा अपनी मांग वापस ले लेगी? बेशक नहीं। यानि कि इस सर्वे का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। कुल मिला कर यह एक चोंचला है, जो हाईटेक होती भाजपा के किसी कारिंदे ने वेबसाइट में दर्ज कर दिया है।
आखिर में गुस्ताखी माफ-जो निर्णय केन्द्रीय नेतृत्व ने कर दिया। उसमें किंतु-परंतु होना ही नहीं चाहिए। उस पर पूरा डिटरमिशन होना चाहिए। कहीं प्रदेश भाजपा को अपने ही केन्द्रीय नेतृत्व बाबत इस बात का शक तो नहीं कि उसने जो मांग उठाई और उसको लेकर इतना आगे आ चुकी है कि पीछे हटने का रास्ता ही नहीं छोड़ा है, वह ठीक भी है या नहीं, सो सर्वे करवा रही है।
साइट देखने के लिए जरा इस लिंक पर क्लिक कीजिए

raj.bjp.org

विशेष नोट-बड़े-बड़े स्तर पर ऐसी छोटी-मोटी गलतियां हो ही जाती हैं। इस प्रसंग में एक किस्सा याद आता है। एक बार महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने अपने बढ़ई अर्थात कारपेंटर से कहा कि उनकी दो बिल्टियों के आने-जाने के लिए गेट में दो छेद कर खिड़कियां निकाल दो। छोटी के लिए छोटा और बड़ी के लिए बड़ा। तो मामूली तकनीकी ज्ञान रखने वाले बढ़ई ने सिर खुजाते हुए सवाल कर दिया, साहब, दो छेदों की क्या जरूरत है। एक ही बड़ा छेद कर देता हूं, बड़ी भी उसमें से आ-जा सकेगी और छोटी भी। है दिमाग वाली, मगर छोटी सी बात, जो कि एक महान वैज्ञानिक की खोपड़ी में नहीं उपजी।

-तेजवानी गिरधर

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