बाड़मेर में पिछले कुछ वर्षों से लगातार भ्रूण मिलने का दौर ऐसा शुरू हो गया कि अब ऊपर वाला जिसे भगवान कह दो या अल्लाह या जो जिस नाम से पुकारे वो समझ लो अब सन्तान की सौगात देने से शर्म कर रहा हैं। क्योंकि मानवीयता इतनी गिर चुकी हैं कि जिसे “अपना खून” कह कर लोग गौरवान्वित महसूस करते हैं वो अपने ही खून को श्वानों का ग्रास बनाने के लिए फैंक देते हैं। बाड़मेर के नेहरू नगर रेलवे फाटक के पास का क्षेत्र कई मर्तबा ऐसे अमानवीय उदाहरण देख चुका हैं।कुछ दिन पहले फिर यहाँ भ्रूण मिला था और आज ग्रामीण थाने के पास एक कन्या का भ्रूण मिलने की बात सामने आई हैं। हमेशा की तरह ही यहाँ पुलिस सारे दुसरे महत्वपूर्ण काम छोड़ कर यहाँ आएगी, स्वीपर को लेने पुलिस की गाड़ी जायेगी मान मुन्नव्वल के बाद स्वीपर को यहाँ लाया जायेगा और पुलिस की गाड़ी में नवजात के शव को डाल कर अस्पताल ले जाया जायेगा फिर एक सरकारी “खानापूर्ति” के बाद नवजात का शव दफना दिया जायेगा। लेकिन मानवीयता इस पूरे “एपिसोड” नवजात के शव के साथ दफन होना तय हैं। एक अपील यहाँ की जानी लाज़मी हैं कि “भ्रूण” फैंकने और श्वानों का ग्रास बनने के सालो से चल रहे घटनाक्रम के आरोपियों को सामने लाना जरूरी हैं क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम सकारात्मक आएंगे। यह जानना भी सुनिश्चित करना आवश्यक हैं कि ये नवजात मृत ही पैदा हुए हैं या कोख में कत्ल के शिकार हैं ?
दूसरा अगर अस्पतालों में नवजात मृत पैदा हुए तो उन्हें कचरे में क्यों फैंका जा रहा हैं क्या उनके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी पुलिस की हैं ? हर किसी पाश्चात्य सभ्यता के कथित नई सोच के सॉफ्टवेयर से “अपडेट” और “अपग्रेड” दिमाग वाले लोगो के लिए ये सामान्य सवाल हो सकते हैं लेकिन ऐसे मुद्दों पर कई साल बाद में सोचे इससे बेहतर हैं अभी से सोचना शुरू कर लेना चाहिए। जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन को इसे गम्भीरता से लेना चाहिए। पुलिस अधीक्षक महोदय को कम से कम 2005 के बाद से अब तक के पूरे जिले के थानों से रोजनामचे में दर्ज भ्रूण मिलने और भ्रूण मिलने के स्थानों की रिपोर्ट लेकर इसे जांच का विषय बनाना चाहिए।
Suresh Dhaka