मोदी मॉडल किस तरह के यातना शिविर की और ले जायेगा ?

abdul rajjak bhati2013 में कांग्रेस सरकार ने भूमि अधिग्रहण बिल लाया था जिसकी सराहना की गयी थी. इस बिल में 80 फीसदी किसानों की सहमति जरूरी थी … कांग्रेस सरकार ने जमीन का तीन गुणा अधिक मुआवजा देने की बात कही थी पर मोदी सरकार ने उक्त बिल को निरस्त कर नये सिरे से भूमि अधिग्रहण कानून-2013 में संशोधन लाने के लिए अध्यादेश (Govt approves ordinance for land acquisition 29/12/2014 8:16:55 a.m.) लाने का फैसला किया। संसद के शीतकालीन सत्र में भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक लाए जाने की चर्चा थी पर सरकार यह विधेयक नहीं लाई बल्कि संशोधन करने के लिए अध्यादेश की सिफारिश सीधे राष्ट्रपति को भेज दी। जिसका साफ मतलब है केंद्र की मोदी सरकार देश के सिर्फ एक प्रतिशत सुपर रिच (पूंजीपति वर्ग) वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही है। इसलिए उनकी सुविधाओं के लिए श्रम कानून और भूमि अधिग्रहण कानूनों में बदलाव कर रही है.दूसरी ओर गरीब, मजदूर, किसान देश में जगह-जगह आत्महत्या करने को मजबूर हो रहें है भाजपा ने लोकसभा चुनाव समय जो भी वादे किए थे, उनमें से कितने पूरे किए ..?? दस लाख का कोट पहनने वाले… कालेधन की वापसी के रूप में अपनी घोषणा के अनुरूप 15 लाख रुपये भी देश की जनता को नहीं दे पाए.. अब अपने किए हुए वादों को चुनावी जुमले बताने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं .. इसके विपरित मजदूर, गरीब, भूमिहीन किसान के लिए इंदिरा आवास, मनरेगा, स्वास्थ्य व शिक्षा की योजनाओं के बजट में भी 80 प्रतिशत तक कटौती कर दी… पेट्रोलियम पदार्थों पर ज्यादा टैक्स लेकर जनता को ठग रही मोदी सरकार – देश को कांग्रेस मुक्त बनाने से पहले मोदी सरकार को पूंजीपतियों से मुक्त बनाना चाहिए और.गरीब और किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन तुरंत वापिस लेना चाहिए … वापिस लो…वापिस लो…गरीब किसान एकता .. जिंदाबाद .. ….जिंदाबाद…
गरीब और किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन वापिस लो…वापिस लो
मोदी सरकार की यह जिम्मेवारी है कि वह किसान हितों को वरीयता दे और यह सुनिश्चित करे कि किसानों को उनकी लागत और मेहनत का लाभकारी मूल्य मिले..और भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्दी कि टोकरी मे फेंक दे !
क्या बीजेपी अपने चुनाव घोषणापत्र को भूल गई है ? उसने अपने घोषणापत्र के पृष्ठ 27-28 पर कहा है कि उसकी सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि खेती में लागत का 50 फीसदी लाभ हो ? जी हां !! आप ठीक सुन रहे हैं. लेकिन क्या रबी फसलों की एमएसपी इस आधार पर तय की गई है ?
मोदी सरकार ने उम्मीद के विपरीत रबी की फसलों में गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में सिर्फ 50 रूपये प्रति क्विंटल यानी सिर्फ दो फीसदी की बढ़ोत्तरी की है जोकि मौजूदा महंगाई दर के एक तिहाई से भी कम है. इसी तरह चना दाल की एमएसपी में सिर्फ 3.3 फीसदी, मसूर दाल में मात्र 1.7 फीसदी और सरसों में सिर्फ 1.6 फीसदी की बढ़ोत्तरी की गई है.
घोषणापत्र में किसानों की आय बढाने को प्राथमिकता देने की बात कही गई है. इसी तरह घोषणापत्र में कृषि और ग्रामीण विकास में सार्वजनिक निवेश बढाने का वादा किया गया है. इसमें सस्ते कृषि कर्ज और लागत उत्पाद मुहैया कराने के अलावा आधुनिक तकनीक और बीज उपलब्ध कराने का वादा है ? क्या कोई वादा पूरा किया ? नही किया .. !!
काँग्रेस की यूपीए सरकार द्वारा लाया गया भूमि अधिग्रहण बिल को पलट कर अंग्रेजी हुकूमत की तर्ज पर उद्योगपतियों व रसूखदारों को लाभ पहुँचाने के लिए इस केन्द्र की सरकार ने बिना संसद में बहस किए नया भूमि अधिग्रहण बिल पास किया है।
इस बिल से कोई भी किसान मालिक होते हुए भी अपनी जमीन का मालिक नहीं रहेगा। सरकार जब चाहेगी तब किसी भी किसान की भूमि का अधिग्रहण कर छीन लेगी।
सरकार अध्यादेश विशम परिस्थिति में लाती है, ऐसी क्या स्थिति बनी कि सरकार को पूर्व भूमि अधिग्रहण बिल को पलटने के लिए अध्यादेश लाना पड़ा। इससे सरकार व उद्योगपतियों की साँठगाँठ साफ नजर आ रही है अब जिन उद्योपतियों ने बीजेपी को चुनाव में चन्दा दिया था वही उद्योपति अब किसानों की कीमती व उपजाऊ जमीनों को इस सरकार के सहयोग से अधिग्रहण कर लेगे। केन्द्र की यह सरकार सिर्फ उद्योगपतियों की सरकार है
कभी अन्न के लिए विदेशों का मुंह जोहने वाला भारत आज इतना खाद्यान्न उपजा रहा है कि उसके भण्डारण की समस्या खड़ी हो गयी है। यह उपलब्धि देश के किसानों की हाड़-तोड़ मेहनत का नतीजा है, लेकिन विडंबना यह है कि आज किसान ही बदहाल है। उनकी हालत पर घडिय़ाली आंसू तो खूब बहाये जाते हैं किन्तु उनकी दशा सुधारने के लिए गंभीर प्रयास करने की फुरसत इस निर्दयी मोदी सरकार को नहीं।….गरीब और किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन वापिस लो…वापिस लो
किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन वापिस लो…वापिस लो
गुजरात विकास का वह मॉडल नहीं है जिसका प्रचार मोदी की तरफ से सारे देश में किया जा रहा है । गुजरात के रहने वाले किसान, मजदूर और गरीबों का कहना है कि नरेन्द्र मोदी की नीतियों और उनके कार्यकलाप हमारे लिये नहीं बल्कि उद्योगपतियों के लिये है । इस पहलू का ज्ञान यदि गुजरात के बाहर रहने वालों को लग जाए कि गुजरात में विकास का जो मॉडल है वही यदि संपूर्ण देश के विकास का मॉडल बन जाएगा तो उन करोड़ों भारतीयों का क्या होगा, जो आज भी गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं ??
नरेन्द्र मोदी बड़ी उदारता और लोक-लुभावन वादो से किसानों के बुनियादी हितों की उपेक्षा करते हुए, कार्पोरेट जगत को बेशकीमती उपजाऊ जमीनें कौड़ियों के दाम दिए जा रहे हैं । इस समय वहां के किसानों का नारा है कि – जान देना है, मर जाना है पर जमीन नहीं देना है । पहले से ही मोदी हजारों एकड़ जमीन विभिन्न उद्योगों के लिए दे चुके हैं। जहां यह उद्योग स्थापित किया जाना है, वहां के किसानों के साथ गंभीर अन्याय हो रहा है। न सिर्फ उनकी जमीन छीनी जा रही है बल्कि खेती के लिए मिलने वाला पानी भी सीमेंट प्लांट को दिया जा रहा है। सरकार इस बात को छुपा रही है। उद्योगों के लिए जिन लोगों की जमीनें ली गई हैं वे अब कंगाल हो गए हैं ।
एक किसान नेता लालजी देसाई कहते हैं कि जिन्होंने भी जमीन बेची, वे आज रो रहे हैं । उनमें से कई हमारे आंदोलन को समर्थन दे रहे और जोर-जोर से कह रहे हैं कि जो गलती उन्होंने की है वह अब दूसरे किसान न करें । अनेक स्थानों पर किसानों और उन उद्योगपतियों, जिन्हें जमीनें दी गई हैं, के बीच संघर्ष होता रहता है। उद्योगपतियों ने वहां अपने निजी कमांडो को लगा रखा है जो किसानों को जल्दी से जल्दी जमीन खाली करने की धमकी देते रहते हैं। इसी तरह के एक किसान नाथूभाई का कहना है कि एक दिन रात को जब वे अपनी फसल की देखभाल कर रहे थे तब उन्हें पुलिस पकड़कर ले गई और पुलिस थाने में उनकी जमकर पिटाई की गई। पुलिस वाले उनसे कह रहे थे कि – जिस जमीन की तू रखवाली कर रहा है वह अब तेरी नहीं है- वह तो अब मारूति उद्योग की हो गई है ।
किसानो की कमर तोड़ने का काम किया है गुजरात सरकार ने..एक कानून किसानों के लिए ऐसा बनाया है – जिसके प्रावधान किसानों को सरकार का गुलाम बना देते हैं । इस नए कानून के मुताबिक किसान बिना सरकारी मंजूरी के खेतों में बोरवेल नहीं लगा सकता । बिना लाइसेंस किसान नहरों से पानी भी नहीं ले पाएंगे। किसान को कितना पानी दिया जाए,इसका फैसला कैनाल अधिकारी करेगा। यानि किसान को 10 लीटर पानी चाहिए और कैनाल अधिकारी कहे कि 5 लीटर देंगे तो उसे मानना पड़ेगा। इसके अलावा खेतों में इस्तेमाल किए जा रहे पानी का दाम तय होगा। सरकारी बाबुओं को किसानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का अधिकार होगा। इसके अलावा किसानों को अपने खेतों से जुड़े कुंओं और तालाब की जानकारी घोषित करनी पड़ेगी। यानि किसान की मजबूरी होगी कि वह सरकारी बाबुओं को माईबाप मानता रहे। ऐसा लगता है – जैसे अपना नहीं – ब्रिटिश राज हो ??
यह मोदी मॉडल भविष्य में भारतीय लोकतंत्र को किस तरह के यातना शिविर की और ले जायेगा अभी साफ़तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकत हैंl लेकिन किसानों के विरुद्ध लिए जा रहे निर्णय को देखकर ऐसा लगता है की संकेत खतरनाक जरुर हैं ??
गरीब और किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन तुरंत वापिस लेना चाहिए … वापिस लो…वापिस लो…गरीब किसान एकता .. जिंदाबाद .. ….जिंदाबाद
अब्दुल रज़्ज़ाक भाटी 
अजमेर
सदस्य काँग्रेस सायबर टीम राजस्थान
मो:09828147426

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