मतिभ्रम की ओर एक कदम ?

sohanpal singh
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आज 19/7/2015 के अंग्रेजी दैनिक समाचार प11त्र हिन्दुस्तान में एक जाने माने पत्रकार संपादक रामचंद्र गुहा का एक लेख छपा है ! उन्होंने शिक्षा और सांस्कृति के क्षेत्र में हो रहे गिरावट के लिए प्रकाश डाला है ! वे एक जगह लिखते है की एक समय में जब “एक पत्रकार से अनोपचारिक वार्तालाप के अंतर्गत उस समय के शिक्षा मंत्री अर्जुन सिंह ने आई सी एच आर के मुखिया के लिए सुझाव माँगा तो पत्रकार ने गुहा का नाम सुझाया इस पर अर्जुन सिंह ने कहा आरे ये तो इंदिरा गांधी के खिलाफ बहुत लिखते है। तब एक दूसरे नाम को बताया तो मिनिस्टर फिर बोले यार ये व्यक्ति तो नेहरू के खिलाफ बहुत लिखता रहा है ?

कहने का मतलब यह है कि सरकार कोई भी रही हो वह अपने समर्थक व्यक्तियों को चुनिंदा संस्थानों में अध्यक्ष या चेरमेन की कुर्सी नावजति रही है फर्क केवल यह होता था की व्यक्ति सक्षम होता था कुछ अपवादों को अगर छोड़ दिया जाय तो कुल मिला कर यूं पी ए का रिकार्ड किसी हद तक आलोचना से परे कहा जा सकता है !

लेकिन अगर राजग (NDA-1) रिकार्ड देखे तो हम एसश०पी०सिहँ पाएंगे कि अटल बिहारी बाजपेई जी के ज़माने में भी जो नियुक्तियां हुई उनकी अगर कोई प्रसंसा नहीं कर सकता तो उन पर ऊँगली भी कोई नहीं उठा सकता था?
1-प्रोफेसर एम् एल सोंधी । चेयरमैंन आई सी एस एस आर
2- एम् एस जी नारायणन ! चेयरमैन आई सी एच आर
3- जी सी पांडे ! चेयरमैन Indian Institute of Advanced Studies

लेकिन इसके विपरीत जो नियुक्तिया (NDA-2) ,,के समय में हो रही है उस पर हर कोई ऊँगली उठा रहा हा चाहे। वह शिक्षा मंत्री हो जिनकी शिक्षा को ही लेकर विवाद खड़ा हो चूका है और अब तो मामला कोर्ट तक भी पहुँच चूका है तो ऐसे शिक्षा मंत्री के कार्यकलाप कैसे होंगे उन पर कहने को कुछ बचता ही नहीं है !इस बात से यह भी सिद्ध होता है की भारत में राजनीति के लिए विद्ववान होने के कोई मायने नहीं है?

यह तो सर्विदित है कि वर्तमान सरकार आर एस एस द्वारा निर्धारित एक निश्चित एजेंडे की ओर अग्रसर है जिसमे हिंदुत्व सर्वोपरि है होना भी चाहिए क्योंकि दक्षिणपंथ का सारा दारोमदार ही हिंदुत्व राग ही है ! इसी लिए जब ए०सुदर्शन राव की नियुक्ति ईन्डियन इनस्टीट्यूट हिस्टोरीकल रिसर्च के चेयर मैन के पद पर हुई तो खूब आलोचना हुई थी । इसके बाद आर एस एस की प्रष्ठभूमि के श्री बलदेव शर्मा की नियुक्ति नेसनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन के पद पर हुई तो आलोचना तो होनी स्वभाविक ही है । तीसरी नियुक्ति हुई है पुणे के भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान मेश्री गजेन्द्र चौहान की जिसका विरोध वहां अध्यनरत छात्र और छात्राएं जमकर कर रहे है और संस्थान मे हडताल की हुई है । लेकिन सरकार ने अपने कान बंद कर लिए है साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि जिनको पढना हो पढे और जिनको जाना हो संस्थान छोड कर चले जांय ।

इसलिए हम कह सकते है कि सरकार अपने हिंदुत्व के एजेन्डे के माध्यम से कुछ संस्थानो के स्वरूप को। विक्रत करने का पर्यास कररही है ।जिसका परिणाम सुखद तो नहीं हो सकता । एस०पी०सिहँ । मेरठ

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