सम्मान लौटाने का सिलसिला इतना बढ़ चुका है कि अब वह नाटक लगने लगा है

तीर्थ गोरानी
teerth gorani
मोदी सरकार व संघ परिवार की नीतियों के विरोध में लेखकों व अन्य बुद्दि जिवियो का पुरस्कार व सम्मान लौटाने का सिलसिला इतना बढ़ चुका है कि अब वह नाटक लगने लगा है .ऐसा लगता है कि अवार्ड लौटाकर हर कोई अल्पसंख्यको की नजर में चढ़ना चाहता है .राजनेताओं के लिये तो ठीक है मगर बुद्दिजीवीयो के लिये ये लालच अच्छी बात नहीं है .लगातार पुरस्कार लौटाने की ये होड़ असली खतरे से ध्यान बँटा रही है . अगर नारायण मूर्ति व राजन जैसे गैर राजनीतिक लोग कहते हैं कि अल्पसंख्यक खतरे में हैं तो इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिये . मोदी को पूर्ण बहुमत मिलने से मोदी भले ही गलतफ़हमी में न हों ,भाजपा, संघ, विहिप व तमाम हिन्दुत्ववादी संगठन जरूर गलतफ़हमी में हैं. इनका अजेंडा मोदी से अलग है . इनके लिये अभी नहीं तो कभी नहीं या करो या मरो वाली स्थिति है और असली खतरा यही है . लेखकों पर हमले , जाहिर व उनकी प्रतिक्रिया में अवार्ड लौटाने जैसे अतिवादी कदम को भूल भी जायें मगर इनदिनों सोशल मीडिया को गौर से देखें तो समझ जायेंगे. Watsapp , hike etc पर कुछ पोस्ट लगभग ग्रुप में नजर आयेगी .जाहिर तौर पर तो पंचांग, भारत का इतिहास , संस्कॄति , महापुरुष आदि की बात करती नजर आती है मगर नजरिया वही संकीर्ण और एकपक्षीय है . संस्कॄति का मतलब ये नहीं है कि हम यज्ञ से देवता प्रकट होने , पृथ्वी को समुद्र में डालने , पिंड को हन्डियो में गाड़कर रखने के बाद सौ पुत्र होने आदि अनगिनत अवैज्ञानिक बातों को पढ़ें और बिना सोचे समझे अगले ग्रुप में शेयर कर दें . जिसे हम संस्कॄति मानकर खुश होते हैं या इग्नोर करते हैं उन्हीं की आड़ में चुपके से गलत तथ्य भी दिमाग में डाल दिये जाते हैं .जैसे कि ये मिथक कि हिंदू हमेशा से सहिष्णु रहे हैं और हमने किसी पर कभी हमला नहीं किया है , या फिर ये कि संस्कृत सबसे पुरानी भाषा है . इतिहास की कसौटी पर ये दोनों तथ्य नहीं भ्रम है . एक और बात गौर से देखे, किसी वक्त किसी लेखक , पत्रकार , शिक्षक आदि किसी भी तरह के कट्टरपंथ से अपना नाम जुड़ना अपना अपमान समझते थे . लेकिन अब कई बुद्दिजीवी खुलेआम ऐसे संगठनों की सदस्यता ग्रहण करते है. संघ की शाखाओं में अब पत्रकार भी देखे जाते हैं और सरकारी शिक्षक भी . कमोबेश यही हालत अन्य धर्मों के साथ भी है . ऐसे में अगर नारायण मूर्ति , राजन , मुनव्वर राणा या गुलजार जैसे लोगों को आने वाले खतरे का आभास होता है तो उसे मोदी विरोध मानकर हल्के में नहीं लिया जाना चाहिये . वैसे अगर कट्टरपंथी अजेंडा खुद मोदी के ही खतरा है बशर्ते वे उनके खेल का हिस्सा न हों .
पत्रकार तीर्थ गोरानी की फेसबुक वाल से साभार

error: Content is protected !!