भारत के वित्त मंत्री एंव भाजपा नेता का कथन कि न्यायपालिका संवयम के क्षैत्राधिकार के परे कार्यपालिका व विधायका के क्षैत्राधिकार में अनावश्यक हस्त़क्षेप कर रह है तथा एक दिन वह होगा जब संसद को मात्र बजट व वितीय कार्य का ही अधिकार रहेगा, सुनकर मुझ को बड़ा आश्चर्य हुआ क्यों कि उत् अभिव्यक्ति संवयम की असफलता का सूचक है तथा वैचारिक क्षमता का पैमाना है। न्यायपालिका की सक्रियता दर्शाती है कि सरकार के दोनो अंग संवयम के उतरदायितव निर्वहन में पूर्णत: विफल होने की दशा में न्याय पालिका को जन सुरक्षा के मुद्दों में हस्तक्षेप करने को बाध्य होना पड़ रहा है। उच्च परिस्थिति में सरकार को आत्म चितंन करना चाहिये तथा राष्ट्रीय हित को सर्वोपरी अनुभव करते हुये आलोचना अथवा सत्ता मोह त्याग कर सामयिक निर्णय लेने चाहिये जिनका मूल आधार राष्ट्रीय हित हो ,न कि राजनैतिक स्वार्थ ।सरकार की संसद का फ़्लोर मेंनेजमेनट विफल रहा है।सरकार का स्वरूप प्रजातांत्रिक न होकर एकल व्यक्तिवादी होकर रह गया है।देश के सामाजिक, आर्थिक मुद्दे जैसे भंयकर अकाल , सामाजिक सुरक्षा पर भी न्याय पालिका की सक्रियता सरकार की उदासीनता या निष्क्रियता या अयोग्यता का परिचायक है।लोक सभा में व्यापक बहुमत के उपरांत भी सदन में गंभीर चितंन, विचार विमर्श का अभाव विफलता का प्रमाण है। जिससे सत्ताधारी दल की विफलता दर्शाती है।
सत्य किशोर सक्सेना , एडवोकेट , अजमेर (राज)9414003192