सागर मंथन “अक्षुण लोकतंत्र”

sohanpal singh
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अब ऐसा लगता है कि हम एक जीवंत लोकतंत्र में प्रवेश द्वार के पास पहुँचने को आतुर है ! ठीक भी है कि कार्य पालिका जब विधायिका की पीठ पर बैठकर लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपने हित साधन के रूप में तोड़ने मरोड़ने लगे तो लोक तंत्र के तीसरे स्तम्भ को अपनी भूमिका लेनी ही पड़ती है ! हम बात कर रहे हैं पूर्वोत्तर एक राज्य अरुणाचल प्रदेश की सरकार को जिस प्रकार से वहां के गवर्नर यानि की राज्य के राज्यपाल के असंवैधानिक निर्णय के कारण सरकार को बर्खास्त कर दिया था आज माननीय उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया है की अरुणाचल प्रदेश में 15 अगस्त 2015 की स्थिति बहाल की जाए यानिकि पूर्व मुख्य मंत्री नबाब तुकी की सरकार को बहाल किया जाए यह फैसला पांच विद्वान न्यायधिशों की पीठ ने सर्वसम्मति से दिया है। केंद्र की सकार के लिए यह बहुत आत्मग्लानि की बात तो है ही गुजरात के तड़ीपार के लिए तो यह चुल्लूभर पानी में डूब मरने की बात होगी ? हाँ एक बात का संतोष है की हमारे नेतागण नैतिकता में कितना ही गिर जायँ लेकिन न्यायपालिका लोकतंत्र को अक्षुण रखने में सक्षम है ।

एस.पी .सिंह। मेरठ

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