तो क्या अब सूचना और जनसम्पर्क का कार्य, ठेके पर चला जाएगा

” गलती करना मनुष्य का स्वभाव है। की हुई गलती को मान लेना और ऐसा आचरण रखना कि, गलती फिर से न होने पाये, मर्दानगी है।”
—— महात्मा गाँधी।

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
जयपुर । समाचार पत्र ‘लोकतन्त्र ‘ का चौथा स्थम्भ माना गया है, जनता की आवाज और सच्चाई उगलने वाले अखबारों पर अपना शिकन्जा कसने को राजस्थान की वसुन्धरा सरकार अब सूचना और जन सम्पर्क का कार्य भी ठेके पर देने को कमर कस रही है! ताजा ताजा सचिवालय में हुई एक गोपनीय बैठक से खुद जनसम्पर्क का भारी भरकम विभाग भी सकते में है ! इधर सरकार ने पहले ही – सोशल मीडिया प्रकोष्ठ को ठेके पर दिया। और अब सरकारी योजनाओं के – विज्ञापन एवं प्रचार प्रसार का काम भी निजी कम्पनी के हाथों में सौंपने की तैयारी है। ताकि बाद में उठने वाले विरोध के स्वर कम्पनी का नाम लेकर दबाये जा सकें। यानी ‘मीडिया पर नकेल’ की तैयारी।
फिलहाल यह तो हुई सरकारी प्रयास की बात, लेकिन इधर ‘राजस्थान पत्रिका’ जैसे सच्चाई उगलने वाले प्रतिष्ठित समाचार पत्र के विज्ञापन बन्द करके राज की मुखिया ने कटौती की तलवार लटका दी है। अब यह कोई मानने को तैयार नहीं कि, बिना केन्द्र की नजरों में आए यह कैसे संभव हुआ है।
यह सही है,कि, जब आप किसी धारा के विरूद्ध चलने का प्रयास करेंगे तब, विरोध के स्वर भी उठना शुरू होंगे ही। फिर समाचार पत्र का गला घोंटनै का यह प्रयास तो क्या लोकतन्त्र की हत्या की कोशिश नहीं है ? भला कैसे मान लेगा कोई । ‘पत्रिका’ के – विरुद्ध सरकार की इस घिनौनी मुहिम के विरोध मे कई जागरूक जन और नेता उतर आए हैं।
उदयपुर के भाजपा नेता, धर्म नारायण जोशी ने कहा है,कि, – “यह दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय है।मेरे अबतक राजनीतिक अनुभव के हिसाब से मीडिया की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाना, लोकतन्त्र का खात्मा करने समान है।” झाड़ोल विधायक हीरालाल दरांगी ने माना कि, -” मीडिया पर दबाव बनाने का जो काम केन्द्र और राज्य सरकार कर रही है,वह सर्वथा गलत है। खबरों के आलोक में खुद की कमियाँ दूर करने के बजाय, मीडिया पर दबाव बनाने को विज्ञापन बन्द करने का घिनौना काम पहले किसी ने नहीं किया।”
इसी क्रम में पूर्व मंत्री, दयाराम परमार कहते हैं कि, -“राजस्थान पत्रिका,आम आदमी की आवाज है।हर आदमी तक इसका मैसेज पहुँचता है। सरकार को चाहिये कि, अब इसे विज्ञापन देना शुरु करे। आज प्रजातन्त्र है और इसमें सरकार ऐसी कोई पाबंदी नहीं लगा सकती ।”
विरोध के स्वर ,पूर्व सांसद रघुवीर मीणा के भी आए, कहा,-“अखबार से व्यक्तिगत दुश्मनी पालकर कार्यवाही करना लोकतन्त्र के लिये बड़ा – खतरा है। सरकार लोकतन्त्र में एक प्रकार से, क्या तानाशाही पैदा करना चाहती है।” प्रदेश काँग्रेस प्रवक्ता, प्रतापसिंह खाचरियावास अपने विचार व्यक्त करते कहते हैं- ” पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक, गुलाब कोठारी ने अपने अग्रलेख में जो विचार व्यक्त किये हैं, वो लोकतन्त्र की जुबान है। लेख में उन्होंने सच को बेबाक तरीके से पेश किया है। इमरजैंसी की बात पूर्णत: सत्य है। चूँकि, लोकसभाध्यक्ष का एक सांसद को बात उठाने का मौका न देना, और पटल परकागज प्रस्तुत करने के बावजूद स्पष्टीकरण न आना और क्या है ?” बकौल शांतिलाल चपलोत, पूर्व विस अध्यक्ष,- “मैं सरकार के इस काम को ठीक नहीं मानता। अभिव्यक्ति का अधिकार है और इसको लेकर विज्ञापन रोकदेना अच्छी बात नहीं है।”
प्रदेश काँग्रेस उपाध्यक्ष, रघु शर्मा का इसी मसले पर कहना रहा, कि, -” राजस्थान पत्रिका सच सामने ला रहा है, सरकार के कारनामों को जनता के सामने लाने पर विज्ञापन बन्द करना तानाशाही जैसा है। सरकार को पुनर्विचार करना चाहिये।” माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के, पूर्व अध्यक्ष प्रो. पी एस वर्मा मानते हैं कि, -” राजस्थान पत्रिका के सम्पादक, गुलाकोठारी,
ने जो तथ्य उजागर किये हैं वो वाकई लोकतन्त्र की दृष्टी से, चिंताजनक हैं। अखबार का काम सच उजागर करना है।” इसी क्रम में प्रदेश काँग्रेस कमेटी सचिव, इन्द्राज गुर्जर ने मानना रहा कि,-” भाजपा सरकार ने, राज. पत्रिका के विज्ञापन बन्द कराकर साफ जाहिर कर दिया है कि, जनता की आवाज कोई ना उठाए। उसके साथ भी यही सलूक होगा।”
लगता है ,इसी मसले पर हर रोज होती- अपनी फजीति से, बचने को सरकार ने जन सम्पर्क विभाग ही ठेके पर देने की ठानली बताई। अब क्या कीजे सरकार जो ठहरी।

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