रियो ओलंपिक मेँ पदक की “बौनी” होना अभी भी बाक़ी है

rioरियो ओलंपिक मेँ पदक की “बौनी” होना अभी भी बाक़ी है। कोई कहता है खिलाड़ियोँ की तैयारी में कमी है..तो कोई कहता है कि संसाधनों की कमी है..यहाँ तक कि कोई खिलाड़ियों की योग्यता पर ही खिल्ली उड़ा रहा है।…सचमुच दुख होता है ये सब देखकर..। अधिकांशतः इस तरह की बातें उनकी तरफ से आ रही हैं जिनका खुद का कोई योगदान न तो खेलो क लिए है और न ही खिलाड़ियों के लिए। कितना हास्यास्पद है कि देश के जिन घरोँ मेँ टीवी खोलकर पदक की आस लगाए लोग बैठे हैँ उनके घर का बच्चा बगल वाले कमरे मेँ ध्यान से पढ़ने बैठा होगा कि मम्मा और पप्पा को 99 प्रतिशत अंक ला के दिखाना है…वास्तव में ऐसा किया जाना या होना ग़लत नहीं है..पर ऐसे में हम भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर कटाक्ष करने की पात्रता तो कम से कम नहीं रखते..।
..”सवा सौ करोड़ की आबादी वाला देश और पदक एक भी नहीँ” ये बोल उन योद्धाओँ के लिए जो ओलंपिक जैसे महामंच पर दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिभाओँ से टकरा रहे हैँ…न्यायपरक नहीँ लगते..। कोई अतिरिक्त न ले पर हमारे इन खिलाड़ियों ने ओलंपिक की पात्रता हासिल की थी..किसी की अनुकंपा पर इन्हें ये उपलब्धि नहीँ मिली। सोचना तो हम सबको है कि हमारा खुद का इन खिलाड़ियों, इन खेलों और इन उम्मीदों के लिए कितना योगदान है। वैसे भी अधिकांशतः जिस घर मेँ पैसा है, सुविधा है, साधन हैं..उस घर के बच्चे IAS,IPS,IIT,DOCTER,IIM,DANCER,HERO, या POLITICIAN बनने मेँ लगे हैँ..और जिनके पास सुविधा नहीँ है, साधन नहीँ हैं..उनके बच्चे आपके गौरव का बोझ लिये..देश का मान लिए दुनियां के सबसे बड़े खेल मंच पर लड़ रहे हैँ,..ऐसे मेँ सचमुच नमन करिये उनको।..गौर कीजियेगा कि इस मंच के आखिरी मुकाबले में पहुँचना भी बहुत बड़ी बात है..आपके इस सपूत ने दुनियां के चुनिंदा खिलाड़ियों में अपना स्थान बनाया है। नि:संदेह मैडल का अपना गौरव है पर दुनियाभर में कोई स्थान रखना भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। हमारे प्रधानमंत्री ने हमारे खिलाड़ियों पर गर्व व्यक्त किया है…बिलकुल यही भावना रियो में जान लड़ा रहे हमारे खिलाड़ियों के प्रति हमारी भी होनी चाहिए..। वे लड़े हैं..समर्पण नहीं कर रहे हैं..। …सचमुच सभी प्रोत्साहन और प्रशंसा के पात्र हैं..। हमें ईमानदार समीक्षा करनी होगी हमारे प्रयासों की..न की खिलाड़ियों की आलोचना।..हर एक को अपनी जवाबदेही को समझना होगा..और केवल उपेक्षा अथवा कटाक्षों के व्यवहारों से बचना होगा।..फिर शायद हम कुछ न्यायपूर्ण परिणाम हासिल कर पाएं।…वैसे देखना तो ये भी होगा कि ओलंपिक पर आस लगाकर अपनी प्रतिष्ठा देखने वाले इस देश मेँ किस दिन किसी IAS का बेटा कुश्ती खेलेगा, IIT का लड़का तैराक बनेगा और कब कोई डॉक्टर अपनी बच्ची को बॉक्सर बनाने की हिम्मत दिखायेगा।…क्या कभी ऐसा हो पाएगा ? …चिंतन योग्य प्रश्न है…और समाधान हमको ही खोजना है ।

…प्रशान्त सेंगर,
खेल पत्रकार
व स्पोर्ट्स कंमेंटेटर
DD Sports
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