आ गया स्वतंत्रता दिवस, कल चला जाएगा …

IMG-20160814-WA0033आज़ादी के 69 साल बाद आज दिन में 14 अगस्त को मैं जब शहर के कचहरी रोड से होता हुआ बस स्टैंड की तरफ जा रहा था तो पानी की बोतल खरीदने के लिए एक जगह रुका, देखा की पास ही एक धोबी की दुकान में एक व्यक्ति तिरंगा प्रेस कर रहा था जो की हालत से ऐसा लग रहा था कि काफी समय से धुला नहीं था। उस पर दाग लगे हुए थे । मुझसे रहा नहीं गया , मैंने झट से प्रेस करते हुए उस देशभक्त से पूछा – “श्री मान जी ये झंडा आप मैला ही प्रेस कर रहे हैं ? किस ग्राहक ने दिया है आपको ? कोई नेता है या कोई अधिकारी ?” सुन कर वो बोला ” भैया जी जिस किसी का है सुबह आया था हाव भाव से तो कोई पुलिस का जवान लग रहा था वर्दी में नहीं था और कह रहा था की साहब के दफ्तर से आया हूँ ,पता नहीं कौन था , पैसे तक नहीं देना चाहता था धुलवाई और प्रेस के। जब मैंने कहा तो मुझसे कहने लगा की “तिरंगा धोने और प्रेस करने के भी पैसे लोगे क्या ? ”

“फिर क्या हुआ” – मैंने पूछा

तो बोला -” होना क्या है साहब, इस बात पे मैंने कहा उनसे की नया क्यों नहीं खरीद लेते साहब इसको कितना भी धो कर दे दूँ ये दाग नहीं जाएंगे, बात पैसे न लेने की तो उस में कोई ऐतराज़ नहीं हमें लेकिन आप तो इतने बड़े है साहब आप तो कम से कम सोचिये ये ऐसे कैसे अच्छा लगेगा।”
इस बात पर वो व्यक्ति नाराज़ होकर बड़बड़ाने लगा और इसी झंडे को प्रेस करके तैयार करने को कह कर चला गया ।

बारिया धोबी की ये बात अंदर तक हिला के रख देने वाली लगी मुझे। आज आज़ादी के इतने वर्ष बाद भी अगर हम एक सरकारी तंत्र से जुड़े हुए ज़िम्मेदार नागरिक की सोच नहीं बदल पाये तो आखिर हमने इतने समय में क्या किया।
दर असल कमी किसी सरकार में या किसी एक इंसान में नहीं है।
इस रेगुलर और आम धारणा का न बदल पाना इस पूरे सिस्टम में देश के प्रति भावना और समर्पण का अभाव दर्शाता है।

मुफ्त में सेवा लेकर देश भक्ति का पाठ एक ऐसे व्यक्ति को पढ़ाया जाता है जो अपनी व अपने परिवार की आजीविका कपड़े धोकर प्रेस कर के कमा रहा है। और पढ़ाने वाला भी कोई और नहीं उसी पड़े लिखे सिस्टम का हिस्सा है जो सब कुछ चला रहा है।
जिसके बावजूद वो गरीब व्यक्ति तो खरा उतर रहा है परंतु वो ताक़तवर संभ्रांत व्यक्ति फेल हो रहा है।
मुझे यह सोचकर बहुत बुरा लगा की ऐसा देशभक्ति का पाठ उन नेताओं को क्यों नहीं पढ़ाया जाता जो जनता का विश्वास जीत कर झूठे वादे कर पहले तो सत्ता में आते हैं फिर अपने हित साधन हेतु करोडो अरबों रुपये के घोटाले करते हैं। ऐसे अधिकारी वर्ग को क्यों नहीं पढ़ाया जाता जो अपनी विद्या के दम पर राजकीय अधिकारी बनते हैं और उसके बाद उस पद का उपयोग कर के ठेकेदारों के साथ मिलकर जनता का कमाया धन किसी नेता की आड़ में या किसी नेता पर दोष मढ़ कर हजम करना शुरू कर देते हैं।
मुख्या मंत्री के आने के एक दिन पहले तो जैसे जादू की छड़ी सी घूमती दिखाई देती है। नारियल के पेड़ ऐसे लगा दिए जाते हैं जैसे की गमले में पौधे रोपे जाते हैं।पर्यावरण के नाम पे करोड़ों रूपये डकार चुकी ये भ्रष्ट व्यवस्था ऐसे सबकुछ सजा के पेश करती है जैसे की कोई फ़िल्मी सेट हो।
खैर ये फिल्म हिट हो न हो हर व्यक्ति अपनी अपनी जगह व्यवस्था कर के फिट ज़रूर नज़र आ रहा है। ऐसे में ज्यादा उम्मीद करना ज्यादती है।

बावजूद इसके मैं जब हर साल स्कूल के बच्चों को 15 अगस्त के दिन परेड ग्राउंड में देखता हूँ तो लगता है की आज के इस दिन के लिए ही शायद हमारे शहीदों ने लड़ झगड़ के, कुर्बानियां देकर ये आज़ादी हासिल की थी।कम से कम ये बच्चे ही सही आज़ादी का दिन बिना किसी औपचारिकता और स्वार्थ के मना रहे हैं।

नरेश मधुकर
नरेश मधुकर
मेरी परम पिता परमेश्वर से आज आज़ादी की पूर्व संध्या पर ये प्रार्थना है कि ईश्वर इन बच्चों को आने वाले कल की कमियों और इस सिस्टम में लगे जंग से बचाये ताकि इनकी देशभक्ति को कभी जंग न लगे।
जय हिन्द
आज़ादी की 69 वी वर्ष गाँठ पर मंगलकामनाओं साहित्

नरेश मधुकर

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