मुस्लिम समुदाय को ओढना होगा आधुनिकता का बुरका

ब्रह्मानंद राजपूत
ब्रह्मानंद राजपूत
तीन तलाक सामजिक, धार्मिक और राजनैतिक स्तर पर आज का सबसे बड़ा चर्चा का विषय है। इस विषय पर सार्वजनिक चर्चा होनी चाहिए। क्योंकि तीन तलाक सीधे-सीधे मुस्लिम महिलाओं की जिन्दगी पर असर डालता है। जिस प्रकार से हमारे संविधान में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और सभी धर्मों को समानता दी गयी है। उसी प्रकार स्त्री और पुरुषों की समानता की बात की गयी है। मगर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस संवैधानिक समानता को तार-तार करता है और संवैधानिक नियमों की धज्जियाँ उड़ाता है। कहा जाए तो मुस्लिम पर्सनल लॉ ने मुस्लिम महिलाओं को बंधक बना रखा है। महिलाओं के पहनावे से लेकर उसका जीवन स्तर कैसा होगा सब मुस्लिम पर्सनल लॉ तय करता है। और मुस्लिम समाज के पुरुषों का एक बड़ा तबका सहित तमाम रूढ़िवादी सोच वाली महिलाएं मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देकर मुस्लिम महिलाओं पर तीन तलाक और बहुविवाह जैसे दकियानूसी कानूनों को थोपते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कानून से मुस्लिम महिलाओं को तमाम अत्याचार झेलने पड़ते हैं। तीन तलाक तो इसकी पराकाष्ठा है। साथ ही साथ मुस्लिम पुरुष समाज को एक पत्नी होते हुए बहुविवाह की आजादी भी मुस्लिम महिलाओं पर अत्याचार है। आज मुस्लिम समाज की आधुनिक सोच की महिलाएं इन कानूनों के विरोध में आगे आ रही हैं। यह काबिलेतारीफ है। उनके साहस को मुस्लिम समाज सहित सम्पूर्ण देश को समर्थन करना चाहिए।
अभी-अभी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ‘‘तीन बार तलाक’’ देने की प्रथा पर प्रहार करते हुए एक फैंसले में कहा है कि इस तरह से ‘‘तुरंत तलाक’’ देना ‘‘नृशंस’’ और ‘‘सबसे ज्यादा अपमानजनक’’ है जो ‘‘भारत को एक राष्ट्र बनाने में ‘बाधक’ और पीछे ढकेलने वाला है।’’ इलाहाबाद उच्च न्यायाल ने तीन तलाक पर जी टिप्पणी की है वह स्वागत योग्य है। जिस प्रकार से इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तुरंत तीन तलाक को ‘‘नृशंस’’ और अपमानजनक बताया ह,ै इससे लगता है कि तीन तलाक पर देश में बहस लंबे समय तक खिंचने वाली है।
न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की एकल पीठ ने पिछले महीने अपने फैसले में कहा था कि, ‘‘भारत में मुस्लिम कानून पैगम्बर या पवित्र कुरान की भावना के विपरीत है और यही भ्रांति पत्नी को तलाक देने के कानून का क्षरण करती है।’’ जो न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की एकल पीठ ने कहा वह एकदम सही है। क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा मुस्लिम समाज में लागू किया जाने वाला पर्सनल लॉ पैगम्बर या पवित्र कुरान का काफी हद तक अनुसरण नहीं करता। आज के आधुनिक समय में जिस प्रकार से तीन तलाक और बहुविवाह द्वारा मुस्लिम महिलाओं पर अत्याचार होते हैं, जो कि कुरान के बिल्कुल विपरीत है। कुरान कभी भी महिलाओं पर अत्याचार की अनुमति नहीं देता। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रूढ़िवादी सोच के लोग धार्मिक स्वतंत्रता का नाम देकर तीन तलाक जैसे दकियानूसी कानूनों को अमलीजामा पहनाते हैं। जो की गलत है। अंग्रेजों के जमाने में हिन्दू सती-प्रथा तथा बाल-विवाह पर बंदिश के कानून का हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा विरोध हुआ था। आजादी के बाद प्रगतिशील और आधुनिक सोच रखने वाले लोगों के कारण हिंदू सिविल कानून भी कट्टरपंथियों के विरोध के बावजूद पारित हुआ। ऐसे ही आज मुस्लिम धर्म सहित अन्य धर्मों में प्रगतिशील और आधुनिक सोच का अनुकरण करने वाले लोगों की जरुरत है। अगर देश में सामान नागरिक संहिता नहीं तो कम से कम मुस्लिम सिविल कानून तो लागू हो। जिससे की मुस्लिम समाज सहित अन्य अल्पसंख्यकों को रूढ़िवादी कानूनों के बोझ न दबना पड़े।
किसी भी समाज में केवल अति आपात स्थिति में ही तलाक देने की अनुमति है। लेकिन मुस्लिम समाज में तलाक एक आम चीज हो गयी है। जब मन करता है तब पुरुष साथी महिला पर तीन तलाक थोप कर आजाद हो जाता है। जो की मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय है। इस पर मुस्लिम समाज के बुध्दिजीवियों को रोक लगानी चाहिए। जिससे की मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक जैसे अपमान न झेलने पडें।
मुस्लिम पुरुष को अपनी इच्छा से जब चाहे, एकतरफा तुरंत तलाक देने की शक्ति की धारणा गैर इस्लामिक है। यह आम तौर पर भ्रम है कि मुस्लिम पति के पास कुरान के कानून के तहत शादी को खत्म करने की स्वच्छंद ताकत है।’’ कुरान कभी भी एक तरफा तुरंत तीन तलाक की इजाजत नहीं देता। तीन तलाक के विरोध में मुस्लिम महिलाओं का देश में देश में आगे आना अच्छे संकेत हैं। देश में हजारों मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के विरोध में मुहिम चला रही हैं। जो कि काबिलेतारीफ है।
पिछले दिनों तीन तलाक के विरोध में मेरे लिखे लेख को एक उर्दू दैनिक समाचार पत्र में पढ़कर एक कश्मीरी मुस्लिम महिला ने मुझे फोन किया। उसने बातचीत में बताया कि उसकी उम्र 21 साल है। उसके पति ने इसी तीन तलाक का फायदा उठाकर उसे तलाक दे दिया है। उसका 1 साल का बच्चा भी है। लेकिन उसके पति ने दूसरी महिला से शादी करने के लिए उसे और उसके एक साल के बच्चे को त्याग दिया। वह महिला बहुत ही दुखी थी। साथ ही साथ दकियानूसी मुस्लिम पर्सनल लॉ का विरोध भी उसकी आवाज में था। उस महिला ने तीन तलाक के विरोध में लिखे मेरे लेख की भी तारीफ की और तीन तलाक के विरोध में लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया। उसने बताया कि पूरे जम्मू कश्मीर में सैंकड़ों मुस्लिम महिलायें तीन तलाक और बहुविवाह के अत्याचार से पीड़ित हैं। भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा मुस्लिम समुदाय है, इसलिए नागरिकों का बड़ा हिस्सा और खासकर महिलाओं को निजी कानून की आड़ में पुरानी रूढ़िवादी कानूनों और सामाजिक प्रथाओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। इक्कीसवीं सदी में समय के साथ मुस्लिम लोगों को भी आधुनिकता का बुरका पहनना होगा। अगर मुस्लिम लोग वही पुराने रीति-रिवाजों और कानूनों का बुरका ओढ़े रहे तो मुस्लिम समुदाय और पिछड़ जाएगा। अगर मुस्लिमों को आगे बढ़ना है तो पुरुषों और महिलाओं के सामान अधिकारों की बात करनी होगी। और अपने समुदाय में समानता लानी होगी। देश का असली मूड यह है कि लोग इस तीन तलाक को खत्म करना चाहते हैं। लोग किसी धर्म के आधार पर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव नहीं चाहते। मुस्लिम समाज में मुद्दे लैंगिक न्याय, अपक्षपात और महिलाओं के सम्मान के हैं। आज जरुरत है मुस्लिम समुदाय और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को तीन तलाक को खत्म करना चाहिए, और अपने निजी कानूनों को संवैधानिक दायरे में लाना चाहिए। तभी मुस्लिम समाज का पिछड़ापन खत्म होगा।
– ब्रह्मानंद राजपूत, दहतोरा, शास्त्रीपुरम, सिकन्दरा, आगरा

1 thought on “मुस्लिम समुदाय को ओढना होगा आधुनिकता का बुरका”

  1. Abe sale hamare nabi ke kanoon ko torne wale ko sazaye mauet di jayega
    agar hamare shriyat ke kanoon se se hera pheri hua to samjho ki kayamar aajyegi
    zihad zihad zihad
    shuru ho jayegi
    fir tumhare naslo ko khatam kar denge

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