जो भाजपा जातिवाद की खिलाफत करती थी, आज सबसे वही इसका शिकार हो रही है । राजनीति में बातें बनाना आसान होता है, लेकिन जब खुद उन बातों पर खरा उतरना हो तो राजनीतिक पार्टियां अपने उसूल, सिद्धांत ,विचारधारा सब भूल कर सिर्फ वोटों की चिंता करती है । और वोटों के इस समीकरण को बनाने में भले ही सामाजिक समीकरण बिगड़ जाए, उसे इसकी चिंता नहीं होती।
सोचिए जिस भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर इतना घोर जातिवाद चल रहा है, उस पार्टी में विधानसभा चुनाव के टिकट बंटवारे में क्या हालत होगी । मुख्यमंत्री जनसंवाद कार्यक्रमों में पार्टी को कुछ हासिल हुआ या ना हुआ हो ,लेकिन जाति के नाम पर हुए इन संवादों ने भाजपा की मुसीबतों को और बढ़ाया ही है।
ओम माथुर/9351415379