बुलेट ट्रेन नहीं, सेना को बुलेट प्रूफ जॉकेट चाहिए

रोज हमारे जवान शहीद हो रहे हैं, क्यों नहीं ठोस कदम उठाती है सरकार

प्रेम आनंदकर
जम्मू कश्मीर में रोज हमारे वीर जवान शहीद हो रहे हैं। भले ही हमने रमजान के पवित्र माह को देखते हुए गोली नहीं चलाने का फरमान देकर इंसानियत दिखाई हो, लेकिन पाकिस्तान इस्लामी देश होने के बावजूद हिंसा करने से बाज नहीं आया और उसने लगातार गोलीबारी जारी रखी। नतीजतन, रोज हमारे वीर जवान शहीद हो रहे हैं और हमारी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सरकार और भाजपा नेताओं को राजनीति करने से ही फुर्सत नहीं है। बातें बुलेट ट्रेन चलाने की हो रही है, लेकिन सत्ताधीशों को रोज शहीद होते जवानों से कोई सरोकार नहीं है। अगर मैं यह कहूं कि फिलहाल हमें और देश को बुलेट ट्रेन की नहीं, चारों तरफ सीमा पर डटे जवानों के लिए बुलेट प्रूफ जॉकेट की जरूरत है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी और ना ही इस पर किसी को आपत्ति होनी चाहिए। मैं जानता हूं कि सत्तारूढ़ दल के नेताओं को यह बात कदापि हजम नहीं होगी और वे कमेंट में सरकार की उपलब्धियों का बखान करना शुरू कर देंगे। किन्तु मेरी बात से सहमत नहीं होंगे। फिर भी मैं यह बात पुरजोर तरीके से कहता हूं कि जितनी राशि में बुलेट ट्रेन चलाने की कोशिश की जा रही है, यदि उतनी ही राशि में जवानों को बुलेट प्रूफ जॉकेट मुहैया करा दी जाए तो कसम खुदा की, आए दिन हमारे सपूत शहीद नहीं होंगे और वे पाकिस्तान को उसके घर में घुस कर ठोकेंगे। ना केवल जमकर ठोक देंगे, बल्कि पाकिस्तान को मटियामेट भी कर आएंगे। जब जवान ऐसा कर आएंगे, तब हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सीना 56 इंच से फूल कर और ज्यादा चौड़ा हो जाएगा। प्रधानमंत्री जी, आप शायद यह अपना यह कथन भूल गए हैं, “हम एक सिर के बदले दस सिर काट कर लाएंगे।” भले ही यह आपका चुनावी जुमला रहा हो, लेकिन जनता आज भी इस कथन को नहीं भूली है। आप क्यों नहीं पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की तरह हिम्मत दिखाते हैं। पाकिस्तान के सिर उठाने पर उनके राज में कारगिल युद्ध छेड़ दिया था। जनता उनके साथ खड़ी थी। तमाम विपक्ष भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ा था। पूरा देश “भारत माता की जय” से गूंज उठा था। लेकिन अब चुप्पी साधे हुए क्यों हो। जबकि देश आपके साथ खड़ा है। आखिर क्या मजबूरी है। चाहे किसी भी तरह की मजबूरी हो, देशहित पहले होना चाहिए। आपके दूसरे निर्णय भले देशहित में हो सकते हैं और आप उनका खूब बखान भी कीजिए, लेकिन रोज हो रही वीर सपूतों की शहादत को बचा लीजिए। रोज ना जाने कितने बच्चों के सिर से पिता का साया उठता है, ना जाने कितने बुजुर्ग माता पिता के बुढ़ापे का सहारा टूट जाता है, ना जाने कितनी महिलाओं की मांग का सिंदूर मिट जाता है, गले का मंगलसूत्र खुल जाता है, हाथों की चूड़ियां टूट जाती हैं और पैरों की बिछिया खुल जाती हैं। कल्पना कीजिए, उन परिवारों पर क्या बीतती होगी। सरकार भले ही उनके परिवारों के लिए मदद की बौछार कर देती हो, लेकिन जिस घर का एक, वह भी कमाऊ सदस्य चला जाता है तो उसके लिए किसी भी तरह की मदद कोई मायने नहीं रखती और दुखों का पहाड़ उस परिवार पर टूट पड़ता है। दिखाइए आदरणीय वाजपेयी जी की तरह हौंसला। देश साथ देगा।

-प्रेम आनन्दकर (अनीजवाल), अजमेर, राजस्थान।

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