आखिर क्यों कम हो रही है एन्टी रोमियों स्क्वॉड की हनक

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा नारी सम्मान के रक्षार्थ एक ऐसा निर्णय लिया गया था जिसका क्रियान्वयन सूबे के पुलिस विभाग पर पूर्णतया आधारित है वह निर्णय है ‘‘एन्टी रोमियो दल’’ (ए.आर.एस.)। इस दल के गठन उपरान्त उत्तर प्रदेश की पुलिस को सख्त निर्देश भी दिया गया कि युवतियों, महिलाओं, बच्चियों को छेड़ने वाले शोहदे किस्म के लोगों पर कड़ी नजर रखी जाए और इस कृत्य में लिप्त पाए जाने पर उन्हें वांछित धाराओं में अन्दर हवालात किया जाए।
हालांकि रोमियो शब्द को लेकर सोशल मीडिया पर अनेकानेक टिप्पणियाँ पढ़ने को मिली जिसमें टिप्पणीकारों ने रोमियो को शोहदा/मनचला नहीं माना था। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि मजनू और रोमियो उन्हीं लोगों को गाँव और शहर के लोगों द्वारा कहा जाता है जो आशिक मिजाज और मनचले किस्म के होते हैं। कई बुजुर्गों के मुँह से भी सुना है कि रोमियो और मजनू कहना पुरानी परम्परा रही है। यहाँ पुरानी फिल्म का एक गाना जो तत्समय काफी कर्णप्रिय और लोकप्रिय तथा लोगों की जुबान पर रहा है उसका जिक्र करना भी आवश्यक है।

रीता विश्वकर्मा
1969 में निर्मित ‘एक फूल दो माली’ नामक पुरानी बॉलीवुड फिल्म का गाना- ‘‘ये परदा हटा दो, जरा मुखड़ा दिखा दो। हम प्यार करने वाले हैं कोई गैर नहीं, अरे हम तुमपे मरने वाले हैं कोई गैर नहीं।। ओ मजनू के नाना, मेरे पीछे न आना। जा प्यार करने वाले तेरी खैर नहीं, अरे वो हम पे मरने वाले तेरी खैर नहीं।।’’ ये गाना फिल्म के अभिनेता संजय (संजय खान) और अभिनेत्री साधना पर फिल्माया गया था।
……………..ये उदाहरण इसलिए दिया गया कि मजनू और रोमियो जैसे शब्दों का प्रयोग गाँव, शहर और यहाँ तक कि सिनेमा के संवादों व गीतों में भी किया जाता रहा है। फिल्मी गीतों में प्रयुक्त मजनू अथवा रोमियो शब्दों के प्रयोग पर तत्समय के प्रबुद्धजनों द्वारा कभी कोई विरोध नहीं किया गया जैसा कि वर्तमान में समीक्षकों द्वारा किया जा रहा है।
अब आइए एन्टी रोमियो स्क्वाड पर कोई बहस करने के पूर्व एक संक्षिप्त उदाहरण बता दें। डेढ़ दशक पूर्व की बात है। उत्तर प्रदेश के जनपद अम्बेडकरनगर में अपर पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात रहे सुनील सक्सेना (वर्तमान में प्रोन्नति पाकर डी.आई.जी.) ने शोहदों/मनचलों पर नकेल कसने के लिए ‘‘मजनूँ पिजड़ा’’ का निर्माण कराया था, जिसे विभिन्न सार्वजनिक व भीड़-भाड़ वाले इलाको व स्कूल/कालेज के आस-पास पुलिस कर्मी लेकर मोबाइल रहा करते थे। उनके इस प्रयोग से जो शायद सूबे के पुलिस महकमें में किसी पुलिस अधिकारी द्वारा यह पहला प्रयोग रहा होगा मनचले/शोहदे किस्म के लोगों में भय व्याप्त हो गया था। इस प्रयोग से सुनील सक्सेना का नाम सुनते ही ओछी हरकत करने वाले इश्कबाजों की रूह कांप उठती थी।
2017 में हुए विस चुनाव उपरान्त प्रचण्ड बहुमत के साथ भाजपा के जीते हुए प्रत्याशी विधायक बनकर प्रदेश की सत्ता में पहुँचे और 19 मार्च 2017 को सूबे में पार्टी की सरकार बनी जिसके मुखिया योगी आदित्यनाथ को बनाया गया। उसी दिन एन्टी रोमियो स्क्वाड की स्थापना कर उसे पूरे प्रदेश में सक्रिय कर दिया गया। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों की पुलिस ने सक्रियता के साथ मनचलों, शोहदों पर निगरानी रखना शुरू कर दिया। कुछेक जिलों के शहरों एवं ग्रामीण इलाकों में ऐसे मनचलों को हवालात में भी भेजा गया ऐसी खबरें हैं। अब बात करते हैं कि ए.आर.एस. का क्रियान्वयन पुलिस किस तरह कर रही है। योगी की सरकार द्वारा जारी फरमान उपरान्त शोहदे, लफंगे और आधुनिक रोमियो किस्म के लोग बच बचाकर अपनी हरकतें पूर्ववत जारी रखे हुए हैं। यदि पुलिस की गिरफ्त में कोई रोमियो आ रहा है तो वह इन्नोसेन्ट ही है।
परामर्श:- पहले सरकार को चाहिए कि वह महिलाओं विशेषकर कॉलेज गोइंग छात्राओं, कामकाजी युवतियों द्वारा धारण किए जाने वाले पाश्चात्य परिधानों पर अंकुश लगाए या उनका परित्याग करने पर जोर देने के लिए जागरूक करे, इससे यह होगा कि जहाँ भारतीय संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा वहीं दूसरी तरफ पाश्चात्य ढंग से निर्मित भड़काऊ वस्त्रों का बहिष्कार होगा।
आजकल बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों, बाजारों, गाँव-गिराँव तक युवतियों द्वारा दुपट्टे या स्टॉल से पूरे चेहरे को ढक कर चलने का एक नया फैशन चलन में आया है। वैसे आम तौर पर युवतियों द्वारा इसका इस्तेमाल अपने चेहरे को धूप, गर्मी, धूल, मिट्टी आदि से बचाने के लिए किया जाता है, लेकिन इसी दुपट्टे और स्टॉल में चेहरा छिपाकर न जाने कितनी युवतियाँ/महिलाएँ आपराधिक गतिविधियों खास कर सेक्स क्राइम को अंजाम दे रही हैं और फिर आसानी से अपनी पहचान छिपाते हुए निकल जाती हैं। युवतियों/महिलाओं के इस तरह मुँह ढक कर चलने पर भी रोक लगाना चाहिए। कोई जरूरी नहीं हैं कि मनचला या शोहदा पुरूष वर्ग ही हो। गर्मी और धूप से बचने के लिए छात्राएँ, युवतियाँ, महिलाएँ छाता आदि का उपयोग कर सकती हैं।
युवतियों को चाहिए कि वे शार्ट कपड़े न धारण करें। डैमेज जीन्स, टॉप आदि को पहनने से परहेज करें। क्योंकि इस तरह के परिधान नारी सौन्दर्य को सुरक्षित करने के बजाय उन्हें असुरक्षित कर रहे हैं। ऐसे परिधानों से आवृत्त कथित आधुनिकाओं की तरफ हर किसी की निगाहें बरसब ही उठती हैं और शोहदों, मनचलों की गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं।
पुलिस महकमे के जिम्मेदार, ओहदेदारों से अपेक्षा की जाती है कि वह लोग एन्टी रोमियो स्क्वाड टीम पर अवश्य ही ध्यान दें। समय-समय पर उनकी भी निगरानी करें। क्या वे सचमुच अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं अथवा नहीं। उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारियों द्वारा ऐसा करने से महकमें के निष्क्रिय पुलिस कर्मी भी सक्रिय रहेंगे। ए.आर.एस. की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। मनचले, शोहदे, रोमियो का यदि मनोबल बढ़ा रहेगा तो आने वाले दिनों में वे लोग (हर तरह के) आपराधिक कृत्यों को अंजाम देते रहेंगे।
2017 में पुलिस महकमे में गठित ए.आर.एस. की सक्रियता अब कुछ कम हो गई है। जो सक्रियता अप्रैल 2017 में से लेकर दो-तीन महीने तक रही वह अब देखने को नहीं मिलती। ऐसे में जहाँ यौन अपराध का ग्राफ बढ़ा है वहीं शोहदे/मनचले भी बेखौफ व बेलगाम से हो गए हैं। पुलिस महकमे के आला अधिकारियों को इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है।
बीते दिनों मेरी संक्षिप्त मुलाकात एक पुलिस अधिकारी से हुई थी। उस समय उनके कक्ष में और भी कई मीडिया कर्मी बैठे हुए थे। उन्होंने एन्टी रोमियो स्क्वाड के बारे में मुझसे अपनी ओपिनियन देने को कहा था, उनका कहना था कि आप एक शिक्षित, सक्रिय महिला पत्रकार हैं ऐसे में एन्टी रोमियो स्क्वाड के बारे में आपकी क्या राय है? इसलिए मैं अपनी राय जो मुझे समझ आई उसे यहाँ लिखकर प्रस्तुत कर रही हूँ। यह विद्वाजनों और समीक्षकों पर निर्भर करता है कि मेरा यह आलेख उन्हें कितना उपयुक्त लगता है। उनकी टिप्पणियाँ मेरा उत्साहवर्धन करेंगी।
रीता विश्वकर्मा
सम्पादक रेनबोन्यूज
8765552676, 8423242878

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