अधिकारियों, नेताओं और संपन्न वर्ग के बच्चे थे, तो बसें भेज दी गई

लाॅकडाउन की मूल भावनाओं के खिलाफ लिया योगी सरकार ने निर्णय
रजनीश रोहिल्ला।
देखए महसूस कीजिए। सरकारों के दोहरे मापदंडों को। 4 हजार विद्यार्थियों को कोटा से उत्तर प्रदेश में उनके घर तक पहुंचाने के योगी सरकार के निर्णय को समझिए। पांच बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टीवी पर आए। लाॅकडाउन का अर्थ और महत्व समझाया। लाॅकडाउन मतलब जो जहां है, वहीं रहेगा। लेकिन ये क्या हुआ। यूपी से 300 बसों का काफिला आगरा व अन्य स्थानों से राजस्थान के कोटा पहुंचा। किसलिए – कोटा में यूपी से आए काॅम्पीटिशन एक्जाम की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को उनके घर वापस पहुंचाने के लिए।
जरा समझिए- कौन हैं यह विद्यार्थी। कोटा में आकर पढने वाले बच्चे सामान्य परिवारों के नहीं है। कोटा में पढाई का खर्चा आम भारतीय के बस का नहीं है। निश्चित है, अधिकारी, नेता और संप्पन घर से जुड़े बच्चों का मामला है। सो, योगी सरकार संवदेनशील नजर आई। प्रवासी मजदूरों को लेकर सरकार इतनी गंभीर नजर नहीं आई।

रजनीश रोहिल्ला
विद्यार्थियों का मामला सामने आया तो तुंरत निर्णय कर लिया गया। खास बात यह है कि विद्यार्थियों को केवल इसलिए उनके घर पहुंचाया जा रहा है कि उन्हें कोटा में अच्छा खाना नहीं मिल रहा। मजदूर तो कह रहे थे कि उन्हें खाना ही नहीं मिल पा रहा है। लेकिन मजदूर का दर्द नजर किसे आएगा।
भारतीय शासन की वो आंखे बहुत विकसित हो चुकी हैं, जिसे संपन्न लोगों की समस्याएं और तकलीफ तुंरत नजर आ जाती है।
सो, प्रधानमंत्री के लाॅकडउन की मूल भावनाओं को ताक में रखने का निर्णय कर लिया गया। एक अर्थ में अच्छा है कि कोरोना संकट काल में बच्चे उनके घर तक पहुुंच जाए। लेकिन मजदूर भी तो किसी के बच्चे हैं, उनके भी तो घर हैं, उनके पास भी तो मां-बाप है। लेकिन नहीं साहब। मजदूरों से कोरोना फैल सकता है। शायद शासन के पास कोरोना को लेकर निष्कर्ष होगा। यह अमीरों को कम गरीबों के बच्चों को ज्यादा चाहता है।
जिस तरह के हालात बने हुए हैं, उसे देखकर लगता है कि अभी लाॅकडाउन बहुत लंबा चलने वाला है। कब तक । कोई समय सीमा नहीं। कुछ नहीं कहा जा सकता है। एक इलाका खुलेगा, तो दूसरे में लाॅकडाउन होगा। दूसरा खुलेगा तो पहले वाले में लाॅकडाउन हो सकता है।
तो फिर केंद्र और राज्य सरकारें इन बच्चों की तरह ही मजदूरों के लिए भी कोई नीति बना सकती है। जितना यूपी सरकार संप्पन लोगों के बच्चों के प्रति आश्वस्त है, वैसे ही असंपन्न के बच्चों के प्रति भी आश्वस्त हो सकती है।
आखिर समान नागरिकता वाले देश में नागरिकों को वर्गों में बांटकर उनके लिए अलग-अलग निर्णय करना आखिर क्या दर्शाता है।
संप्पन और रसूखदारों के बच्चों का ख्याल किया है तो मजदूरों के बच्चों को भी उनके घर पहुंचाने का अपना राजधर्म समझिए।

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