अजमेर। विकास का श्रेय यूँ किसी विचारधारा में बंध कर किसी एक नेता या पार्टी को देना गलत है। विकास एक सतत् प्रक्रिया है। यूँ देखा जाए तो वैज्ञानिक तकनीक तो अंग्रेज भारत में लाये थे। वो आये तो हवाई जहाज, समुद्री जहाज आये। (वरना पहले हम तो पाल वाली नौकाओं से सफर करते थे), बिजली वो लाये, टेलीफोन, टेलीविज़न, रेडियो, ना जाने कितने ही तकनीकी उपकरण अंग्रेज ही भारत में लेकर आए थे।
बड़ी बड़ी इमारतें, जैसे अजमेर का मेयो कॉलेज, अजमेर के तमाम रेलवे कारखाने और उनकी बिल्डिंग्स सहित देश भर की अनेक ऐतिहासिक इमारतें अंग्रेज बना गए, जो आज पिछले डेढ़-दो सौ सालों से अडिग खड़ी हैं। हम पर हुकूमत करते करते ऐसे तो अंग्रेज भी देश की तरक्की कर ही रहे थे। आज भी यदि भारत में ब्रिटिश हुकूमत होती, तो भी ये सब संचार क्रांति और सब आधुनिक साधन देश में आते ही रहते, जिनको भारत में लाने के दावे आजादी के बाद से हर राजनीतिक दल व सरकारें करती आ रही हैं। हमारे अपने लोगों द्वारा बनाए गए ब्रिज तो उद्धाटन के साथ ढह जाते हैं। 50 साल नहीँ टिकतीं हमारे लोगों द्वारा बनाई गयी इमारतें। आये दिन मुम्बई जैसे शहरों से बहुमंजिला ईमारत ढहने की ख़बरें आती हैं। अतः यूँ किसी पार्टी या नेता की दुम पकड़ के अंध भक्ति या चमचागिरी में श्रेय देने-लेने की कोशिश कतई ना बुद्धिमानी है ना समझदारी।
महाभारत का असली दोषी धृतराष्ट्र नहीं था क्योंकि वो तो जन्म से अँधा था। दोष गांधारी का ज्यादा था जिसने आँख होते हुए भी पट्टी बाँध ली थी। हम भी पट्टी बाँध के अपने युवराजों को राजगद्दी दिलाने की उच्चाकांक्षाएं पाले बैठे हैं। ये भूल रहे हैं कि लोकतंत्र है। जब चाहे जनता सत्ता पलट सकती है। राजीव, अटल, मोदी, राहुल, केजरी, मोदी, शाह, सोनिया, अलाना-फलाना.. इसी में उलझ के तारीफ़ के कशीदे पढ़ो और पीठ थापथपाओ।
#अगर महंगे फोन लाना तरक़्क़ी है, मॉल बनाना तरक़्क़ी है, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास ही तरक़्क़ी है तो, वो तो अंग्रेज कर ही रहे थे। क्यों भगाया उन्हें देश से जब हमें गुलाम मानसिकता में ही जी कर अंग्रेजों के बाद “देशी फिरंगियों” की गुलामी करनी थी।
आजाद भारत की किसी पार्टी ने गरीबी दूर करने की बात नहीं की, आपने किसानों की आत्महत्या की बात नहीं की, आपने समानता के अधिकार की बात नहीं की, उस व्यवस्था की बात ही नहीं की कि सब बराबर से धनी हों और आरक्षण जैसे ज़हर की समाज को जरूरत ना पड़े। आपने सर्व शिक्षा की बात नहीं की। आप निजी संस्थानों में हिंदी भाषी को उच्च् पद की नौकरी की वकालत नहीं कर रहे। आप लावारिस माँ-बाप और कन्याओं को घर लाने की बात नहीं कर रहे। आप भूख से बिलखते सड़कों पे पलने वाले बालकों की बात नहीं कर रहे। आप अपराध मुक्त भारत को लेकर संवेदनशील नहीं हैं, नारी उत्थान को लेकर आप विचारशील नहीं हैं। “खेतों में इमारतें बन रही हैं और आपको नए तकनीक के मोबाइल फोन का आना तरक्की लग रहा है।” ये सब तो पांच दस प्रतिशत सक्षम जनता के शौक की चीजें हैं। जो दो हज़ार के फोन से भी कॉल कर सकती है, मगर दिखावा करने को लाख पचास हज़ार वाले फोन हर साल बदल कर अपनी अमीरी का ढोल पीटते हैं।
#तरक़्क़ी इमारतों और इन भौतिक सुख सुविधाओं का विस्तार मात्र नहीं। असली तरक्की तब होगी जब ये सुख साधन सभी देशवासियों को आसानी से उपयोग करने के लिए सुगमता से उपलब्ध होंगे। इसके लिए असली तरक़्क़ी की बात करो कि सब उच्च शिक्षा प्राप्त करें, सब को सस्ता इलाज मिले, कोई पैसों की दिक्कत की वजह से बड़ी बीमारी से ना मरे, सबको नौकरी मिले- रोजगार मिले।
बहुत कुछ है लिखने को।
#बदलाव किसी के गुणगान से नहीं आएगा, बदलाव लाने के लिए आप उनकी आलोचना करना व सुनना भी सीखो जिसके आप अनुयायी हो। अंधता अभिशाप है, चाहे वो अंधता आँखों की हो या विचारों की ।