भ्रष्टाचारियों से हमदर्दी क्यों?

*ओम माथुर*
भ्रष्टाचारी अफसरों और कर्मचारियों के लिए नए साल का इससे बेहतर तोहफा कोई नहीं हो सकता था।अब वो माल भी कमाएंगे और इज्जत भी नहीं गवाएंगे। एसीबी के कार्यवाहक डीजी हेमंत प्रियदर्शीद का आदेश ऐसे भ्रष्टाचारियों को बहुत प्रिय लगेगा। अब किसी रिश्वतखोर को पकड़ने के बाद भी उसका नाम मीडिया में सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। प्रियदर्शी का मानना है कि जब तक आरोपी न्यायालय में दोषसिद्धि नहीं हो जाता,तब तक उसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।

ओम माथुर
सवाल ये है कि जो गहलोत सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करती है। जो गहलोत खुद को सच्चा गांधीवादी बताते हैं। उन्हीं की पुलिस का एक आला अफसर ऐसा आदेश जारी करके खुद गहलोत और उनकी सरकार के चरित्र पर दाग लगा रहा है। क्या ये संभव है कि बिना सरकार की इजाजत के ये आदेश जारी हुआ हो। गहलोत खुद गृहमंत्री भी है ऐसे में इस आदेश के जारी होने से वह भी भ्रष्टाचारियों को बचाने के आरोपों से घिरेंगे। यूं भ्रष्टाचार हमारे समाज और व्यवस्था में इस तरह घुस गया है कि इससे छुटकारा पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। लेकिन फिर भी समाज में अपनी इज्जत उछलने के डर से अधिकारी व कर्मचारी रिश्वत लेते हुए थोड़ा तो डरते ही हैं। लेकिन अब उन्हें इसकी भी फिक्र नहीं होगी। अदालतों में मामले कितने लंबे चलते हैं यह छुपा नहीं है। ऐसा भी हो सकता है कि जो अधिकारी कर्मचारी रिश्वत ले, फैसला होने तक वह रिटायर्ड ही हो जाए। फिर कई मामलों में तो सरकार खुद अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी नहीं देती है। ऐसे में रिश्वत लेते पकड़े जाने पर मीडिया के माध्यम से ऐसे लोगों के नाम पता चलते थे, अब उन पर भी प्रतिबंध लग गया है।
मानवाधिकार के नाम पर भ्रष्टाचारियों को बचाने की सरकार की पहल वाकई अद्भुत है।जो व्यक्ति हराम की कमाई कर रहा है, उसका तो मानवाधिकार है। लेकिन जो शोषित व पीडित है और रिश्वत देने पर मजबूर किया जा रहा है, उसके मानवाधिकारों की चिंता सरकार को नहीं है। फिर एसीबी श किसी को भी ट्रैप करने से पहले इस बात की पुष्टि करती है कि रिश्वत मांगी गई है या नहीं। इसके लिए बाकायदा दोनों पक्षों की फोन टैपिंग की जाती है और कई बार तो रिश्वत की राशि में से कुछ राशि देकर इस बात को पुख्ता किया जाता है कि वाकई में रिश्वतखोरी हो रही हैँ। इतना होने के बाद भी क्यों किसी भ्रष्टाचारी के नाम को गुप्त रखा जाए?
पिछले दिनों एसीबी ने जिस तरह राज्य में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्यवाही की थी। उससे लोगों में संदेश गया था कि राजस्थान में सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए वाकई में गंभीर है। लेकिन इस आदेश ने उस गंभीरता पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। चुनावी साल में ऐसा आदेश पहले से ही आपसी क्लेश से डूबती दिख रही कांग्रेस की चुनावी नैया में एक और बड़ा छेद कर देगा। ऐसे में समझदारी इसी में होगी कि गहलोत आदेश को तुरंत रद्द करें और भ्रष्टाचारियों तो समाज के सामने आने दें। वरना चुनाव में लोगों के बीच कांग्रेस नेताओं को जवाब देना भारी पड़ जाएगा। पिछली वसुंधरा सरकार इस मुद्दे पर मुंह की खा चुकी है। इसलिए गहलोत को समय रखते सबक लेना चाहिए।

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