बढ़ गई मोदी की चौधराहट, आडवाणी ने छोड़ दिए ‘विद्रोही’ तेवर!

वीरेंद्र सेंगर
वीरेंद्र सेंगर

तमाम विवादों के बावजूद भाजपा में नरेंद्र मोदी की ‘चौधराहट’ रंग लाने लगी है। यहां तक कि वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के तेवर भी अब मोदी के मुद्दे पर नरम पड़ गए हैं। संसदीय बोर्ड की बैठक में कई मुद्दों पर आडवाणी ने मोदी के सुझावों की जमकर सराहना की। बोर्ड की बैठक, खासतौर पर मोदी के अनुरोध पर ही बुलाई गई थी। गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी की कोशिश रही है कि चुनाव की रणनीति पर पार्टी की सर्वोच्च निर्णायक समिति में कुछ जरूरी चर्चा हो जाए। पार्टी की गोवा कार्यकारिणी की बैठक में मोदी को चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपने का फैसला हुआ था। इसको लेकर आडवाणी ने खुलकर अपना विरोध जता दिया था। लेकिन, अब उनका रुख बदल गया है। संसदीय बोर्ड की बैठक में बुजुर्ग नेता आडवाणी, मोदी के साथ काफी सहज दिखाई दिए। इससे सबसे ज्यादा राहत महसूस कर रहे हैं पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह। चुनाव अभियान समिति के प्रमुख बनने के बाद मोदी ने रणनीतिक मामलों में अपना दखल बढ़ा दिया है। यूं तो उन्हें लोकसभा चुनाव की अभियान समिति की जिम्मेदारी ही सौंपी गई है। लेकिन, मोदी ने पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावी चुनौती में भी खासी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी है। क्योंकि, लोकसभा चुनाव के ठीक पहले होने वाले ये विधानसभा चुनाव, राजनीतिक रूप से काफी अहमियत रखते हैं। इन चुनावों के परिणामों से लोकसभा के चुनाव की हवा बनेगी। इसको देखते हुए भाजपा और कांग्रेस के रणनीतिकारों ने पूरा जोर लगा दिया है।

दरअसल, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला होना है। राजस्थान और दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकारें हैं, तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकारें हैं। दोनों दलों के सामने अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती है। विधानसभाओं से लेकर लोकसभा की चुनावी चुनौती के लिए टीम मोदी ने कुछ कार्य योजनाओं का ‘ब्लू प्रिंट’ तैयार कराया है। मोदी के करीबी सूत्रों के अनुसार, इसी कार्य योजना पर संसदीय बोर्ड की मुहर लगवाने के लिए उनके नेता ने खास कवायद की है। इसी के चलते गुरुवार को संसदीय बोर्ड की बैठक बुलवाई गई थी। आमतौर पर पार्टी की इस सर्वोच्च समिति की बैठक अहम फैसलों पर मुहर लगवाने के लिए होती है। लेकिन, मोदी के अनुरोध पर बोर्ड की बैठक महज चुनावी चर्चा के लिए बुला ली गई। इस बैठक में अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, वैंकया नायडू व लालकृष्ण आडवाणी आदि शामिल हुए। बैठक में पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी और मुरली मनोहर जोशी नहीं आ पाए। गडकरी तो किसी जरूरी काम से विदेश में हैं। उन्होंने पहले ही ‘छुट्टी’ ले रखी थी।

सूत्रों के अनुसार, मंत्रणा के दौर में मोदी ने सुझाव दिया कि प्रचार अभियान के दौरान इस तरह की रणनीति बनाई जाए कि हर संसदीय क्षेत्र में पार्टी का जिलास्तरीय सम्मेलन बुलाया जाए। ताकि, पार्टी कार्यकर्ताओं के अंदर उत्साह पैदा किया जा सके। उन्होंने बूथ स्तर तक संगठन के कील-कांटे दुरुस्त करने की बात कही। ये भी कह दिया कि पार्टी के पदाधिकारियों को घर-घर तक जाकर लोगों से मिलने की कवायद अभी से शुरू करनी होगी। इसके लिए सभी नेताओं को लक्ष्य दिया जाना जरूरी है। मोदी के इन सुझावों की बैठक के अंदर आडवाणी ने जमकर सराहना की। अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। इस बात को लेकर मंत्रणा हुई कि इस मुद्दे पर पार्टी क्या स्टैंड ले? मोदी का सुझाव यही रहा कि जनभावनाओं को देखते हुए पार्टी को इस मुद्दे से किनारा नहीं करना चाहिए। वरना, इससे अवसरवादी राजनीति का ठप्पा लगता है। भाजपा के एक राष्ट्रीय महासचिव ने अनौपचारिक बातचीत के दौरान कहा कि बोर्ड में मंत्रणा के दौरान सीबीआई का मुद्दा भी चर्चा में आया। इसी प्रकरण में बहुचर्चित इशरत जहां मुठभेड़ मामले पर भी बात चली। सीबीआई ने इस मामले में मंगलवार को आरोप पत्र दाखिल किया है। गुजरात उच्च न्यायालय में जांच एजेंसी ने इस मामले की स्टेटस रिपोर्ट भी कल दाखिल की है। भाजपा नेतृत्व के लिए राहत की बात यही है कि सीबीआई ने इस मामले में मोदी और उनके   करीबी अमित शाह का नाम नहीं घसीटा है। लेकिन, इस मुठभेड़ की जो कहानी न्यायालय के सामने रखी है, उससे देर-सवेर मोदी की राजनीति पर आंच आनी तय है। क्योंकि, आरोप लगाया गया है कि मोदी के करीबी माने जाने वाले कई आईपीएस आलाधिकारियों ने इस फर्जी मुठभेड़ कांड की व्यूहरचना की थी। इसके पीछे अपने आका, मोदी को राजनीतिक फायदा पहुंचाने की मंशा थी।

सवाल यह है कि जिसे फर्जी मुठभेड़ से लाभ देने की मंशा थी, उसे ‘क्लीनचिट’ कैसे मिल सकती है? सीबीआई ने सुर्रा भी छोड़ दिया है कि जरूरत पड़ने पर वह इस मामले में पूरक आरोप पत्र भी दाखिल कर सकती है। जाहिर है कि ऐेसे में, अमित शाह और मोदी को भी लपेटने की पूरी गुंजाइश बनाकर रखी गई है। उल्लेखनीय है कि जून, 2004 में मुंबई की रहने वाली 19 वर्षीय इशरत जहां और तीन अन्य को मुठभेड़ में मार गिराया गया था। यह ‘मुठभेड़’ अहमदाबाद में हुई थी। कहानी यही रची गई थी कि आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैएबा से जुडेÞ ये आतंकवादी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के मंसूबे से अहमदाबाद आए थे। सीबीआई ने लंबी पड़ताल के बाद इस मुठभेड़ की तमाम पर्तें खोल कर रख दी हैं। यह खुलासा भी हुआ है कि उस दौर में दो पुलिस इंस्पेक्टरों ने इशरत जहां पर गोली चलाने से मना किया था। इस पर पुलिस के बड़े अधिकारियों को गुस्सा आ गया था। इस मामले को लेकर इन दिनों राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। भाजपा प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि केंद्र सरकार उनके नेता मोदी की लोकप्रियता से डर गई है। ऐसे में, वह इशरत जहां मामले में सीबीआई के जरिए भाजपा को बदनाम करवाना चाहती है। जबकि, 2004 के दौर में केंद्रीय जांच एजेंसियों ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि इशरत जहां और उसके साथी पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर से जुड़े थे। इशरत की मौत के बाद लश्कर-ए-तैएबा की वेबसाइट पर इशरत जहां को ‘शहीद’ करार किया गया था। अब सीबीआई अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर काम करने लगी है। इसीलिए इशरत जहां को मासूम बताने की कोशिश की गई है। भाजपा प्रवक्ता कहते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी सीबीआई के राजनीतिक दुरुपयोग पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। इसके बाद भी कांग्रेस नेतृत्व बेशर्मी की राजनीति करने पर उतारू है। लेकिन, इससे भाजपा नेतृत्व दबाव में आने वाला नहीं है।

सूत्रों के अनुसार, मोदी ने इशरत जहां मामले में पार्टी नेताओं से कहा है कि इसको लेकर ज्यादा राजनीतिक स्यापा करने की जरूरत नहीं है। क्योंकि, इस मामले से कांग्रेस को ही राजनीतिक नुकसान होने वाला है। लेकिन, पार्टी के कई नेताओं ने इस मुद्दे पर अपनी खास चिंता जताई। यही कहा कि इस मौके पर यह मामला उछलने से यह राजनीतिक संदेश जा सकता है कि अल्पसंख्यकों के प्रति भाजपा के नेताओं का रवैया घृणा फैलाने वाला ही है। इससे मुस्लिम समाज के अंदर भाजपा के प्रति ज्यादा गुस्सा भरने की रणनीति है। जरूरी है कि इसका कोई राजनीतिक निदान समय से निकाल लिया जाए और कांग्रेस को माकूल जवाब दे दिया जाए। यूं तो, मुख्तार अब्बास नकवी की अध्यक्षता में टीम मोदी अल्पसंख्यकों के सशक्तीकरण के लिए एक विजन डॉक्यूमेंट तैयार करा रही है। इसका खास उद्देश्य मुसलमानों को मरहम लगाने का है। भाजपा नेता कहते हैं कि कांग्रेस को मुसलमानों की चिंता सिर्फ वोट बैंक के लिए है। जबकि, भाजपा समावेशी विकास में भरोसा करती है। दूसरी तरफ, नेतृत्व को यह डर भी सता रहा है कि कहीं मोदी की छवि को देखते हुए दूसरे दल भाजपा से और दूरी न बनाने लगें। क्योंकि, मोदी के मुद्दे पर पिछले दिनों ही जदयू ने एनडीए का साथ छोड़ दिया है। अब कांग्रेस नेतृत्व ने जदयू से हाथ मिलाने की राजनीतिक कवायद शुरू कर दी है।

मोदी ने अपनी प्रचार अभियान समिति का औपचारिक गठन अब तक नहीं किया है। ये संकेत जरूर हैं कि मोदी अपनी समिति में पार्टी के सभी महासचिवों को रख रहे हैं। इसी के साथ वे अपनी टीम में मुख्तार अब्बास नकवी और सुधांशु त्रिवेदी को रखने जा रहे हैं। मुख्तार अब्बास, पार्टी के मुस्लिम चेहरे हैं। जबकि, सुधांशु त्रिवेदी पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के काफी करीबी माने जाते हैं। कल, यहां मोदी से जनता पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रह्मणय स्वामी ने मुलाकात की। उन्होंने अपनी पार्टी का विलय भाजपा में करने की इच्छा जाहिर की है। डॉ. स्वामी पिछले कई महीनों से मोदी के बड़े पैरवीकार बनकर उभरे हैं। वे कहते हैं कि बहुत अरसे बाद भाजपा को मोदी जैसा करिश्माई जैसा मिला है। ऐसे में, मोदी को लेकर नेतृत्व को किसी मायने में हिचक नहीं रखनी चाहिए। मोदी से भाजपा के चर्चित महासचिव वरुण गांधी ने ‘गुजरात भवन’ जाकर मुलाकात की। इस मुलाकात को भाजपा के हल्कों में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उल्लेखनीय है कि मेनका गांधी के सुपुत्र वरुण गांधी एक समुदाय के प्रति विवादित भाषणों के कारण चर्चा में रह चुके हैं। 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें इन्हीं भाषणों के चलते जेल की हवा खानी पड़ी थी। लेकिन, जेल से बाहर आने के बाद उन्हें पार्टी में एक बड़ा तबका ‘यूपी का मोदी’ कहने लगा था। वरुण के खांटी तेवर नरेंद्र मोदी भी पसंद करते हैं। पार्टी में मोदी का ‘पव्वा’ बढ़ा, तो वरुण गांधी भी पॉवरफुल हो चले हैं। उनकी कोशिश है कि मोदी की और   ‘कृपा’ हो जाए, तो उन्हें संगठन में कुछ महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिल जाएं। http://bhadas4media.com

लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क[email protected] के जरिए किया जा सकता है।

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