नमो के विरोध में फायदा तलाशते विरोधी

ashish_vashishtडॉ आशीष वशिष्ठ – गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र बिंदु बने हुए हैं। जब से मोदी को भाजपा ने लोकसभा चुनाव प्रचार समिति का मुखिया बनाया है तब से वो जहर बुझे तीरों से विपक्ष पर एक के बाद एक हमला करने से चूक नहीं रहे हैं। मोदी के निशाने पर कांग्रेस है इसलिए सबसे अधिक तिलमिलाहट और बयानबाजी कांग्रेसी खेमे से सुनाई देती है। अमेरिकी समाचार एजेंसी रायटर को दिए साक्षात्कार का मसला हो या फिर पुणे के फग्र्युसन कालेज में दिया भाषण कांग्रेस प्रवक्ताओं के साथ कई मंत्री मोदी को जबाव देने में जुटे हैं। मोदी जवाब देने की बजाय सवाल उछालने की रणनीति में यकीन करते हैं। एक सधे हुए राजनीतिज्ञ की तरह मोदी राजनीति की कड़ाही के गर्म तेल में बयान रूपी पानी के छींटे मारकर चुप्पी साध लेते हैं और विपक्ष उनके बयानों की व्याख्या और चर्चाओं में मशगूल हो जाता है।

पिछले साल भर के घटनाक्रम पर नजर दौड़ाएं तो मोदी का विरोध और निशाने पर लेकर विपक्ष ने ही उनके नाम को देश के कोने-कोने तक पहुचंाने का काम किया है। असल में मोदी से ज्यादा उनका प्रचार-प्रसार उनके विरोधी कर रहे हैं।  सवाल यह है कि कहीं विपक्ष भी किसी सोची समझी साजिश के तहत मोदी को घेरने की आड़ में भ्रष्टाचार, नाकामियों और तमाम दूसरे अहम् मुद्दों से जनता का ध्यान बंटाने का काम तो नहीं कर रहा है। क्या भाजपा लोकसभा चुनाव से पूर्व हवा में मुद्दे उछालकर देश का  मिजाज और तापमान नापने में लगी है। मोदी और कांग्रेस में छिड़ा वाकयुद्ध लोकसभा चुनाव के पूर्व माहौल गरमाने और बनाने की रणनीति का हिस्सा तो है ये बात साफ हो चुकी है लेकिन वातावरण को मोदीमय बनाने के काम में मोदी से ज्यादा उनके विरोधी लगे हुए हैं।

गुजरात में पिछले ग्यारह सालों से शासन कर रहे मोदी एक-एक कर दिल्ली की सिंहासन की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। उनके मुंह से निकला एक-एक वाक्य सोचा समझा होता है और जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा है वो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पर तीखे हमले करने से चूक नहीं रहे हैं। मोदी एक मंझे हुए नेता है और उन्हें देश की राजनीति और वोट बैंक के अंकगणित की पूरी समझ और जानकारी है। भाजपा के परंपरागत वोट बैंक के साथ मोदी के निशाने पर पिछड़ी जातियों के मतदाता हैं। मोदी खुद पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं। देशभर में पिछड़ों को रिझाने के लिए वो गुजरात में सरदार पटेल की लोहे की विशाल प्रतिमा लगवाने की घोषणा करते हैं और देश के किसानों से लोहा मांगते हैं। मोदी के बयान पर जब लखनऊ में पिछड़ों की राजनीति करने वाले अपना दल की राष्ट्रीय महासचिव और विधायक अनुप्रिया पटेल कड़ा विरोध करती है तो मोदी अपने मकसद में कामयाब होते दिखते हैं। गुजरात में चुनाव के बाद से मोदी ने एक दर्जन बार से ज्यादा सार्वजनिक मंच पर खुलकर बयानबाजी नहीं की होगी लेकिन बावजूद इसके देश की राजनीति और मीडिया फिलवक्त मोदी पर नजरें गढ़ाए हुए है।  मोदी के मुंह से निकले एक-एक शब्द का विरोधी विशलेषण कर रहे हैं और राजनीति के जानकार उसके शुक्ल और कृष्ण पक्ष पर चर्चा में जुटे हैं।

पिछले कुछ समय से मोदी को लेकर जितने विवाद उठे हैं, शायद ही किसी और राजनेता को लेकर उठे हों। मोदी सोशल मीडिया में तमाम नेताओं और राजनीतिक दलों से बीस नहीं इक्कीस हैं। मोदी खुद को विकासशील प्रशसक के नेता के तौर पर प्रस्तुत करते हैं तो विपक्ष उनको गुजरात दंगों के लिए घेरता है। मोदी जब गुजरात माडल की बात करते हैं तो विरोधी उनके विकास के दावों और गुजरात माडल की धज्जियां उधेडने में जुट जाते हैं। कांग्रेस सहित दूसरे दल यह कहने से थकते नहीं है कि मोदी से उन्हें कोई डर नहीं है लेकिन जिस तरह मोदी को लेकर देश के राजनीतिक दल अति सक्रियता और संवेदनशीलता अपनाये हैं उससे यह आभास होता है कि मोदी के बढ़ते प्रभाव और कद से राजनीतिक दलों में बैचेनी का माहौल है।लेकिन सवाल यह है कि अगर विरोधी दलों को मोदी से डर नहीं है तो वो मोदी के बयान पर तवज्जों क्यों देते हैं। क्यों विरोधी दल मोदी की विकास पुरूष की छवि और गुजरात माडल की आलोचना करते हैं। क्यों विरोधी मोदी के एक-एक कदम और शब्द पर नजरें गढ़ाए रहते हैं। क्यों विरोधी मोदी को सोशल मीडिया पर घेरने और मुकाबला करने के तैयारियों में जुटे हैं।

जमीनी हकीकत से मोदी और विरोधी दोनों बखूबी वाकिफ हैं। मोदी जिस तेजी से राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर छा रहे और जिस गति से उनकी लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ रहा है वो विरोधियों के समीकरण बिगाड़ सकता है। मोदी की दिनों दिन मजबूत होती स्थिति और बढ़ते कद से पार पाने के लिए विरोधी दो तरह की रणनीति पर काम कर रहे हैं। रणनीति का पहला हिस्सा है मोदी का जमकर विरोध करना ताकि चुनाव से पूर्व ही मोदी को नकारा साबित किया जा सके। वहीं विरोधी मोदी को ऐसा पेश करने की कोशिश में जुटे हैं कि भाजपा में उनसे बड़ा कोई दूसरा नेता है ही नहीं। मोदी आडवाणी विवाद और जनता दल यूनाईटेड का एनडीए से नाता तोडना मोदी के बढ़ते प्रभाव का हलका सी आंच भर ही थे। इसलिए विरोधी मोदी को चर्चाओं में बनाए रखना चाहते हैं।

जब मोदी कुत्ते के पिल्ले के गाड़ी के नीचे आना, रमजान की मुबारकबाद और संाप्रदयिकता के बुर्के को ओढने वाले बयान पर विपक्ष इस कदर हमलावार हो जाता है कि जैसे देश किसी आपात स्थिति में फंस गया हो। मोदी को कट्टरवादी हिंदूवादी छवि वाला नेता और मुसलमानों का विरोधी साबित करने में विपक्षी कोई कसर नहीं छोडना चाहते। कांग्रेस के कई प्रवक्ता और मंत्री एकमुशत मोदी का विरोध करने और उनके बयानों को उत्तर देने में दिन-रात एक किये हैं। विपक्ष की रणनीति का दूसरा हिस्सा यह है कि जितना मोदी का विरोध करेंगे उतना वो और उग्र होंगे और पार्टी के परंपरागत हिंदूवादी, राम मंदिर और धारा 370 के पुराने ढर्रे पर चलेगी जिससे धु्रवीकरण होगा जिसका लाभ विपक्ष को मिलेगा। इस तरह से विपक्ष के दोनों हाथ में लड्डू है। इसलिए मोदी के नाम पर विपक्ष लगातार चर्चाएं चला रहा है, क्योंकि उसे पता है कि फिलवक्त भाजपा में मोदी से ज्यादा लोकप्रिय कोई दूसरा नेता नहीं है ऐसे में मोदी का विरोध करने पर उन्हें लाभ ही होगा।

आगामी अगस्त में हैदराबाद में भाजपा के कार्यक्रम में मोदी का भाषण सुनने के लिए प्रदेश इकाई ने पांच रुपये के टिकट रखा है। खबर मीडिया में आते ही सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी समेत दूसरे दलों के नेता आलोचना करने में जुट गए। मोदी भाजपा कार्यकर्ताओं के कार्यक्रम को संबोधित करने के लिए पांच रुपये ले या फिर पांच हजार इससे आम आदमी को क्या फर्क पड़ता है, भाजपा कार्यकर्ता अपने नेता को सुनने के लिए जो चाहे खर्च करें इससे कांग्रेस या किसी दूसरे दल का क्या परेशानी है। चूंकि विपक्ष जानबूझकर मोदी के नाम पर विवाद पैदा करके मंहगाई, भ्रष्टाचार, उत्तराखण्ड त्रासदी, समेत तमाम घोटालों से ध्यान बंटाना चहाता है। वहीं वो तमाम मुद्दों और बहस के बीच लोकसभा चुनाव के लिए मुद्दे और सुरक्षित रास्ता भी तलाश रहा है।

मोदी और विपक्ष दोनों को सत्ता की चिंता ही सता रही है। मोदी सधे कदमों से एक के बाद एक योजनाबद्ध तरीके से विपक्ष की कमजोर नस पर हमले कर रहे हैं तो वहीं वो परंपरागत वोट बैंक के साथ पिछड़ों को भी पाले में लाने में लगे हैं। मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए भाजपा जिस विजन डाक्यूूमेंट को तैयार कर रही है वो भी मोदी की ही सोच का नतीजा है। असल में  सारा खेल वोट बैंक को अपने साथ जोडने और खड़ा करने का है। विपक्ष को पता है कि अगर भाजपा अकेले दम पर 180 से 200 के बीच सीटें ले आती हैं तो एनडीए को साथी तलाशने के लिए कोई खास मशक्कत नहीं करनी होगी वहीं अगर पांच विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन ठीक रहा तो मोदी को प्रधानमंत्री बनने से कोई रोक नहीं पाएगा ऐसे में कांग्रेस और विरोधी दलों ने मोदी की लोकप्रियता के लिटमस टेस्ट के लिए इस साल और 2014 में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में जांचने परखने की रणनीति के तहत हमले तेज कर दिए हैं।

अगर मोदी विपक्ष के इस टेस्ट में पास हो जाते हैँ तो विपक्ष लोकसभा चुनाव से पूर्व मोदी को लेकर अपनी रणनीति में फेरबदल करेगा और अगर वो असफल साबित होते हैं तो लोकसभा चुनाव की वैतरणी विपक्ष आराम से पार कर लेगा। फिलवक्त मोदी को पार्टी के भीतर और बाहर दोनों तरफ से चुनौतियां मिल रही हैं अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वो इन तमाम चुनौतियां और से कैसे निबटते हैं। विपक्ष की रणनीति और मूड से यह साफ हो गया है कि मोदी उनके निशाने पर बने रहेंगे और मोदी को लेकर चर्चाओं का गर्म बाजार विपक्ष ठण्डा नहीं होने देगा, क्योंकि विपक्ष को पता है कि मोदी के विरोध से नुकसान केवल भाजपा को होना उसे नहीं है उसके दोनों हाथों में लड्डू ही रहने हैं। http://visfot.com

error: Content is protected !!