रवीश कुमार ने लिखा आडवाणी को पत्र

adwani 8बतौर पत्रकार तो रवीश कुमार का अपना अंदाज है ही लेकिन बतौर ब्लागर भी वे नियमित नये नये प्रयोग करते रहते हैं। पिछले करीब छह सालों से ब्लाग लेखन की दुनिया में सक्रिय रवीश कुमार ने नाना प्रयोग अपने ब्लाग पर किये हैं जिसमें एक प्रयोग उनका पत्र लेखन है। वे अक्सर नेताओं के नाम अपना पत्र लिखते हैं जिसमें बड़ी शिद्दत से मुद्दे को उठाया गया होता है। गुरूवार को भाजपा के भीतर राजनीतिक उठा पटक और बैठकों के बीच रवीश कुमार ने एक पत्र लिख दिया आडवाणी के नाम। इस सुझाव के साथ कि पितृपक्ष शुरू हो रहा है, अच्छा हो कि अब आप पितृ पुरुष की बजाय समय रहते त्याग पुरुष बन जाएं। कम से कम आपके हित में तो अब यही रहेगा। आडवाणी के अंत और मोदी के उभार पर रवीश कुमार-

ये मेरी दूसरी चिट्ठी है जो आपको लिख रहा हूँ। मुझे आप जैसे बड़े नेता इंटरव्यू देने लायक नहीं समझते और मुझे माँगने की हिम्मत भी न होती इसलिए ख़त लिख रहा हूँ। ख़त तो क्या कहें, खत कम लेख ज़्यादा है।

“जो प्रधानमंत्री बनने के सपने देखता है वह बर्बाद हो जाता है।” अहमदाबाद में शिक्षक दिवस के मौक़े पर नरेंद्र मोदी ने कहा तो सबको लगा कि मोदी या तो इंगलिस में ‘सल्क’ कर रहे हैं या हिन्दी में गल्प। जानकार परेशान कि मोदी ने ऐसा क्यों कहा। मोदी ने अपने लिये क्यों कहा तब जब पार्टी और आरएसएस दोनों उन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार पेश करने जा रहे हैं। नहीं बनना था तो ट्विटर से लेकर फ़ेसबुक तक इतना क्यों हंगामा मचवाया कि ‘नमो फ़ोर पीएम’ का जाप लगने लगे। कहीं वे फिर से गुजरात गुजरात न करने लग जायें।

दरअसल मोदी ने यह सूक्ति अपने लिए नहीं कही। मोदी का यह स्वयं सिद्ध प्रमेय राजनीति की गोधूली बेला में स्वप्न देख रहे आदरणीय आडवाणी जी आप पर सटीक लागू होता है। जहां तक मुझे स्मरण है आडवाणी जी, आपका प्रधानमंत्री के सपने देखने का यह तीसरा प्रयास है। आप अटल जी के समय कुलाँचे मारते रहे। लौह पुरुष का तमगा लेकर ‘टू आई सी’ यानी सेकेंड इन कमांड बने रहे। आपने अपने लिए हमेशा ग़लत उपमा चुनी है। सरदार पटेल ने किसी के लिए कोई काम ही नहीं छोड़ा था जिसे पूरा कर आप उनका उत्तराधिकारी बन जाते। मंच पर भाषणबाज़ अपने नेताओं की तुलना महाराणाप्रताप से लेकर लेनिन तक से करते रहते हैं। उनसे कंफ्यूज़ नहीं होना चाहिए। आप हो गए। तंग आकर अटल जी ने आपको उप प्रधानमंत्री पद से नवाज़ दिया। डिप्टी बाबू बना दिया। फिर अटल जी ने कहा कि २००४ के चुनाव में आडवाणी जी के नेतृत्व में प्रस्थान होगा। बीजेपी चुनाव हार गई। जीत जाती तो वो दौर डिप्टी बाबू के लीडर बनने का होता।

२००९ में आडवाणी जी आपने कमज़ोर प्रधानमंत्री का नारा दिया और खुद को कृशकायी मनमोहन सिंह की तुलना में मज़बूत प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित कर दिया। पार्टी ने आपको प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया। २००४ में अघोषित रूप से और २००९ में  घोषित रूप से। बिना किसी बवाल के। बल्कि चुनाव जीतने से पहले आपने पूरा कैबिनेट ही बना डाला था जो बिना किसी बैठक के भंग हो गई। बीजेपी चुनाव हार गई। कमज़ोर प्रधानमंत्री का नारा फुस्स हो गया। जनता जानती है कि कुशल प्रशासक के बाद भी सरदार पटेल कभी जननेता नहीं बन सके। हालाँकि पटेल की शुरूआत बारदोली सत्याग्रह से एक किसान नेता के रूप में उभरने से ही हुई थी फिर भी उसी सत्याग्रह ने उनकी छवि एक प्रशासक की भी बना दी जिससे वे कभी आज़ाद नहीं हो सके। ऐसा आपके साथ भी हो गया लगता है।

आडवाणी जी आप तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। मगर इस बार फिर आपके सामने एक जननेता खड़ा है। अमरीका की दो दलीय प्रणाली और प्रेसिडेंशियल डिबेट की वकालत की शुरूआत आपने की थी। आपको लगता रहा कि अच्छा भाषण देने से और प्रखर निखर लगने से पब्लिक पागल हो जाती है। मोदी ने उस मोडल को दूसरी तरीके से अपनाया। मोदी ने सोशल मीडिया और अपने नेताओं को मोदी राग जपने के लिए मजबूर कर एक किस्म से बीजेपी के भीतर का ‘प्राइमरी’ (अमरीकी तर्ज) चुनाव जीत लिया है। गोवा में मिली पहली ही जीत पर मोदी ने अहमदाबाद लौटकर सबसे पहले सरदार पटेल को वापस किसान नेता बनाया। लोहे की मूर्ति बनाने का एलान किया और पटेल को गुजरात में दर्शनीय बनाकर राजनीति में उनकी उपमा के उपयोग की धार को कुंद कर दिया।

अब आडवाणी जी आप फिर कंफ्यूज़ हैं। मान नहीं रहे हैं। अख़बारों में तरह तरह की ख़बरें आ रही हैं कि आप विधानसभा चुनाव से पहले नाम के एलान का विरोध कर रहे हैं। खबरें छप रही हैं कि संघ के नेताओं ने भी बीजेपी के इस सदाबहार ‘टू आई सी’ को मनाने का प्रयास किया। नहीं माने। ये मिले वो मिले फिर भी नहीं माने। सांस्कृतिक संगठन संघ को भी राजनीतिक काम में उलझा दिया! आप खुलकर कहते भी नहीं कि मुझे एक चांस और दो। पटेल सिंड्रांम के शिकार लगते हैं। मुझे नहीं मालूम कि सरदार पटेल से किसी ने यह सवाल किया था या नहीं और उनका जवाब क्या रहा होगा।

एक और जननेता सुषमा स्वराज भी आपकी राय की हैं। ट्विटर पर भी आईं, अपना यू ट्यूब चैनल भी बनाया लेकिन वो मोदीनुपात में समां नहीं बाँध सकीं। वैसे ब्लाग पर आप पहले आए मोदी से। खैर लगता है नेता बनने के लिए अच्छे भाषण शैली में सुषमा का भी घोर यक़ीन है। इसी तरह का मुग़ालता प्रखर विद्वान राजनेता मुरली मनोहर जोशी को भी रहा है कि उनकी दलीलें ही ललिता जी की क़मीज़ की तरह श्रेष्ठ हैं। वक़्ता होने का गर्व बीजेपी के कई नेताओं का भ्रम में डाल रहा है। इसकी सिर्फ एक ही वजह हैं- मनमोहन सिंह। ख़राब वक़्ता होने के गुण ने खुद मनमोहन सिंह को दस साल प्रधानमंत्री बनवा दिया लेकिन उनकी इस क्वालिटी से बीजेपी में कई नेता ग़लतफ़हमी के शिकार हो गए। तो मोदी प्रमेय के अनुसार आप प्रधानमंत्री बनने का ख़्वाब देखते हुए कहीं बर्बाद न हो जाएं यक़ीन मानिये आप सभी नेताओं के मुक़ाबले मोदी कमज़ोर वक़्ता हैं। उनके सभी भाषणों का प्रिंट निकाल कर विवेचना कर लीजियेगा। लेकिन भाषण से कोई नेता नहीं बनता न।

तो हे बीजेपी के पितृपुरुष आपको पितृपक्ष से पहले मनमोहन सिंह से एक ट्यूशन लेना चाहिए। इसमें कोई हर्ज नहीं है। विजेता से परास्त को सीख लेनी चाहिए। जिस तरह से मनमोहन सिंह ने इस बार विदेश यात्रा से लौटते वक्त भूल सुधार की वो काबिले तारीफ है। ज़रूर संघ के नेता इसकी मिसाल आपको को दे रहे होंगे। पिछली बार मनमोहन ने तीसरी पारी की बात कर सबको चौंका दिया था कि कहीं मनमोहन कांग्रेस के आडवाणी तो नहीं हैं। इस बार उन्होंने आप ही कह दिया कि मैं राहुल के अंडर काम करने को तैयार हूँ। नरेंद्र मोदी ने इसकी ग़लत आलोचना की। खुद किसी के नेतृत्व में काम करने के लिए तैयार नहीं हैं तो दूसरे पर हँसने से पहले सोचना चाहिए। देखना चाहिए कि किस तरह मनाने के नाम पर आडवाणी जी की बाँह मरोड़ी जा रही है उनके हर एतराज़ को मीडिया में लीक किया जा रहा है।

मनमोहन सिंह पर इस बयान के संदर्भ में हँसने से पहले बीजेपी को सोचना चाहिए था कि अगर आडवाणी जी आप मनमोहन की तरह होते तो कितना अच्छा होता। वे दो बार पीएम रहकर आसानी राहुल के अंडर काम करने के लिए तैयार हैं आप तीसरी बार प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनने के लिए इतना बेचैन हैं कि किसी अंडर पास से गुज़रना ही नहीं चाहते। उस पार्टी में जहाँ इस वक्त ज़्यादातर नेता एक दूसरे के अंडर काम कर चुके हैं । खुद आडवाणी जी आप कितने अध्यक्षों के अंडर काम कर चुके हैं। गडकरी राजनाथ के अंडर तो राजनाथ गडकरी के अंडर। अंडर ही अंडर।

आडवाणी सुषमा या मुरली मनोहर जोशी का विरोध किस बात पर है। यही कि मोदी की उम्मीदवारी से विधानसभा में ध्रुवीकरण होगा? क्या आप मानते हैं कि मोदी कम्युनल है? साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहते। तब गुजरात दंगों में मोदी से अलग लाइन क्यों नहीं ली। विधानसभा में ध्रुवीकरण होगा तो क्या लोकसभा में नहीं होगा। क्या ये संदेश देना चाहते हैं कि जो नेता चार राज्यों के लायक नहीं उसे बाद में पूरे देश का बना देना। बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण क्या है? दिल्ली की सत्ता या राजस्थान की? क्या आडवाणी और जोशी जी आप लोगों के वक्त ध्रुवीकरण नहीं हुआ था? दंगे तो बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद भी हुए थे । अगर ध्रुवीकरण की चिंता थी तो अमित शाह को क्यों नहीं रोका फिर। इसलिए आप लोगों का मोदी को लेकर समय का विरोध तर्कपूर्ण नहीं है।

आडवाणी सुषमा या संघ कोई हो सब मोदी से हार चुके हैं। अब सब बीजेपी में मोदीनुसार और मोदीनुपात में होगा। आडवाणी जी आपकी ये बात सही है कि पार्टी का ढाँचा बर्बाद हो जाएगा क्योंकि बीजेपी ने जिस संसदीय बोर्ड का संयुक्त राष्ट्र की तरह ढोल पीटा था वो ढोल फट गया है। मोदी बाहर से दबाव बनाकर भीतर आ गए हैं। दरवाज़े पर पहुँचता देख संघ से लेकर संगठन तक उनके स्वागत में है। लेकिन किसी भी पार्टी का लक्ष्य सत्ता है संगठन नहीं। संगठन माध्यम है। नेता संगठन में पैदा होते हैं। जब आप पूरे देश को मोदी के पीछे चलाना चाहते हैं तो संगठन चल लेगा तो क्या हो जाएगा। अजीब है। जिसका नेतृत्व संगठन ही मानने को तैयार नहीं उसके बारे में देश से कैसे कहेंगे कि इसे नेता मान लो।

ravish kumarअतएव आदरणीय आडवाणी जी और सुष्मा जी आप लोग मोदी का स्वागत कीजिये। आप लोग अपनी पार्टी में हार गए हैं। पितृपक्ष से पहले पितृपुरुष की तरह युवा को ज़िम्मेदारी सौंप दीजिये। कृपा आएगी। कार्यकर्ताओं की। आपको पार्टी ने मेंटर बनाया था। आप बता दीजिये कि नेतृत्व के लिए किसे मेंटर किया है। कोई है भी या खुद ही को किया है। मोदी ही पितृपुरुष हैं। बीजेपी के। आप कम से कम अब त्याग पुरुष तो बन जाइये।

आपका,
मोदी भक्तों द्वारा प्रचारित एक कांग्रेसी दलाल पत्रकार 
रवीश कुमार ‘एंकर’

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