राम के फेर में फंस गये आसाराम

asharamएक नाबालिग से दुष्कर्म के आरोप में घिरे संत आसाराम और राम जेठमलानी में कई समानता है। दोनों पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत में पैदा हुए हैं। दोनों ही सिन्धी है। दोनों ही बंटवारे के बाद भारत आये। दोनों ही भारत में सफलता के शिखर पर मौजूद हैं। एक धर्म की धंधेबाजी में तो दूसरा कानून के कारोबार में। दोनों की धमक है। दोनों की चमक भी है। लेकिन लगता नहीं है कि आसाराम के मामले में जब राम जेठमलानी वकालत करने के लिए तैयार हुए तो इन सब बातों का कोई मतलब रहा होगा। मामला सीधे तौर पर मुवक्किल और वकील का ही था। आसाराम के भक्त बापू की रिहाई के लिए मंहगे से मंहगा वकील रख सकते हैं और राम जेठमलानी देश के सबसे मंहगे वकील हैं। लेकिन अपनी वकालत की धाक रखनेवाले नब्बे साल के राम ने आसाराम को बचाने की जो दलीलें कोर्ट के सामने रखीं उससे कोर्ट कितना सहमत हुआ यह तो बुधवार को पता चलेगा, लेकिन जनता बिदक गई।

वही जनता जो पिछले कई दिनों से टीवी देखकर समझ चुकी है कि आसाराम एक नाबालिग के साथ यौन हिंसा के अपराधी हैं। वही टीवी जिसने पिछले कुछ दिनों में अपनी तकरीरों से साबित कर दिया है कि आसाराम बहुत अपराधी किस्म के आदमी हैं जो सन्यास के नाम पर व्यापार करते हैं। वही आसाराम जिन्होंने एक नाबालिग से पहले दुष्कर्म करने की कोशिश की और बाद में पोती पोती की दुहाई देने लगे। अपने आपको निर्दोष भी बताते रहे और ऊंची पहुंच का इस्तेमाल करके अपने आपको बचाने की कोशिश भी करते रहे। किसी ने न सुनी तो कह दिया कि वह लड़की विक्षिप्त है। मानसिक रूप से बीमार है। अकेले आसाराम ने ही यह बात नहीं कही। उनके ‘ना’काबिल साईं (आसाराम का बेटा नारायण साईं) ने भी यही तर्क पेश किया कि वह लड़की तो मानसिक रूप से बीमार है। इसलिए तो “पवित्र बापू” पर ऐसा “घिनौना आरोप” लगा रही है।

अब जब साईं से आगे राम के जाने की बारी आई तो वे साईं से भी आगे चले गये। कोर्ट कचहरी की दलीलों में एक वकील अपने मुवक्किल के लिए जी जान लगा देता है। ऐसे ऐसे तर्क करता है कि आरोप लगानेवाला तिलमिलाकर रह जाता है। कचहरी की कोटरी में यह कानूनी काबिलियत हुआ करती है। खासकर तब जब बात बलात्कार जैसे अपराधों से जुड़ी हो। ऐसे ऐसे सवाल पूछे जाते हैं कि बलात्कार पीड़ित के लिए बचाव पक्ष के वकील के सवाल बलात्कार से बड़ा अत्याचार बन जाते हैं। नारायण साईं ने तो अपने ‘पवित्र बापू’ को बचाने के लिए लड़की को मानसिक रूप से विक्षिप्त करार दिया था लेकिन राम साईं तो नारायण साईं से भी आगे जा खड़े हुए। सोमवार को जयपुर की अदालत में जिरह के दौरान उन्होंने लड़की को मानसिक रूप से बीमार तो बताया ही, यहां तक कह दिया कि उस लड़की को मर्दों के पास जाने की बीमारी है।

ram jethmalaniराम साईं का कहना है कि वह लड़की बालिग है, वह न जाने क्यों अपने आपको नाबालिग करार दे रही है। केस डायरी को अपने मुवक्किल आसाराम के पक्ष में मजबूत करने के लिए राम साईं ने जो तर्क दिये हैं, एक वकील के रूप में उसकी समीक्षा आरोपी पक्ष के वकील करें। लेकिन यहां तो मामला जनता के अदालत का है जहां राम साईं के खिलाफ माहौल बन गया है। हो सकता है अपना नब्बेवां जन्मदिन मनाकर जयपुर की ऊंची अदालत में खड़े हुए राम साहब के दिलो दिमाग से पार्टी का खुमार न उतरा हो और हो सकता है अपने किसी मुवक्किल के लिए दिये गये ऐसे मजबूत तर्क के जरिए वे अपना केस भी मजबूत कर लें लेकिन उस जनता की अदालत में इस आर्गूमेन्ट का कड़ा विरोध शुरू हो गया जिस जनता की अदालत में आखिरकार हर तरह के हुक्काम को हाजिर होना पड़ता है। जन अदालत के लिहाज से ऐसा ही एक सशक्त मंच बनकर उभरे सोशल मीडिया ने राम जेठमलानी का मजाक बनाना शुरू कर दिया। किसी ने फेसबुक पर राम जेठमलानी को लानत भेज दी तो किसी ने ट्विटवर पर लिखा कि किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए दोषी मान लेना चाहिए कि उसका वकील राम जेठमलानी है, और तब तक उसे जेल से रिहा नहीं करना चाहिए जब तक कि राम जेठमलानी उसके वकील हों। लोग यहां तक कह रहे हैं कि राम जेठमलानी के इस आर्गूमेन्ट से साफ पता चलता है कि कौन किस बीमारी से ग्रस्त है।

हालांकि खुद अदालत ने राम जेठमलानी के तर्कों से बहुत सहमति नहीं दिखाई और यह कहकर टोंक दिया था कि आप जमानत पर जिरह कर रहे हैं कि केस लड़ रहे हैं? राम जेठमलानी जैसे वरिष्ठ वकील पर किसी हाईकोर्ट की यह टिप्पणी बहुत हल्की नहीं है। लेकिन अदालत से भी ज्यादा सख्त टिप्पणी जन अदालत ने की है। वह शायद इसलिए क्योंकि मामला एक बच्ची के साथ एक संत के दुष्कर्म से जुड़ा हुआ है जिससे एक साथ दो दो अपराध घटित होते हैं। एक, किसी लड़की के साथ यौन अत्याचार होता है और दो, आम जन के साथ विश्वासघात होता है। विश्वासघात उस संस्था द्वारा जिसे हमारे समाज में सर्वोच्च माना जाता है। सन्यास की संस्था। साधुओं की व्यवस्था। अगर धर्म और सन्यास की यह सर्वोच्च संस्था भी हमारे साथ छल कपट करेगी, हमारे विश्वास के साथ खिलवाड़ करने लगेगी तो आखिरकार आम जन किसकी अदालत में जाकर न्याय मांगेगा?

जाहिर है, राम जेठलमानी के प्रति लोगों के मन में गुस्सा है। गुस्सा इस बात के लिए नहीं कि उन्होंने अदालत में आसाराम को बचाने की कोशिश की बल्कि गुस्सा इस बात के लिए कि उन्होंने भी वही तर्क दिया जो आसाराम के अंध समर्थक या उनके कारोबारी भक्त दे रहे हैं। पीड़ित लड़की के आरोप जहां तक जाते हैं वहां तक आसाराम दोषी ही नजर आते हैं। 72 साल की उम्र में काम सक्रियता अपने आप में एक चौंकानेवाली जानकारी है। आसाराम आखिर क्या खाते हैं कि प्रकृति के नियम को भी धता बताते नजर आते हैं? इसलिए आसाराम पर आरोप सिर्फ अदालत की कानूनी कवायद भर नहीं है। मीडिया की जिरह के जरिए यह जन भावना का मुद्दा बन चुका है। हो सकता है अपनी आदत के अनुसार अपने कानूनी केसों में राम साईं के लिए जनभावना का कोई मतलब न होता हो लेकिन इस बार उन्हें शायद इसकी जरूरत महसूस करनी चाहिए थी। आखिरकार अदालतों को भी जनभावना का आदर करना ही होता है। कम से कम दिल्ली बलात्कार कांड ने इस तथ्य को अदालती कार्रवाई में भी बखूबी स्थापित कर दिया है।

वैसे तो दिल्ली के जंतर मंतर पर आसाराम के समर्थकों का भी एक धरना चल रहा है पिछले करीब पंद्रह सत्रह दिनों से। वहां मौजूद लोग भी वही बोल रहे हैं जो राम जेठमलानी ने अदालत की जिरह में बोला है। अगर ऐसे आपत्तिजनक तर्कों से ही आसाराम का बचाव हो सकता था तो फिर किसी राम जेठमलानी की जरूरत ही क्या थी? यह तो नारायण साईं भी बोल रहे हैं और आसाराम के बहुत सारे अंध समर्थक भी। अगर राम जेठलमानी भी आसाराम के समर्थक की तरह ही उनका बचाव करते नजर आयेंगे तो वे बचाने की बजाय आसाराम को फंसायेंगे। और फिलहाल उन्होंने आसाराम के साथ यही किया है। अदालत की कार्रवाई में वे कितने उन्नीस या बीस साबित हुए यह तो अदालत का फैसला बताएगा लेकिन जनता की अदालत में उन्होंने आसाराम के केस को और अधिक कमजोर कर दिया है। उस जनता की अदालत में जिसकी नजर से गिरने की सजा किसी संत आसाराम के लिए फांसी पर चढ़ने से भी ज्यादा बड़ी होगी। अगर अभी भी आसाराम का सबसे बड़ा वकील उसी तरह उस लड़की को चरित्रहीन और बदचलन बतायेगा जिस तरह से वे और उनके ‘लाल’ बता रहे थे तो राम के फेर में आसाराम शायद ज्यादा बुरे फंस जाएंगे। http://visfot.com

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