वो आसाराम हुआ, डार्लिंग टीआरपी के लिए

asharamधनंजय सिंह ‘मलंग’ बाबाओं और मदारियों के देश में ये चैनल भी बढ़िया मजमा जुटाते हैं और तमाशबीन, जिनके पास कोई काम नहीं होता दिन भर अपने मगज में कचरा भरते रहते हैं क्योंकि इसी से उनको खुराक मिलती है। कुछ पौष्टिक खुराक चली जाती है तो दिमाग खराब होने का डर रहता है इसलिए पब्लिक अपना चैनल बदलने के लिए तैयार नहीं होती। चैनल वालों को भी पता है की अगर वो प्रोग्राम की स्टाईल बदल देंगे तो उनके तमाशबीन भाग जायेंगे और दूसरे मदारी की कमाई बढ़ जायेगी इसलिए तमाम पढ़े लिखे जमूरे भी अपनी किताबें ताख पर रख कर मदारी की गाईडलाइन के हिसाब से कूदते -हांफते रहते हैं।

बन्दर को पता रहता है कि वो अगर मदारी के हिसाब से नहीं कूदेगा तो उसको पब्लिक पैसा नहीं देगी, पब्लिक पैसा नहीं देगी तो मदारी क्या खायेगा और बन्दर को क्या खिलायेगा? और फिर बंदरिया भाग गई तो बन्दर क्या करेगा? इसलिए मदारी की प्रोग्रामिंग के हिसाब से बन्दर कूदता है जिससे मदारी भी खुश और बाकी बंदरों को जो आज़ाद हवा में जीते हैं, जाहिल समझते हुए चेन से बंधा हुआ बन्दर भी खुश। समय की मार ऐसी पड़ी की मदारी को खाने के लाले पड़ गए और तमाम बड़े मदारियों ने चैनल खोल लिए जिसमें वो तमाशे दिखाते हैं और धंधा हिट जा रहा है।

इन चैनलों के बनने में बाबाजी लोगों का भी बड़ा हाथ है और कुछ बाबाजी लोग खुद चैनलों की पैदाईश हैं। वैज्ञानिक सोच और समझ को फैलाने की बात भले संविधान में की गई हो लेकिन सबको अपने धर्म के पालन और प्रचार-प्रसार करने की आज़ादी भी दी गई और उस जमाने में नहीं सोचा गया की ये आज़ादी कितनी भारी पड़ने वाली है। बाबाजी लोग आज़ादी के बाद से ही सत्ता के साथ उसी के चरित्र में ढलते गए, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी नेहरु गाँधी परिवार के आदिम बाबा थे। बताया जाता है की जब वो प्रधानमंत्री के साथ रूस गए थे तो अगले दिन उनकी ही तस्वीरें अख़बारों में अधिक छपीं क्योंकि कड़कती ठंढ में भी उनके बदन पर केवल एक धोती थी। एक कम्युनिस्ट देश में बाबा को लेकर जाने का क्या काम, पता चला की वो बहुत सिद्ध थे इसलिए उनको ले जाया गया था ताकि वहाँ लोगों को बता सकें की धरम अफीम नहीं है क्योंकि बाबा खुद अफीम खाकर टाईट हो जाता है। रूस से लौटकर उस सिद्ध बाबा को हथियार बनाने की फैक्ट्री का लाईसेंस दे दिया गया था जबकि आज तक प्राईवेट सेक्टर को इस मामले में अपने देश में बहुत कम आज़ादी है। ये अलग बात है की संतई के खिलाफ जाकर हथियार की फैक्ट्री खोलने वाला ये महायोगी उसी फैक्ट्री में जाते वक्त हेलीकाप्टर दुर्घटना में जन्नतनशीं हो गया और तब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बहुत से लोग दुखी हो गए थे। उस ज़माने में बाबा जी का चैनल सीमित लोग ही समझ पाते थे और उसका लाभ लेते थे लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है, चैनल को टीवी चैनल में बदल दिया गया है ताकि धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार हो सके।

टीवी से क्या हुआ की कथावाचक और सामने पोथी रख कर भीड़ को बरगलाते लोग भी बाबा जी की श्रेणी में आ गये। एक कथा है कि एक कथावाचक दूर गाँव में भीड़ को हरमोनियम बजाकर धरम गाथा सुना रहे थे और समझा रहे थे की मांसाहार करने वाला नरकगामी होता है। बकरी काटने और खाने वाले का नरक में क्या हाल होता है बताते हुए उन्होंने ऐसा मार्मिक चित्र खींचा कि तमाम लोग सिहर उठे ये सोच कर कि उनका परलोक में क्या हाल होगा, ऐसे लोगों को पाप से निवारण के लिए उन्होंने उपाय भी सुझा दिया और बताया कि अगले महीने पाप मुक्ति अनुष्ठान किया जाएगा, जो भी चाहें अपना अंशदान जमा कराएँ। कई गठरी मुद्राएँ इकट्ठी हो गईं तो पंडिज्जी का सेवक माल लादकर घर पहुंचा और पंडिताईन को उसने फीडबैक दिया कि आज की कथा तो सुपर हिट हो गई । मांस -मच्छी खाना पाप है, अब मैं भी नहीं खाऊंगा। रात में पंडिज्जी घर आये और जब थाली देखे तो लगे पंडिताइन को गाली देने कि ये कैसी थाली, दोपहर में पता चला था घर में मछली कोई पहुंचा गया है, बनाया क्यों नहीं ? पंडिताइन ने बताया कि बना तो दी थी लेकिन सुना कि आज आपकी कथा इसी के विरोध में थी तो बना बनाया भोजन कुत्ते को दे दिया। दिन भर चौकी पर बैठ कर अपनी मधुर वाणी से कई गठरी इकट्ठी कर चुके कथावाचक ने घरवाली का माँ -बहन करने के बाद समझाया की ‘चौकी की बात चौके में नहीं चलती’ यानि व्यास गद्दी पर कुछ और कहा जाता है और अपने किचन में कुछ और पकाया जाता है।

इतनी पुरानी कथा हमारे समाज में है लेकिन धर्म धक्के में फंसे लोगों के आँखों की पट्टी नहीं खुलती। हरी चटनी और समोसे के विधान से अपनी किस्मत बदलने की लालच में लोग समागमों में उमड़ते ही रहते हैं। समाचार चैनलों की सुबह ‘आप का दिन कैसा होगा और जानिए भविष्य फल’ जैसे कार्यक्रमों से शुरू होती है और अंधविश्वास के खिलाफ दिन में लेक्चर देने वाले भी अपना दिन ऐसे कार्यक्रमों से ही शुरू करने में नहीं हिचकते। आजकल दिन का राशिफल बताने के बाद इन चैनलों का मुख्य समाचार होता है की आशाराम को जमानत मिलेगी की नहीं और फिर उसके स्वीमिंगपूल से लेकर उसकी रहस्मयी कोठरियों की एक्सक्लूसिव स्टोरी चलने लगती है। लगता है कि ये सब इनको अभी पता चला है,इसके पहले ये चैनल ही उसको हिट कराने में लगे थे और देश भर के नामी गिरामी लोगों को उसके पैरों पर गिरते हुए दिखा रहे थे जबकि चौकी क बात चौका में नहीं चलती सबको मालूम है। जोरदार ढंग से दिखाया जा रहा है की बाप के नक़्शे कदम पर उसका बेटा भी चल रहा है, अदालत और पुलिस को जितना पता है उससे अधिक ये जांबाज रिपोर्टर खोज कर ला रहे हैं और जीभ लपलपाते हुए,बिगबॉस को छोड़,पब्लिक तमाशाराम एपिसोड का मजा ले रही है। आजकल राखी सावंत और मल्लिका भी उदास होंगी, सोचती होंगी की उनके धंधे से अधिक मुनाफा तो राधे माँ वाले धंधे में है, टीआरपी भी जबरदस्त है क्योंकि भक्त समुदाय मीडिया के लिए बहुत बड़ा बाज़ार खड़ा कर रहा है। ये जांबाज़ रिपोर्टर तब कहाँ थे जब ये लीलाएं चल रही थीं, क्या तब ये भी प्रसाद के चक्कर में सब कुछ लीला ही समझ रहे थे और राधे राधे में मगन थे।

ऐसे ही कश्मीर के चैनलों और तकरीरों में एक बड़ा चेहरा बन चुके एक जनाब भी कुछ महीने पहले घेरे में आ गए थे जब कुछ लड़कियों ने उनके दुष्कृत्यों को उघाड़ दिया था, वो भी एक शिक्षा संस्थान चलाने की आड़ में दरिंदगी का खेल करते हुए धर्म का लबादा लपेटे हुआ था। आसाराम का धंधा तो किसी मल्टीनेशनल कंपनी को भी मात देने वाला है। और मालिक की हैसियत से बाप बेटे अपने कर्मचारियों/भक्तों के साथ खिलवाड़ करते थे और चैनलों के माध्यम से धर्म रक्षा अभियान भी चल रहा था। बड़े ब्रांड से चैनलों को माल अधिक मिलता है और ब्रांड को मुनाफा भी अधिक मिलता है क्योंकि पब्लिक गंगा जी के किनारे धुनी रमाये या या बस्ती के बाहर झोपड़ी में बैठे किसी फ़क़ीर के पास तो जाती नहीं क्योंकि उसकी नज़र में ये कंगले हैं जिनके पास क्या माल मिलेगा और ऐसे फक्कड़ों को पब्लिक और धंधे में खुद की रेटिंग बढ़ाने की परवाह भी नहीं होती। पब्लिक आसाराम के मजमे में ही जाएगी क्योंकि उसका तम्बू शानदार है और तम्बू की सजावट से अंदाज़ा लगाते लोग, की वहाँ का मुजरा जरुर बढ़िया होगा क्योंकि सजावट ही ऐसी है तो बाई जी कैसी होंगी। सजावट में फंस चुके लोग मुक्ति की तलाश में फिर ऐसा फंसते हैं की उनका निकलना मुश्किल, हर तरफ उसी तम्बू की चर्चा, भीड़ दौड़ी चली आती है और बाबाजी की गठरी फैलती जाती है। गठरी फैलेगी तो कुछ झड़ेगा, रिसेगा और पीछे चलने वालों में भी पहुंचेगा, इस लालच में तमाशा बढ़ता चला जाता है। आसाराम की गठरी फट चुकी है तो भागते भुत की लंगोटी सही वाली स्टाईल में चैनलों में लूटने की होड़ मची है लेकिन यहाँ तो लंगोटी में से भी बहुत माल निकल रहा है। चूँकि दारा सिंह के बाद दूसरी बार हुआ है की संज्ञा को विशेषण बना दिया गया है यानि ‘वो साला आसाराम हो गया है’ का मुहावरा भी चलन में आ गया है इसलिए चैनलों में आसाराम को बनाये रखना इस समय धंधे की मज़बूरी हो गई है।

आसाराम एपिसोड झमाझम टीआरपी दे रहा है क्योंकि देश हर पल की जानकारी चाहता है। वाह रे देश, एक समय चैनलों ने देश में क्रांति ही ला दी थी, जंतर मंतर को तहरीर चौक बना कर लोक तंतर को लाईव किया जा रहा था, भला हो कि देश बाल बाल बच निकला। लेकिन आसाराम से बचना अभी मुश्किल लग रहा हैं क्योंकि अन्ना से भी अधिक भक्त बताये जाते हैं और अब वो सब के सब अब चिंतित होंगे कि कहीं उनके घर की बहु बेटियां भी कहीं बबवा के साथ एकांत साधना में न गई हों क्योंकि गुरु को सब कुछ समर्पित करने की परम्परा में कहीं सबकुछ सही में न समर्पित हो गया हो। हो सकता है किसी ने कभी घर में मुँह खोला हो तो गुरु की निंदा और गौ हत्या को एक समान मानकर चुप्पी छा गई हो लेकिन ये चैनल वाले सारे भक्तों को उनके मोहल्ले वालों की नज़र में तो उठा ही दिए। गर्दभ भक्तों ने भी नहीं सोचा कि वो एग्रेसिव मार्केटिंग के शिकार हो कर किस सुरंग में जा रहे हैं क्योंकि आसाराम का क्या जाएगा, आजीवन कारावास हुई तब भी ठीक और सबूतों के अभाव में बरी हो गया, (ऐसा हो सकता है) तब भी ठीक। उसने अपना लोक-परलोक सही कर लिया है, अपनी शर्तों पर, अपने ढंग से जिंदगी गुजार ही ली है, अंत तो सबका होना है, उसका भी निश्चित है। हाँ इन चैनलों के चक्कर में फँसे लोगों के बचने का उपाय नहीं दिखता क्योंकि एक जाएगा तो उसकी जगह भरने के लिए दूसरा तैयार रहेगा और सहारा रहेगा धर्म का जो चीन, ताईवान में निर्मित ट्रांसमीटर के जरिये अमेरिकी तकनीक के साथ सबके दिमाग में घुसता ही जायेगा। जो रिसीवर बदलेगा वही बचेगा नहीं तो तम्बू में घुस जायेगा और फिर सबकुछ लुटा कर दूसरा चैनल तलाशेगा। http://visfot.com

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