अंदरूनी कलह पड सकती है राजनैतिक दलों को भारी

डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव
डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव

-डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव- भोपाल/ देश में होने वाले विधानसभा के आमचुनाव का बिगुल फुंके अब समय हो चुका है और जहां एक ओर चुनाव आयोग निष्पक्ष और निर्विध्र चुनाव को संपन्न कराने में कमर कस मैदान में उतर चुका है तो वहीं दूसरी ओर राजनैतिक दलों के रणनीतिकारों की रणनीति बनती बिगडती देखी जा सकती है। इसके पीछे का कारण टिकिट वितरण को लेकर घमासान और उस पर संगठनों को कार्यकर्ताओं के अंदर से उठ रहे विरोध के स्वरों को शांत कर माहौल बनाने की एक बडी जिम्मेदारी बनी हुई है। इन विरोध के स्वरों को ज्यादातर पार्टी के खिलाफ नहीं अपितु व्यक्तियों के विरोध में उभर रहे हैं। विदित हो कि देश के मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ,राजस्थान,दिल्ली एवं मिजोरम में विधानसभा का गठन इस बर्ष के अंतिम माह में होना है। वैसे देखा जाये तो इस प्रकार के हालात लगभग सभी जगह देखे जा रहे हैं परन्तु अभी हम फिलहाल बात करेंगे मध्यप्रदेश की जिसमें दो प्रमुख दलों भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस की मध्य सीधा मुकाबला बतलाया जाता है जबकि दूसरी ओर दो व्यक्तियों के मध्य मुकाबला होने की बात भी इस समय चर्चा में बनी हुई है। वैसे तो संपूर्ण प्रदेश में देखें तो अधिकांश सीटें एैसी हैं जिनमें पार्टी के साथ ही व्यक्तियों के मध्य सीधा मुकाबला माना जा रहा है। प्रदेश में लगभग 10 बर्षों से सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पुन: तीसरी बार सत्ता में वापिसी के लिये लगभग दो बर्ष पूर्व से ही तैयारियां प्रारंभ कर चुकी थी । वहीं दूसरी ओर वनवास भोग रही कांग्रेस अंतिम समय तक किसके नेतृत्व में आगे बढा जाये इसी विचार में लम्बा समय गंवा चुकी थी और जैसे तैसे ज्योतिरादित्य को कमान सौपी तो देर हो चुकी थी । मात्र कुछ ही दिन मैदान में खुले रूप में बीते ही थे कि आचार संहिता घोषित हो चुकी जबकि भाजपा प्रचार प्रसार में लगातार पिछले बर्ष से ही लगी हुई थी। फिर भी मुकाबला रोचक बनता दिखलायी दे रहा है एक तरफ यहां शिव और ज्योति आमने सामने आ चुके हैं। हाल ही में आये एक सर्वे ने भारतीय जनता पार्टी की बांछे खिला दी हैं जबकि कांग्रेस की नींद उडती दिख लायी दे रही है।

क्या है सर्वे में –
हाल ही में आये आईबीएन 7 के सर्वे पर नजर डालें तो मध्यप्रदेश में एक बार फिर शिवराज सिंह की सरकार बनती नजर आ रही है। वहीं  छत्तीसगढ़ में रमन सिंह जोरदार वापसी कर सकते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार आईबीएन 7 ‘द वीकÓ के लिए ये प्री पोल सर्वे सीएसडीएस ने किया है। आईबीएन7 और द वीक के लिए सीएसडीएस ने 13 से 20 अक्टूबर के बीच 35 विधानसभा सीटों की 140 पोलिंग स्टेशन के 2870 वोटरों से बातचीत की। सर्वे के मुताबिक शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मध्यप्रदेश में भारी बहुमत में जीत हासिल कर सकते हैं। सर्वे के अनुसार  मध्यप्रदेश में बीजेपी 230 सीटों में से 148 से 160 सीटें हासिल हो सकती है। जबकि कांग्रेस महज 52 से 62 सीटों पर सिमट सकती है। बीएसपी को 3 से सात सीटें मिलती नजर आ रही हैं। जबकि अन्य को 10 से 18 सीटें मिल सकती हैं। शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा इसको लेकर अतिउत्साह में दिखलायी दे रही है। श्री चौहान ने सर्वे पर खुशी जताते हुए कहा कि ये सर्वे सही हो सकता है। एमपी में पिछले दस साल से बीजेपी ने जो काम किया है वो पहले किसी ने नहीं किया। हमने मध्यप्रदेश को एक परिवार की तरह चलाया है। शिवराज सिंह चौहान हैट्रिक लगाने को लेकर उत्साहित हैं। बहरहाल किसी भी राज्य में वोट शेयर ही सीटों में बदलते हैं। शिवराज के दस साल के राज के बावजूद कांग्रेस अपने वोट शेयर ज्यादा बढ़ाने में कामयाब नजर नहीं आ रही है। जानकारी के अनुसार  प्री पोल सर्वे के मुताबिक 2008 में कांग्रेस को 32.4 फीसदी वोट मिले थे परन्तु 2013 में ये महज 33 फीसदी पर ही पहुंच पाया। जबकि बीजेपी ने 2008 में 37.6 फीसदी वोट हासिल किया था उसमें ईजाफा होते हुय वह 2013 में ये 44 फीसदी पर पहुंच गया है जो कि कांग्रेस से ये 11 फीसदी ज्यादा बतलाया जाता है। प्री पोल सर्वे में राज्य के 72 फीसदी लोग शिवराज सरकार के कामकाज से संतुष्ट नजर आएं। हांलाकि 2008 में ये आकड़ां 76 फीसदी था। बहरहाल सर्वे में महज 15 फीसदी लोग मिले जो शिवराज से असंतुष्ट थे। बुनियादी सुविधाओं में भी 64 फीसदी लोगों ने माना सड़कों की स्थिति सुधरी है। अस्पतालों में सुधार को 42 फीसदी लोगों ने अच्छा माना है। जबकि बिजली की स्थिति में 65 फीसदी लोगों ने सुधार माना है। हिंदु-मुस्लिम रिश्तों में सुधार की बात पर 43 फीसदी लोग सहमत नजर आएं।
अंदरूनी कलह से जुझते दल-
देखा जाये तो भारतीय जनता पार्टी हो या फिर कांग्रेस दोनो में ही अंदरूनी कलह सामने देखी जा सकती है लगातार कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन और विरोध इसका प्रत्यक्ष उदाहरण माना जा रहा है। जानकारों की माने तो जब इतना विरोध सडक पर है तो दिलों में कि तना होगा? भारतीय जनता पार्टी कार्यालय के सामने बटते पर्चे और प्रदेश के अनेक मंत्री विधायकों का विरोध नारे बाजी संगठन को समस्या पेदा कर रहा है यह बात अलग है कि संगठन के पदाधिकारी इसको सामने हल्के में लेते दिखलायी दें परन्तु जमीनी हकीकत कुछ और बयां करते दिखलायी दे रही है। वहीं कांग्रेस भी इसमें पीछे नहीं दिखलायी देती है । सूत्रों की माने तो दिल्ली में जारी टिकटों में अपनी दावेदारी और कश्मकश के मध्य महिला एवं  युवा कांग्रेस दोनो का कोटा कई दिग्गजों के लिये भारी पडने वाला है।  पार्टी से ही जुडे सूत्रों की माने तो  गत दिवस दिल्ली में हुई प्रदेश चुनाव समिति की प्रथम बैठक में महिलाओं को हर जिले से कम से कम एक टिकट देने की मांग को लेकर दमदार तरीके से मध्यप्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष अर्चना जायसवाल ने तर्क भी प्रस्तुत कर दिये हैं। जायसवाल मध्यप्रदेश की लगभग तीन दर्जन से अधिक सीटों पर महिलाओं को टिकिट दिलाने की वकालत कर चुकी हैं। वहीं युवक कांग्रेस भी इसमें कहीं पीछे दिखलायी नहीं देती है,पार्टी के ही सूत्रों की माने तो युवा कांग्रेस पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एवं विधायक प्रियव्रत सिंह के नेतृत्व में लगभग आठ पदाधिकारियों ने दिल्ली में युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव सातव इस सिलसिले में मुलाकात की थी। वहीं नवनिर्वाचित प्रदेशाध्यक्ष कुणाल चौधरी भी सक्रिय एवं चुनाव जिताने में सक्षम युवा नेताओं को टिकट देने की पैरवी में जुटे हुये दिखलायी दे रहे हैं। सूत्रों के अनुसार मध्यप्रदेश कांग्रेस के इन संगठनों के कुछ दावेदारों की सूची राहुल गांधी के मार्फत भी स्क्रीनिंग कमेटी के पास पहुंचने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता और ऐसी स्थिति में उक्त संगठन द्वय की टिकटों को लेकर दावेदारी जितनी अधिक बढ़ेगी, अन्य दावेदारों की संभावनाओं पर उतना अधिक ग्रहण लगेगा। पार्टी से ही जुडे सूत्र बतलाते हैं कि लगभग 72 प्रत्यासियों के नाम तय हो चुके हैं तथा 158 सीटों पर विचार चुनाव समीति को करना है। जिनमेंं से लगभग 50 पर युवा कांग्रेस व महिला कांग्रेस अपनी दावेदारी को लेकर कशमकश एवं दावेदारी की जा रही है। वहीं सूत्रों की माने तो महत्चपूर्ण बात यह है कि महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष अर्चना जायसवाल और युवा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कुणाल चौधरी स्वयं इंदौर व शाजापुर जिले से टिकट के दावेदार की दौड में बतलाये जाते हैं।
डेंजर जोन फिर भी मैदान में –
प्रदेश के अनेक दिग्गजों की हालत दयनीय बतलायी जा रही है परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि जहां संगठन का ध्यान इस ओर नहीं दिखलायी दे रहा है तो सत्ता सुन्दरी का स्वाद चखने के आदी हो चुके यह नेता लगतार इसका रसास्वदन करने के प्रयास में लगे हुये देखे जा सकते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय जनता पार्टी के कदवर मंत्रियों की जीत भी आसान नहीं दिखलायी दे रही है जिनमें से दमोह विधायक एवं प्रदेश के वित्त एवं जलसंसाधन,पर्यावरण मंत्री जयंत कुमार मलैया,पथरिया विधायक एवं कृषि मंत्री डा.रामकृष्ण कुसमरिया,जबेरा विधायक एवं उर्जा राज्य मंत्री दशरथ सिंह लोधी,ं मंत्री कन्हैया लाल अग्रवाल,हरिशंकर खटीक, रामदयाल अहिरवार और बृजेन्द्र प्रताप ङ्क्षसह को अपने-अपने क्षेत्र में विशेष ध्यान देने की सलाह दी गई है। ज्ञात हो कि जयंत मलैया गत चुनाव में मात्र 131 मतों से और डा.कुसमरिया 650 मतों से बमुश्किल जीत दर्ज करा पाये थे, जो लगातार आज भी चर्चाओं में बनी हुई है ? जनता में वर्तमान में जयंत मलैया के विरूद्ध जमकर आक्रोश बना हुआ है। क्षेत्र में व्याप्त अनेक समस्याओं का समाधान नहीं हो पाना और विकाश के नाम पर क्षेत्र का पिछडना इसमें एक महत्वपूर्ण बात मानी जा रही है। मतदाता क्षेत्र के उद्योग विहीन होने एवं निजि स्वार्थ के कारण विश्वविद्यालय को अन्यन्त्र स्थापित करवाने की बात को भूले नहीं है। धूल भरे शहर में फूल खिलाने के वादे का पूर्ण नहीं हो पाना ,पेय जल समस्या का समाधान नहीं होना भी इसमें शामिल है। ज्ञात हो कि गत पूर्व में उद्योग मंत्री का दायित्व निभा चुके श्री मलैया एक भी उद्योग क्षेत्र में स्थापित नहीं करा पाये थे। वहीं जल संसाधन विभाग के मुखिया का दायित्व निभाने के बाद भी लोग प्यास से तरसने की बात मतदाताओं में मन में आक्रोश का कारण बनी हुई है। सूत्रों की माने तो जनता का गुस्सा अंदर-अंदर उबल रहा है जो मतदान दिवस पर फूटने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता? इसी क्रम में डा.कुसमरिया के विरूद्ध भी जनता में आक्रोश बना हुआ है। लगातार लेटलतीफी मंत्री के नाम से मशहुर हो चुके मंत्री जी की स्थिति भी अति दयनीय बतलायी जाती है। अपने निजि स्वार्थ के कारण गृह ग्राम में कडोरों की फाग स्टेडियम के नाम पर खेलने तथा खेल की जगह शौचालय में लगातार तब्दील होने वाले स्टेडेडियम की चर्चा जमकर व्याप्त है। अपने दो चर्चित चेहरों में घिरे बाबा की कडोरों की अचानक आयी अचल सम्पत्ति की बात भी लगातार चर्चाओं में बनी हुई है। मतदाओं में जमकर आक्रोश होना और कार्यकर्ताओं का भीतरघात होना इनको भारी मुश्किल में डाल सकता है।  वहीं दशरथ सिंह के इतिहास पर नजर डालें तो यह सीधे आमचुनाव में कभी भी जीत दर्ज नहीं करा पाये और उपचुनाव में प्रदेश सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और हाल के चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज के प्रयास से ही विजय श्री प्राप्त कर सके थे। उक्त तीनों मंत्रियों के विरूद्ध जनता में भारी आक्रोश बतलाया जाता है। श्री लोधी के मंत्री बनने के बाद भी क्षेत्र में भ्रमण के दौरान जनता और कार्यकर्ताओं को एक सभा में आवाज देकर स्वागत के लिये बुलाना और किसी का नहीं पहुंचना इसका एक बडा उदाहरण माना जा सकता है। वहीं चर्चित दस्सू का के परिजनों का हत्या के प्रयास का मामला और उस पर जमकर दखलंदाजी भी एक बडा कारण बनने में हो सकता है। वहीं हाल ही की रायशुमारी में श्री मलैया के विरूद्ध आंतरिक रूप से फुट रहे पार्टी के नेताओं के स्वर तो सामने भी आ गये जिसके जमकर चर्चा बनी हुई है। सूत्र बतलाते हैं कि चार दिग्गजों ने श्री मलैया के विरूद्ध बिगुल फूंकते हुये अपने अपने बायोडाटा सौंप टिकिट की दावेदारी प्रस्तुत कर मलैया एवं संगठन की नींद उडा दी है। इसी क्रम में अजय विश्रोई के विरूद्ध भी जनता में आक्रोश और कार्यकर्ताओं द्वारा टिकिट मांगने से माहौल गरमा रहा है।
शिव के साथ परन्तु विधायकों का विरोध-
प्रदेश में होने वाले चुनाव की तस्वीर पर नजर डालें तो जनता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं उनके कुछ मंत्री विधायको छोड अनेक एैस चेहरे हैं जिनसे नाराज बतलायी जा रही है। इनमें प्रदेश के ही कुछ कदवर मंत्रियों के नाम भी बतलाये जाते हैं। जानकारों की माने तो जनता से जुडकर सीधे संवाद करने और विभिन्न प्रकार की जनकल्याणकारी योजनाओं संचालन करने वाला प्रदेश के इतिहास में अकेले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम बतलाया जाता है। साधारण कार्यकर्ता के रूप में अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत करने वाले एवं छोटे ग्राम में किसान पुत्र श्री चौहान ने विश्व की अनोखी एवं अकेली प्रेरणा दायक योजनाओं का लाभ जनता को दिलाने का एक इतिहास रचा वह उनके लिये सकारात्मक परिणाम लाने की ओर ईशारा करता है। वहीं जानकार बतलाते हैं कि मंत्री एवं विधायकों की करनी का परिणाम श्री चौहान को भोगना पड सकता है।
संगठन पर हावी रही सत्ता-
प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में कद्बर नेताओं,मंत्रियों द्वारा संगठन की गयी उपेक्षा और चरण वंदना करने वालों को उपकृत करने का परिणाम भी सामने आने वाला दिखलायी दे रहा है। एक नहीं अनेकों  उदाहरण इस प्रकार के सामने आते रहे हैं जहां संगठन के कर्मठ एवं जमीनी कार्यकर्ता उपेेक्षित किये गये और अपने निजि स्वार्थों को साधने का कार्य करने वालों को प्रोत्साहित किया गया। इस प्रकार के अनगिनित उदाहरण सामने आते रहे हैं और आ भी रहे हैं। एैसे कर्मठ और उपेक्षित कार्यकर्ताओं का अंदरूनी क्रोध और नेताओं की करनी का परिणाम पार्टी को नुकसान पहुंचाने पीछे नहीं रहेगा। मामला चाहे संगठन के किसी भी पद से जुडा हुआ हो अगर वह बडी अटारी में सुबह शाम दस्तक नहीं देता तो उसको अनेक तरीके  हतोत्साहित करने का कार्य दिग्गजों द्वारा किये जाने की चर्चा आये दिन गलियों में उपेक्षित कार्यकर्ताओं के मुंह से सुनी ही जाती रही। अन्य कार्यकर्ताओं की बात तो ठीक मध्यप्रदेश में भाजपा की सत्ता की जमीन तैयार करने वाली उमा भारती स्वयं बहुत ही आहत बतलायी जाती हैं यह बात अलग है कि भले ही वे पार्टी में आ चुकी हैं,परन्तु प्रदेश भाजपा में उनसे अछूतों का सा व्यव्हार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। शिवराज सिंह चौहान भले ही उन्हें अपनी छोटी बहिन बताएं, नरेंद्र सिंह तोमर उमा जी-उमा जी गाएं, लेकिन इनके दिल के भीतर की कालिख को उमा भारती भली भांति जान और समझ रही हैं? वहीं अनेक जिलों की भी स्थिति यही बतलायी जाती है जहां संगठन पर सत्ता हावी रहने की बात प्रकाश में लगातार आती रही है?
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