सूचना का अधिकार .. कमजोर होते प्रावधान

दिनांक 31.07.2012 को भारत सरकार ने एक गजट नोटिफिकेषन जारी कर सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों में कुछ परिवर्तन किये हैं। जिसमें मुख्य परिवर्तन इस प्रकार किये गये हैंः-
सूचना के अधिकार के तहत किये गये आवेदन को 500 शब्दों तक सीमित किया गया है।
लोक सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सूचना का डाक शुल्क यदि 50/- रू से अधिक आता है, तो अतिरिक्त शुल्क आवेदक से वसूल किया जावेगा।
आवेदक व लोक सूचना अधिकारी केन्द्रिय सूचना आयोग में सुनवाई के लिये अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर सकते हैं।
इण्डिया अगेन्स्ट करप्षन के आरटीआई एक्टिविस्ट तरूण अग्रवाल ने बताया कि सरकार द्वारा पूर्व में ही आरटीआई एक्ट को काफी कमजोर बनाया है। पूर्व की कमजोरियों को दूर न किया जाकर उसे और कमजोर किया जा रहा है। उक्त समस्त परिवर्तन सरकारी कारिन्दों को राहत देने के लिये किये गये हैं। यदि सरकार सूचना का अधिकार अधिनियम को मजबूत बनाने की दिषा में कार्य करना चाहती है तो उसे इसके समस्त पहलुओं पर गौर करना चाहिये। एक्ट में कई कमजोरियों हैं जिनके रहते अधिनियम के माध्यम से राजस्थान में लोगों को असारधारण विलम्ब से सूचना प्राप्त हो रही है। राजस्थान में सरकार द्वारा इस अधिनियम को किस कदर कमजोर किया जा रहा है, उसके कुछ उदाहरण निम्न प्रकार हैंः

यह कि राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्त के 9 पद स्वीकृत हैं। जिनमें से वर्तमान में सिर्फ एक पद पर ही सूचना आयुक्त नियुक्त हैं। बाकी 8 पद लम्बे समय से रिक्त चल रहे हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रति लोगों की जागरूकता के कारण दिन प्रतिदिन सूचना आयोग में अपीलों की संख्या बढती जा रही है। लेकिन सूचना आयुक्तों के अभाव में अपीलों सुनवाई में दो दो साल तक का असाधारण विलम्ब हो रहा है। अतः लम्बे समय से राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं किया जाना स्पष्ट करता है कि सरकार आरटीआई एक्ट के प्रति गंभीर नहीं है।
यह कि सूचना का अधिकार अधिनियम की स्थापना का उद्देष्य लोगों को अधिनिमय में निर्धारित समय सीमा में सूचना उपलब्ध कराना था। अधिनियम में लोक सूचना अधिकारी व प्रथम अपीलीय अधिकारी के लिये आवेदन व अपील पर कार्यवाही के लिये 30 दिन की समय सीमा निर्धारित है। लेकिन किसी कारणवष यदि प्रकरण राजस्थान सूचना आयोग में जाता है तो आयोग में प्रकरण के निस्तारण की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। इस वजह से अपीलार्थी को सूचना प्राप्त करने में कई कई वर्षांे तक इन्तजार करना पडता है जिससे अधिनियम की अवधारणा ही समाप्त हो जाती है। अतः राजस्थान सूचना का अधिकार अधिनियम में राज्य आयोग की अपीलों के निस्तारण की समय सीमा निर्धारित की जाने की आवष्यकता है। ताकि समय से न्याय मिल सके।
यह कि राजस्थान सूचना का अधिकार अधिनियम में पूर्ण व समय से सूचना न उपलब्ध कराने वाले दोषी अधिकारियों पर सूचना आयुक्त का रवैया काफी नरम रहता है। सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 20(1) में दोषी अधिकारी पर शास्ती आरोपित करने में सूचना आयुक्त को दिये गये अधिकारों का सूचना आयुक्त अपनी मर्जी से गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। वर्तमान स्थिति में कई वर्षोंं तक राज्य आयोग में नोटिस जारी करने व अपील में सुनवाई होने के बाद आम आदमी को सूचना तो उपलब्ध करवाई जाती है लेकिन दोषी अधिकारी पर बहुत ही कम परिस्थितियों में दण्ड लगाया जाता है। दण्ड ना लगाये जाने की स्थिति में वर्तमान में अधिकारियों के मन में साधारणताया यह धारणा बन चुकी हैं कि यदि वह आवेदक को सूचना उपलब्ध न कराता है तों प्रथम तो प्रत्येक आवेदक कई वर्षो तक आयोग में अपील की सुनवाई का इन्ततार नहीं करेगा तथा यदि अन्त में ज्यादा से ज्यादा आयोग सूचना उपलब्ध कराने हेतु निर्णय देगा, तो सूचना उपलब्ध करा दी जायेगी, पेनल्टी तो लगेगी नहीं। सूचना आयुक्त के इस रवैये के चलते आजकल अधिकारी आरटीआई एक्ट के तहत किये जाने वाले पत्राचार को सामान्य पत्राचार की श्रेणी में लेने लग गये हैं। अतः निवेदन है कि दोषी अधिकारियों को आवष्यक रूप से दण्डित किये जाने की जरूरत है ताकि अधिकारी आरटीआई एक्ट के आवेदनों को गंभीरता से डील कर सकें।
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन करने वाले आवेदक को यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय सीमा में जवाब नहीं देता है तो आवेदक सूचना उपलब्ध कराने हेतु प्रथम अपीलीय अधिकारी को प्रथम अपील प्रस्तुत करता है। लेकिन पुनः 30 दिन में सूचना प्राप्त नहीं होने पर राज्य आयोग में अपील के माध्यम से सूचना प्राप्त की जाती है साथ ही राज्य आयोग द्वारा दोषी अधिकारी को प्रकरण के गुण दोष के आधार पर दण्डित भी किये जाने का प्रावधान है। लेकिन पूरी प्रक्रिया में प्रथम अपीलीय अधिकारी की कोई जिम्मेदारी तय नहीं की गई है कि प्रथम अपील के बाद भी प्रत्यर्थी/लोक सूचना अधिकारी जवाब नहीं देता है या गलत/अपूर्ण/त्रुटिपूर्ण जवाब देता है तो राज्य आयोग दोषी अधिकारी के साथ साथ प्रथम अपीलीय अधिकारी पर क्या कार्यवाही करेगा। यदि प्रथम अपीलीय अधिकारी की कोई जिम्मेदारी तय नहीं है तो फिर प्रथम अपील के लिये 30 दिन का समय खराब क्यों किया जाता है? अतः प्रथम अपीलीय अधिकारी की जिम्मेदारी व उस पर भी शास्ती निर्धारित किये जाने की आवष्यकता अधिनियम में है।
अतः यह आवष्यक है कि सूचना का अधिकार अधिनियम की सार्थकता लम्बे समय तक बनी रहे व लोगों को इसका वास्तविक लाभ समय पर मिल सके, इसके लिये उक्त कमजोरियों को दूर किये जाने की प्रबल आवष्यकता है।

तरूण अग्रवाल
(आरटीआई एक्टिविस्ट)
आरटीआई जन चेतना मंच
सूचना का अधिकार अधिनियम क्षेत्र की एनजीओ
(इण्डिया अगेन्स्ट करप्षन से संबद्व)
332/31, पटेल नगर, तोपदडा, अजमेर
9214960776

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