पिता से सीखा पाठ

केशव राम सिंघल
केशव राम सिंघल

लावोन स्टेनर सात भाई-बहन थे और वे सभी पारिवारिक व्यवसाय में अपने पिता की दुकान में काम करते थे. लावोन के जीवन में क्रिसमस के त्यौहार से पहले घटी एक घटना ने उनपर अत्यधिक प्रभाव डाला. जब लावोन आठवीं कक्षा में पढ़ते थे, तब वे अपने पिता की दुकान के खिलोने वाले सेक्शन में काम करते थे. एक पाँच या छ: वर्ष का छोटा बच्चा दुकान में खिलोने वाले सेक्शन में आया. वह् बच्चा गन्दे-फटे आस्तीन वाला एक फटा-पुराना भूरा कोट पहने हुए था. लावोन को वह् बच्चा बहुत गरीब लगा, बहुत गरीब जो कुछ खरीद सके. उस बच्चे ने खिलोने वाले सेक्शन में कुछ खिलौनों को देखा, उसने कई खिलोने उठाए और सावधानी से वापिस उनके स्थानों पर रख दिया. उसी समय लावोन के पिता खिलोने वाले सेक्शन में आए और उस बच्चे के पास गए. लावोन के पिता की नीली चमकती आँखें मुस्करा रहीं थी और उनके गालों में गड्डा उभर आया था जब उन्होंने उस बच्चे से पूछा कि वह् उसके लिए क्या कर सकते हैं. उस बच्चे ने कहा कि वह् अपने भाई के लिए क्रिसमस उपहार देख रहा है जो वह् खरीदना चाहता है. लावोन यह देखकर बहुत प्रभावित हुए कि उसके पिता उस गरीब बच्चे को वही सम्मान दे रहे थे जो वह् प्राय: वयस्क लोगो को देते थे. लावोन के पिता ने बच्चे से कहा, ‘आप आराम से देखो’ और यह सुनकर वह् बच्चा और खिलोने देखने लगा.

क़रीब बीस मिनिट बाद उस छोटे से बच्चे ने एक हवाईजहाज खिलोना सावधानी से उठाया और लावोन के पिता के पास आकर बोला – ‘महोदय, यह खिलोना कितने का है?’

लावोन के पिता ने बच्चे से कहा – ‘तुम कितना इस खिलोने के बदले दे सकते हो?’ उस बच्चे ने अपने हाथ की मुठ्ठी खोली, जिसमें दो सिक्के थे – 27 सैंटस मूल्य के बराबर. खिलोने का मूल्य चार डॉलर था. लावोन के पिता बोले – ‘यह काफी है.’ और उन्होंने सिक्के लेकर वह् खिलोना उस बच्चे को बेच दिया.

लावोन स्टेनर पर इस घटना का अत्यधिक प्रभाव पड़ा और वे इस घटना को याद करते हुए कहते हैं – “मेरे पिता का वह् वाक्य ‘यह काफी है’अभी भी मेरे कानों में गूँजता है. मुझे याद है कि जब मैंने उस खिलोने को गिफ्ट पैक किया और उस बच्चे को देखा तो पाया वह् बच्चा उल्लास से चमक रहा था. उस समय वह् बच्चा गन्दा या मैला-कुचला सा नहीं दिख रहा था.”

 

मेरी सीख

प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान दो, चाहे वह् गरीब हो या अमीर, चाहे वह् आपसे आयु में छोटा हो या बड़ा.

-केशव राम सिंघल

Story redrafted and retold by Keshav Ram Singhal

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