राजस्थान विधानसभा चुनाव और महिलाएं

-बाबूलाल नागा- चौदहवीं विधानसभा चुनावों में एक तरफ महिला मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई तो दूसरी तरफ 28 महिलाएं चुनकर विधानसभा में पहुंची हैं। इस बार कुल 168 महिलाओं ने चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमाई थीं। स्वतंत्र भारत में 1952 से वर्ष 2013 तक राजस्थान विधानसभा के चौदह बार हुए चुनाव में अब तक कुल 882 महिलाओं ने चुनाव लड़ा। इनमें से 174 यानी लगभग बीस प्रतिशत महिलाएं विधानसभा पहंुची हैं।

बाबूलाल नागा
बाबूलाल नागा

विधानसभा चुनावों का विश्लेषण करें तो पिछले चुनावों में पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है। पहली बार 75.51 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मतों का प्रयोग किया, जबकि पुरुषों का आंकड़ा 74.91 रहा। 2008 के विधानसभा चुनावों में सिर्फ 58 सीटों पर महिलाओं का अधिक मतदान हुआ था। इस बार 102 सीटों पर पुरुषों से अधिक वोट डाले। 129 सीटों पर महिला वोटिंग 80 प्रतिशत से अधिक रही। यद्यपि 1972 से 1990 के बीच महिला मतदाताओं का प्रतिशत 50.02 से घटते बढ़ते वर्ष 1990 में 59.5 और वर्ष 2003 में 64.23 प्रतिशत तक पहुंच गया था। पुरुष और महिला मतदाताओं के मतदान प्रतिशत का अंतर वर्ष 1950 में 35.01 प्रतिशत था जो वर्ष 2003 में घटकर 5.37 रह गया था। 2008 में पुरुष मतदाताओं की संख्या 2.62 प्रतिशत गिरावट आने के कारण दोनों का अंतर घटकर 1.91 प्रतिशत के आंकड़े पर आ गया है। इस बार के विधानसभा चुनावों में चौदह प्रतिशत यानी अट्ठाइस महिलाओं ने जीत दर्ज कराई है। 13वीं विधानसभा में भी कुल 28 महिलाएं जीती थीं। वर्ष 1952 में हुए पहले चुनावों में चार महिलएं खड़ी हुई थीं, लेकिन एक भी महिला विधानसभा नहीं पहुंच पाई थी। वर्ष 1958 में महिला प्रत्याशियों की संख्या बढ़कर 21 हो गई। उनमें 9 महिला विधायक चुनी र्गइं। तीसरी विधानसभा के लिए 1962 में हुए चुनाव में महिला प्रत्याशी की संख्या घटकर 15 रह गई, जिनमें से आधी से अधिक आठ विधायक चुनी गई।
राजस्थान विधानसभा के आंकड़े बताते हैं कि चौथे चुनाव में 19 में से 6 महिलाएं विधायक बनीं, जबकि 1972 में 17 में से 13 महिलाएं विधानसभा पहुंचीं। छठी विधानसभा के 1977 में जनता पार्टी की लहर में चुनाव में खड़ी होने वाली महिलाओं की संख्या बढ़कर 31 हो गई लेकिन आठ ही विजय हो पाई। सातवीं विधानसभा के 1980 में हुए चुनाव में एक बार 31 महिलाओं ने अपना भाग्य आजमाया, जिनमें से 10 विधानसभा में पहुंचीं। वर्ष 1985 में आठवीं विधानसभा के चुनावों में खड़ी होने वाली महिलाओं की संख्या 45 हो र्गइं और 17 महिलाएं विधानसभा में पहंुच र्पाइं। नौवीं विधानसभा में महिलाओं का चुनाव के प्रति रुझान बढ़ा और चुनाव में उतरने वाली महिलाओं की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई। गत चुनाव से दो गुना से पार होकर 93 हो गई लेकिन विजयी होने वाली महिलाओं की संख्या गत चुनाव के 17 से घटकर 11 तक ही सिमट गई। इसके बाद 1993 से दसवीं विधानसभा के चुनाव में महिला प्रत्याशियों की संख्या बढ़कर 97 हो गई। विधानसभा में दस महिलाएं पहुंचीं। राजनीतिक पार्टियों के महिलाओं के टिकट देने में रुचि नहीं दिखाने के कारण 1998 में ग्यारहवीं विधानसभा चुनाव में 69 महिलाएं ही मैदान में उतरीं लेकिन उनमें से जीतने वाली महिलाओं की संख्या बढ़कर 14 हो गई। भाजपा और कांग्रेस के महिलाओं पर दांव नहीं लगाने के बावजूद 2003 में हुए बारहवीं विधानसभा के चुनाव में 118 महिलाओं ने भाग्य आजमाया, जिसमें से करीब दस प्रतिशत यानी 12 महिलाएं चुनी गईं। राजस्थान में पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करनेे वाली भाजपा की वसंुधरा राजे के सत्ता में आने के बाद उन्होेंने वर्ष 2008 में हुए तेरहवीं विधानसभा के चुनाव में 32 महिलाओं को तथा कांग्रेस की 21 प्रत्याशियों सहित कुल 154 महिलाओं के खड़े होने से चौदह प्रतिशत यानी 28 महिलाओं ने रिकॉर्ड जीत दर्ज कराई। इससे पूर्व कभी भी यह आंकड़ा साढ़े सात प्रतिशत से आगे नहीं बढ़ पाया।
भारी बहुमत से सत्ता में पहुंची भाजपा ने इस बार चौदहवीं विधानसभा चुनावों में सर्वाधिक 26 महिलाओं को मौका दिया जिनमें से 22 महिलाएं जीती हैं। कांग्रेस ने 24 महिलाओं को मौका दिया लेकिन केवल एक ही जीत कर विधानसभा पहुंचीं। जमींदारा पार्टी की दो महिलाएं विधायक चुनी गईं, जबकि नेशनल पीपुल्स पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष गोलमा देवी सहित इस पार्टी की दो महिलाएं विजय रहीं। वहीं एक निर्दलीय महिला अंजू धानका लगातार दूसरी बार विधानसभा में पहुंचने में सफल रही। चौदहवीं विधानसभा चुनावों में कुल 168 महिलाएं खड़ी हुई थीं। इनमें 28 महिलाएं चुनी गईं। राजस्थान विधानसभा में महिला विधायकों की बढ़ी हुई संख्या एक शुभ संकेत है। औरतों पर हो रही हिंसा और भेदभाव में तब ही कमी आ सकती है जब अधिकाधिक महिलाएं निर्णायक भूमिकाओं में पहंुचंे। (विविधा फीचर्स)

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