आज़ादी के पेंसठ साल बाद भी नहीं बदला स्वाद गडरा के लड्डुओं का

120315-1546(001)-चन्दन सिंह भाटी- बाड़मेर सीमावर्ती जिला बाड़मेर जिसकी 227 किमी लम्बी सीमा पाकिस्तान से सटी हैं। भारत विभाजन के बाद बाड़मेर जिले के कई गांव दो हिस्सों में बंट गए। एक ही परिवार के दो टुकडे हो गए। राम भारत में तो श्याम पाकिस्तान में।अल्लाह भारत में तो अकबर पाकिस्तान में। पाक सीमा से एक किमी पहले ही गडरारोड़ भारत में हैं। गडरा सीटी नाम का कस्बा था जो 1947 में विभाजित हो गया।
गडरारोड़ भारत में तथा गडरा सीटी पािकस्तान में रह गया। नहीं बदला तो गडरा के लड्डुओं का स्वाद। भारत पाकिस्तान के बीच आज भी रोटी बेटी का रिश्ता हें यह रिश्ता कायम रखने ने इन लड्डुओं ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा कि हें।  पाकिस्तान जाने वाला हर व्यक्ति आज भी अपने रिश्तेदारो के लिए सम्भाल के तौर पर गदरा के अमोलकजी कि दूकान से बने लड्डू जरुर ले के जाते हें ,थार एक्सप्रेस के इस सरहद से शुरू होने के बाद से बाड़मेर से जो भी पाकिस्तान गया इन लड्डुओ का स्वाद साथ ले जाना नहीं भुला।
 इन लड्डुओ के दीवाने स्थानीय नहीं नागरिक ही नहीं सेना के अधिकारी और  जवान भी हें । इस धोरो कि धरती में दो वक्त कि रोटी के साथ  के साथ मिठाई मिल जाये तो क्या कहने।   हें मगर अमोलक चंद माहेश्वरी ने आज़ादी के बाद से इस परंपरागत लड्डुओ को बनाने का काम शुरू रखा। सरहद पर सुरक्षा में जूट जवान भी चाव के साथ लड्डू खाते हें। आज़ादी के पेंसठ सालो में इस सरहद पर सब कुछ बदला नहीं बदला तो अमोलक जी के लड्डुओं का स्वाद। आज भी उतने ही स्वादिष्ट और जायकेदार हें जितने पेंसठ साल पहले थे
  अविभाजित गडरा सीटी के तिजारा के लडडू बड़े ही स्वादिष्ट होते थे। गडरा के लडडू पूरे राजपूताना में प्रसिद्ध थे। बंटवारे के बाद भारतीय सीमा में गडरारोड़ हो गया।
गडरारोड़ में रह रहे माहेश्वरी परिवार लडडू बनाने में माहिर थे। 1965 के युद्व के पश्चात के गडरा सीटी से सैंकडो परिवार भारतीय सीमा में आकर बस गए। इनमें से ढाटी माहेश्वरी जाति के परिवार गडरारोड़ आकर बस गए। इन परिवारों में एक परिवार अमोलख भूतडा का भी था। जो पहले वहां लडडुओं के निर्माता थे। गडरारोड़ आकर अपना पुश्तैनी कार्य लडडू बनाना आरम्भ किया। गडरा के लडडू मुख्य रूप से उडद की दाल से बनाये जाते हैं। पिसी हुर्इ उड़द की दाल में गोंद, मावा शक्कर, देशी घी डालकर सेका जाता हैं। इस अत्यधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें बादाम, काजू, दाख, काली मिर्च डाली जाती हैं। दो  सौ पच्चास रूपये प्रति किलो के भाव से बिकने वाले लडडुओ का लाजवाब स्वाद मुंह में पानी ले आता हैं।
चन्दन सिंह भाटी
चन्दन सिंह भाटी

गडरा के लडडुओ का स्वाद लाजवाब होने के कारण सर्वप्रिय हैं। सीमा पर तैनात जवानों, स्थानीय नागरिकों में गडरा के लडडू सर्वप्रिय हैं। इन लडडुओ की प्रसिद्धी सीमार पार में भी बराबर हैं।

तारबन्दी से पूर्व आसानी से पाकिस्तान भेजे जाने वाले ये लडडू अब यदा कदा की पाक ले जाए जाते हैं। ये लडडू एक महीने तक खराब नहीं होते। यहां के लडडू साम्प्रदायिक सदभावना के प्रतीक हैं।
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