किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं केजरीवाल से

शेष नारायण सिंह
शेष नारायण सिंह

-शेष नारायण सिंह- लखनऊ के रहने वाले आदरणीय पत्रकार, सिद्धार्थ कलहंस के फेसबुक पेज पर लगा यह नोट बिना उनसे पूछे नक़ल करके यहाँ चिपका रहा हूँ और इसके हर शब्द से अपने आपको सम्बद्ध करता हूँ। ”भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी के तौर पर पहले लाखों कमाने वाले और बाद को एनजीओ चला करोड़ों कमाने वाले श्री केजरीवाल, मुशायरे में लाखों वसूलने वाले और कालेज में न पढ़ा हजारों लेने वाले विश्लावास, कोई गोपीनाथ कोई महेशव्री, सिहं, बारदालोई, साराभाई और इनफोसिस वाले सब आम आदमी हैं। पुस्तैनी शराब कारोबारी बाद को मीडिया मुगल हो जाने वाले कोई जायसवाल सब आम आदमी हैं। लखनऊ में डंडीमार, पेट्रोल पंप पर घटतौली करने वाले इस दल के संयोजक हैं।“
लेकिन यह भी सच है कि इन लोगों की पार्टी इतिहास के उस मुकाम पर भारत की राजनीति में नमूदार हुयी है जब हमारी आज़ादी की विरासत को एक नरेंद्र मोदी और एक अदद राहुल गांधी मिलकर संसदीय लोकतंत्र से मिटाकर राष्ट्रपति प्रणाली की तरफ धकेल रहे हैं। अब तक के राहुल गांधी के आचरण से लग रहा है कि वे 2014 का चुनाव नरेंद्र मोदी को गिफ्ट करके 2016 के लिये तैयार होना चाह रहे हैं। जबकि नरेंद्र मोदी वही काम करने पर आमादा नज़र आ रहे हैं जो 1975-76 में उनके पूर्ववर्ती संजय गांधी करना चाह रहे थे। ऐसी हालत में या झाड़ू वाला रंगरूट एक ज़रूरी काम कर रहा है। हम सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली आदि इलाकों में यह राहुल गांधी और नरेंद्र नरेंद्र मोदी की मंशा पर लगाम लगायेगा। इससे ज़्यादा इससे उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। क्योंकि जिस आन्दोलन से यह पैदा हुआ है, अन्ना हजारे का वह रामलीला वाला शो बेईमानों की नीयत का नतीजा था।
जो लोग अरविन्द केजरीवाल से बहुत ही पवित्र राजनीतिक आचरण की उम्मीद कर रहे हैं, उनको निराशा होगी क्योंकि अरविन्द केजरीवाल भी उतने ही सामन्ती सोच के मालिक हैं जितने नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी। अभी से उनके साथ कांग्रेसी और भाजपाई धंधेबाज़ जुड़ना शुरू हो गये हैं। लोकसभा में कुछ सीटें जीतने के बाद यह भी जयललिता, करुणानिधि, शरद पवार, बाल ठाकरे, मुलायम सिंह यादव, मायावती, नीतीश कुमार, लालू यादव, राम विलास पासवान जैसे लोगों की तरह ईमानदार हो जायेंगे लेकिन भारत के संसदीय इतिहास में अपनी भूमिका आदा करने के बाद में ही यह नेपथ्य में जाएँ तो अच्छा है।
अरविन्द केजरीवाल से किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि जब स्थापित सत्ता को चुनौती देने वाली 1974-75 की संघर्षशील पीढ़ी आज सत्ता प्रतिष्ठान का भ्रष्ट नमूनों में शुमार हो चुकी है तो यह बेचारे केजरीवाल किस खेत की मूली हैं। याद रखना चाहिए कि जे पी के आन्दोलन के सभी नौजवान आज सिस्टम में शामिल हो चुके हैं, अरविन्द केजरीवाल की टोली के लोग भी को-ऑप्ट हो जायेंगे।

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