भगवान परशुराम

dr. j k garg
महर्षि जमदग्नि आध्यात्मिक उपलब्धियों के स्वामी थे जिन्हें आग पर नियंत्रण पाने व उनकी पत्नी रेणुका को पानी पर नियंत्रण पाने का वरदान था | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि ने पुत्र प्राप्ति हेतु देवराज इन्द्र को प्रसन्न करने के लिये पुत्रेष्टि यज्ञ किया था | देवराज इन्द्र के वरदान के फलस्वरूप महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश ग्राम मानपुर ( इंदौर जिला ) में एक अद्भुत प्रतिभाशाली पुत्र का जन्म हुआ जो कालांतर में भगवान परशुराम के नाम से विख्यात हुए | भगवान परशुराम को अमर रहने का वरदान मिला था और यह भी कहा जाता है कि वे आज भी हमारे बीच मौजूद हैं तथा कलियुग के अंत में वे विष्णु के दसवें अवतार के रूप में जन्म लेंगे |
परशुराम गायत्री मंत्र का विधि पूर्वक जाप करने से मनुष्य को अपने दुखों से छुटकारा मिलता है और कठिनाइयों से लड़ने के लिए साहस का संचार होता है | मंत्र इस प्रकार है ‘ॐब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।’ ‘ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।।’ ‘ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।’
सनातन धर्म में परशुराम के बारे में माना जाता है कि वे त्रेतायुग और द्वापर युग से अमर हैं |
परशुराम जी के जन्म के जन्म एवं जन्मस्थान के पीछे कई मान्यताएं एवं अनसुलझे सवाल है | सभी की अलग अलग राय एवं अलग अलग विश्वास हैं | भार्गव परशुराम को हाइहाया राज्य, जो कि अब मध्य प्रदेश के महेश्वर नर्मदा नदी के किनारे बसा है, वहाँ का तथा वहीं से परशुराम का जन्म भी माना जाता है | अन्य मान्यता के अनुसार रेणुका तीर्थ पर परशुराम के जन्म के पूर्व जमदग्नि एवं उनकी पत्नी रेणुका ने शिवजी की तपस्या की थी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने वरदान दिया और स्वयं विष्णु ने रेणुका के गर्भ से जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में इस धरती पर जन्म लिया | उन्होंने अपने इस पुत्र का नाम परशुरामम “रामभद्र” रखा |
परशुराम जी ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिये अनेक बार तपस्या पूजा अर्चना की थी |शिवजी ने परशुराम को वरदान देते हुए कहा कि परशुराम का जन्म धरती के राक्षसों का नाश करने के लिए हुआ है | इसलिए भगवान शिव ने परशुराम को, देवताओं के सभी शत्रु, दैत्य, राक्षस तथा दानवों को मारने में सक्षमता का वरदान दिया | हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वाले अनेक ज्ञानी, पंडितो के मतानुसार धरती पर रहने वालों में परशुराम और रावण के पुत्र इंद्रजीत को ही सबसे खतरनाक, अद्वितीय और शक्तिशाली अस्त्र – ब्रह्मांड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पशुपति अस्त्र प्राप्त थे |·
दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है | परशु अर्थात “कुल्हाड़ी” तथा “राम”. इन दो शब्दों को मिलाने पर “कुल्हाड़ी के साथ राम” अर्थ निकलता है | जैसे राम, भगवान विष्णु के अवतार हैं | उसी प्रकार परशुराम भी विष्णु के अवतार हैं | इसलिए परशुराम को भी विष्णु जी तथा रामजी के समान शक्तिशाली माना जाता है |· परशुराम के अनेक नाम हैं.उन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी (ऋषि भृगु के वंशज), जमदग्नि(जमदग्नि के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है |

भगवान राम ने सीता स्वयंवर के समय राजा जनक की शर्त की अनुपालन में भगवान शिव के धनुष को तोड़ दिया और उनका माता सीता के साथ विवाह हो गया | शिव धनुष के तोड़े जाने के समाचार को सुनकर शिव भक्त परशुराम अपना आपा खोकर क्रोधित होते हुवे राजा जनक की राज सभा पहुंचे | राज सभा में उनका लक्ष्मणजी के साथ तीर्व वादविवाद हुआ और उनके मध्य लड़ाई की नोबत आ गई | मर्यादा पुरषोंतम राम ने अत्यंत शालीनता के साथ उनसे बात करके उनके क्रोध को शांत किया | परशुराम अपनी योग शक्ति से मालुम पड़ा कि उनके सामने भगवान विष्णु के अवतार भगवान राम खुद खड़े हैं | अपने इस अनुभूति की पुष्टि करने के लिये परशुराम ने विष्णु का प्रिय धनुष गांडीव भगवान राम को देते हुए उसको संधान करने को कहा | भगवान राम ने एक तीर प्रत्यंचा पर चढ़ाई और महर्षि परशुराम से कहा कि वे अब इस तीर को खाली नहीं छोड़ सकते. वे बताएं कि वे इसे किस पर चलाये | तब परशुराम जी ने भगवान राम से आग्रह किया कि वे उस तीर के माध्यम से उनके अहंकार को नष्ट करने की कृपा करें | इसके बाद परशुराम जी प्रसन्न मन से महेन्द्र पर्वत पर निवास करने के लिये चले गये | धार्मिक मान्यता है कि भगवान परशुराम जी को अमरता का वरदान प्राप्त है और आज भी वे उसी महेन्द्र पर्वत पर निवास करते हैं |

स्मरणीय है कि .मार्शल आर्ट के संस्थापक भगवान परशुराम ही थे | कलरीपायट्टु कलरीपायट्टु भगवान परशुराम द्वारा प्रदान की गई शस्त्र विद्या है जिसे आज के युग में मार्शल आर्ट के नाम से जाना जाता है | दक्षिण भारत में आज भी मार्शल आर्ट प्रसिद्ध है |सत्य तो यही है कि मार्शल आर्ट को भगवान परशुराम व सप्त ऋषि अगस्त्य लेकर आए थे | कलरीपायट्टु दुनिया का सबसे पुराना मार्शल आर्ट है और इसे सभी तरह के मार्शल आर्ट का जनक भी कहा जाता है. भगवान परशुराम शस्त्र विद्या में महारथी थे इसलिए उन्होंने उत्तरी कलरीपायट्टु वदक्कन कलरी विकसित किया था और सप्त ऋषि अगस्त्य ने शस्त्रों के बिना दक्षिणी कलरीपायट्टु का विकास किया था | कहा जाता है कि ज़ेन बौद्ध धर्म के संस्थापकबोधिधर्म को भी इस प्रकार की विद्या की जानकारी प्राप्त की थी व अपनी चीन की यात्रा के दौरान उन्होंने विशेष रूप से बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिये इस मार्शलआर्ट का भी उपयोग किया था | आगे चलकर वहां के निवासियों ने इस आर्ट का मूल रूप से प्रयोग कर शाओलिन कुंग फू मार्शल आर्ट की कला विकसित की |
भगवान परशुराम मूल रूप से ब्राह्मण थे किंतु फिर भी उनमें शस्त्रों की अतिरिक्त जानकारी थी और इसी कारणवश उन्हें एक क्षत्रिय भी कहा जाता है |
परशुराम जी ने गोरी पुत्र गणेश जी का दांत तोड़ डाला जिसकी वजह से गणेश जी एक दंत विनायक कहलाये | एक बार परशुराम शिव जी से मिलने कैलाश पहुंचे जहांपर गणेश जी द्वारा उनको भगवान शिव से मिलने से रोके जाने से वे रुष्ट और क्रोदित हो गये | परशुराम ने गणेश जी को युद्ध का निमंत्रण दिया |इस युद्ध में परशुराम ने गणेशजी का बाएं दांत पर प्रहार कर उसे तोड़ दिया इसी वजह से परशुराम जी ने गोरी पुत्र गणेश जी का दांत तोड़ डाला जिसकी वजह से गणेश जी एक दंत विनायक कहलाये | अपने पुत्र गणेश के दांत को तोड़े जाने से मां पार्वती अत्यंत क्रुद्ध हो गईं | माता गोरी ने कहा कि कहा कि परशुराम क्षत्रियों के रक्त से संतुष्ट नहीं हुए इसलिए उनके पुत्र गणेश को हानि पहुंचाना चाहते हैं वे उनको श्राप देने ही वाली थी इसी समय गणेश जी ने स्वयं हस्तक्षेप कर मां पार्वती को प्रसन्न और शांत किया | गणेश जी की इस अनुकम्पा और दयालुता के सम्मुख परशुराम नतमस्तक हो गये एवं परशुराम जी ने विनायक गणेश को अपना परशु प्रदान कर दिया |
ब्राह्मण होते हुए भी उसमें क्षत्रिय गुण भी थे इसी वझे से उनको पुराणों में ब्रह्मक्षत्रिय (ब्राह्मण व क्षत्रिय के मिश्रण) के नाम से भी जाना जाता हैं |
भगवान परशुराम शिव के प्रियतम भक्त थे भगवान शिव ने ही उनको शस्त्र विद्या प्रदान की थी | देवों के देव महादेव ने परशुराम की अद्दभुत प्रतिभा को देख कर उनको अपना परशु दिया था | जिसके पश्चात उनका नाम परशुराम पड़ा | शिव से परशु को पाने के बाद समस्त दुनिया में ऐसा कोई नहीं था जो उन्हें युद्ध उनको पराजित कर सकें |.
मान्यताओं के मुताबिक़ कृष्ण के विराट स्वरूप को अर्जुन के अतिरिक्त तीन अन्य लोगों ने भी देखा था जिनमें एक परशुराम जी भी थे |
महाभारत में भी परशुराम जी के बारे में अनेक कथाओं का वर्णन मिलता है | परशुराम जी ने राजकुमारी अंबा को न्याय दिलाने के लिए भीष्म के साथ घोर युद्ध किया लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला और आखिर में वे अंबा को न्याय नहीं दिलवा सके तो उन्होंने शपथ ली कि वे भविष्य में किसी भी क्षत्रिय को युद्ध कला की शिक्षा नहीं देंगे | महाभारत की दूसरी प्रमुख कथा कर्ण की है. जब कर्ण को उन्होंने अपना शिष्य बनाया और कर्ण की वास्तविकता जानने के बाद उसे श्राप दिया कि जब उसे उनकी शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तभी वह इस शिक्षा को भूल जाएगा | विडम्बना है कि परशुराम जी के शिष्य भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण ने महाभारत के युद्ध मे अधर्मी कोरवों का साथ दिया और वे सभी परस्त हो कर म्रत्यु को प्राप्त हुए |

परशुराम जी शिक्षा-दीक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं महर्षि ऋचीक के आश्रम में हुई थी | महर्षि ऋचीक ने परशुराम की योग्यता से प्रसन्न हो कर सारंग धनुष उपहार में दिया | ऋषि कश्यप ने उन्हें अविनाशी वैष्णव मंत्र प्रदान किया | भगवान शंकर की उन्होंने आराधना की और शिव ने उन्हें विद्युदभि नाम का परशु प्रदान किया | भगवान शिव ने उन्हें त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्त्रोत और कल्पतरु मंत्र दे कर उपकृत किया |
एक दिन किसी कारणवश परशुराम के पिता जमदग्नि जी अपनी पत्नी रेणु से नाराज हो गये और कुपित पिता ने परशुराम को आज्ञा दी कि वे अपनी माता का वध कर दें | उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का अविलम्ब पालन करते हुए अपनी मां रेणु का वध कर दिया | परशुराम की पितृभक्ति से खुश हो कर महर्षी जी जमदग्नि जी ने परशुराम वरदान मांगने को कहा तो माता के भक्त ने अपनी माता को जीवित कर देने का वर मांगा | ऋषि जमदग्नि ने अपनी पत्नि कप पुनर्जीवित कर दिया |
परशुराम जी ने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन किया | मान्यता के अनुसार हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन या कार्तवीर्यार्जुन ने घोर तपस्या की और भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर लिया | भगवान दत्तात्रेय ने कार्तवीर्यार्जुन को एक हजार भुजाएं और युद्ध में अजेय होने का वरदान दे दिया | एक बार राजा कार्तवीर्यार्जुन जंगल में शिकार करता हुआ अपनी सेना के साथ ऋषि जमदग्नि के आश्रम पहुंचा जहां उसने ऋषि की कामधेनु गाय को देखा और वो कामधेनु गाय को जमदग्नि से बलपूर्वक छीन ले गया | कार्तवीर्यार्जुन की इस अनैतिक हरकत से नाराज होकर परशुराम जी ने अंहकारी सहस्त्रार्जुन को युद्ध के लिए ललकारा और उसकी सभी हजार भुजाओं को अपनी फरसे से काट करके उसका वध कर दिया | सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने इसका प्रतिशोध लेने के लिए परशुराम जी की अनुपस्थिति में महर्षि जमदग्नि के आश्रम पर आक्रमण कर दिया और जमदग्नि की हत्या कर दी. परशुराम जी की माता रेणुका भी अपने पति के साथ सती हो गई. कुपित परशुराम जी ने हाय वंशीय राजा के महिष्मति नगर पर आक्रमण कर सभी क्षत्रियों का विनाश कर दिया | अपने क्रोध को शांत करने के लिए पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान परशुराम ने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रिय विहीन कर दिया |
परशुराम जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है | ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता है | अक्षय तृतीया से त्रेता युग का आरंभ माना जाता है | मध्यकालीन समय के बाद जब से हिन्दू धर्म का पुनरुद्धार हुआ है, तब से परशुराम जयंती का महत्व और अधिक बढ़ गया है | इस दिन उपवास के साथ साथ सर्व ब्राह्मण का जुलूस, सत्संग आयोजित किये जाते हैं |
परशुराम जी की पूजा अर्चना समस्त भारत में होती है | मान्यता के अनुसार भारत के अधिकतर गांव परशुराम जी ने ही बसाए थे | उत्तर भारत से लेकर गोवा, केरल और तमिलनाडु तक परशुराम जी की आकर्षक मनमोहक प्रतिमाएं दिखाई देंगी |
सनातन धर्म में परशुराम के बारे में माना जाता है कि वे त्रेतायुग और द्वापर युग से अमर हैं | परशुराम जी के जन्म के जन्म एवं जन्मस्थान के पीछे कई मान्यताएं एवं अनसुलझे सवाल है | सभी की अलग अलग राय एवं अलग अलग विश्वास हैं | भार्गव परशुराम को हाइहाया राज्य, जो कि अब मध्य प्रदेश के महेश्वर नर्मदा नदी के किनारे बसा है, वहाँ का तथा वहीं से परशुराम का जन्म भी माना जाता है | अन्य मान्यता के अनुसार रेणुका तीर्थ पर परशुराम के जन्म के पूर्व जमदग्नि एवं उनकी पत्नी रेणुका ने शिवजी की तपस्या की थी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने वरदान दिया और स्वयं विष्णु ने रेणुका के गर्भ से जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में इस धरती पर जन्म लिया | उन्होंने अपने इस पुत्र का नाम “रामभद्र” रखा |
परशुराम जयंती हिन्दू पंचांग के वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है | ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता है | अक्षय तृतीया से त्रेता युग का आरंभ माना जाता है | मध्यकालीन समय के बाद जब से हिन्दू धर्म का पुनरुद्धार हुआ है, तब से परशुराम जयंती का महत्व और अधिक बढ़ गया है | इस दिन उपवास के साथ साथ सर्व ब्राह्मण का जुलूस, सत्संग आयोजित किये जाते हैं |
परशुराम जी की पूजा अर्चना समस्त भारत में होती है | मान्यता के अनुसार भारत के अधिकतर गांव परशुराम जी ने ही बसाए थे | उत्तर भारत से लेकर गोवा, केरल और तमिलनाडु तक परशुराम जी की आकर्षक मनमोहक प्रतिमाएं दिखाई देंगी |

सनातन धर्म में परशुराम के बारे में माना जाता है कि वे त्रेतायुग और द्वापर युग से अमर हैं | परशुराम जी के जन्म के जन्म एवं जन्मस्थान के पीछे कई मान्यताएं एवं अनसुलझे सवाल है | सभी की अलग अलग राय एवं अलग अलग विश्वास हैं | भार्गव परशुराम को हाइहाया राज्य, जो कि अब मध्य प्रदेश के महेश्वर नर्मदा नदी के किनारे बसा है, वहाँ का तथा वहीं से परशुराम का जन्म भी माना जाता है | अन्य मान्यता के अनुसार रेणुका तीर्थ पर परशुराम के जन्म के पूर्व जमदग्नि एवं उनकी पत्नी रेणुका ने शिवजी की तपस्या की थी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने वरदान दिया और स्वयं विष्णु ने रेणुका के गर्भ से जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में इस धरती पर जन्म लिया | उन्होंने अपने इस पुत्र का नाम “रामभद्र” रखा |
परशुराम जयंती के दिन भव्य आकर्षक जुलूस, शोभायात्रा निकाली जाती हैं | परशुराम भगवान के नाम पर उनके मंदिरों में हवन – पूजन का आयोजन किया जाता है | सभी लोग पूजा में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और दान आदि करते हैं | भगवान परशुराम के नाम पर भक्तों जगह जगह भंडारे का आयोजन करते है और सभी श्रद्धालु इस भोजन प्रसादी का लाभ उठाते हैं |· कुछ लोग इस दिन उपवास रख कर परमात्मा से भगवान परशुराम की तरह पुत्र देने की प्रार्थना करते हैं वे जानते हैं कि परशुराम जी के आशीर्वाद से परशुराम जी जैसा पराक्रमी बेटा प्राप्त होगा | वराह पुराण के अनुसार परशुराम जी के जन्म दिन पर उपवास रखने एवं परशुराम पूजा अर्चना करने से अगले जन्म में उनको राजा बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा |
परशुराम जयंती 10 मई 2024 को आने परशुराम जयंती का दिन सिंहस्थ के पर्व का भी है | इसलिए यह दिन और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है | आइये हम सब भी इस दिन भगवान परशुराम की पूजा में शामिल हो कर परशुराम भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करें |

डा.जे.के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर

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