मोदी जिस तिरंगे को भारत की शान कहते हैं उस तिरंगे को संघ परिवार ने कभी स्वीकार ही नहीं किया

29_06_2013-nmodi29-अनिल यादव- सन् 1999 से 2004 तक स्वघोषित रूप से प्रतिबद्ध स्वयंसेवकों के नेतृत्ववाली वाली एनडीए सरकार का दुस्साहस एक समय इतना बढ़ गया था कि उसने भारतीय संविधान की समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन किया था। ऐसा करके एनडीए सरकार संविधान से स्वतंत्रता, समानता और न्याय (जो वस्तुतः फ्रांसीसी क्रांति की देन हैं), जैसे विदेशी मूल्यों को निकाला निकाल देना चाहती थी। उस समय संघ परिवार की ही एक शाखा विश्व हिंदू परिषद के नेता आर्चाय धर्मेद्र और गिरिराज किशोर ने तो एक कदम आगे बढ़कर संविधान में किये जाने वाले परिवर्तनों को भी सुझा दिया था। परन्तु आयोग के सदस्यों को लगा कि अगला चुनाव जीतने के बाद ही संविधान बदला जाए। लेकिन भाजपा नेतृत्व का संविधान बदलने का मुंगेरीलाल का यह सपना पूरा नहीं हो सका क्योंकि वह आम चुनाव के बाद सत्ता से बेदखल हो गयी थी।
कहते हैं कि इतिहास के पास पुराने सवालों का जवाब देने का एक तरीका यह भी होता है कि वह नित नए सवाल उठाता रहे। जिस तरह आज देश की मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों की जमातें नमो-नमो का दिन रात जाप कर रही हैं, इन पुराने सवालों के जवाब में नए सवालों का उठाया जाना बहुत ही जरूरी हैं। आज जब प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए मोदी की छटपटाहट लगातार बढ़ रही है, मोदी को इन सवालों से दो-चार होना ही पड़ेगा कि वह स्वाधीनता, समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय जैसे आधारभूत सामाजिक मूल्यों में विश्वास करते हैं या नहीं? वस्तुतः उनके वैचारिक राजनैतिक पूर्वज, संघ परिवार के दार्शनिक और मार्गदर्शक वीडी सावरकर ने मनुस्मृति को ही नियमों और कानूनों का आधार माना था। जैसा कि खुद सावरकर ने अपनी एक पुस्तक के अध्याय ‘मनुस्मृति और महिलाएं’ में लिखा है ‘मनुस्मृति वह ग्रंथ है जो वेदों के पश्चात हमारे हिंदू राष्ट्र के लिए अत्यंत पूजनीय है तथा प्राचीनकाल से हमारी संस्कृति, आचार, विचार और व्यवहार की आधारशिला बन गया है। यह ग्रंथ सदियों से हमारे राष्ट्र के एहिक एंव पारलौकिक यात्रा का नियमन करता आया है। आज भी करोड़ों हिंदू जिन नियमों के अनुसार जीवन-यापन तथा व्यवहार-आचरण कर रहे हैं, वे नियम तत्वतः मनुस्मृति पर ही आधारित है। आज भी मनुस्मृति हिंदू नियम है’ (सावरकार समग्र, खंड 4 पृष्ठ संख्या 415)
बहरहाल,हम सभी इससे वाकिफ हैं कि मनुस्मृति में शुद्रों और महिलाओं के लिए क्या प्रावधान हैं। मनुस्मृति में कहा गया है कि यदि शुद्र किसी ब्राह्मण को धर्मोपदेश देने का दुस्साहस करे तो राजा को उसके कान और मुंह में गरम तेल डाल देना चाहिए (आठ/272 मनुस्मृति)। यह तो मात्र एक नमूना मात्र है जिसे मोदी के वैचारिक प्रतिनिधि और संघ के स्वयंसेवक कानून का आधार मानते हैं। आज मोदी अपनी सभाओं में खुद को चाय वाला या पिछड़ा कह कर वोट मांग रहे हैं, और पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से वे खुद को राजनीतिक अछूत बता कर वोटरों से वोट मांग रहे हैं, क्या मोदी को पता भी है कि मनुस्मृति के अनुसार शुद्रों के साथ क्या व्यवहार किया जाता है?
एक बात और, मोदी लगातार राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रवाद की बातें करते हैं। अपनी सभाओं में तिरंगे के खातिर जान देने की बातें तक करते हैं। परंतु, जिस राजनीतिक धारा से मोदी आते हैं उसका इतिहास इन सारी धारणाओं के एकदम ही विपरीत रहा है। संघ परिवार के बहुत सारे लोगों का मानना था कि आजादी के बाद भारत का विलय नेपाल में हो जाना चाहिए, क्योंकि नेपाल दुनिया का एक मात्र हिंदू राष्ट्र है। खुद सावरकर ने नेपाल नरेश को स्वतंत्र भारत का ‘भावी सम्राट’ घोषित किया था(एएस भिंडे-विनायक दामोदर सावरकर, व्हीर्लस विंड प्रोपोगेंडा 1940, पृष्ठ संख्या 24)। मोदी जिस तिरंगे को भारत की शान कहते हैं उस तिरंगे को संघ परिवार ने कभी स्वीकार ही नहीं किया। आजादी के पहले तो संघ के स्वयंसेवकों ने तिरंगे को कई बार फाड़ा और जलाया भी था। जाने माने समाजवादी नेता एनजी गोरे 1938 में घटित ऐसी ही शर्मनाक घटना के गवाह रहे हैं जब हिंदुत्ववादियों ने तिरंगे को फाड़ा और जलाया था। क्या मोदी जैसे कथित राष्ट्रवादी को ऐसी घटनाओं पर दुख नहीं पहुंचता है? क्या संघ के इस शर्मनाक कृत्य के लिए मोदी को माफी नहीं मांगनी चाहिए?

अनिल यादव
अनिल यादव

गुजरात में मोदी के ही शासन में इतना बड़ा जनसंहार हुआ जिसमें मुसलमानों को जानवरों की तरह मारा और काटा गया। परंतु चुनाव आते ही मोदी धर्मनिरपेक्ष हो गए। अभी हाल ही में अहमदाबाद में साबरमती के पास ‘बिजनेस विद हारमोनी’ नाम के एक मुस्लिम बिजनेस कांक्लेव का उद्घाटन करते हुए मोदी ने कहा कि समाज के विकास के लिए एकता जरूरी है और हिंदू तथा मुस्लिम विकास की गाड़ी के पहिए हैं। खुद मोदी और संघ परिवार का कृत्य और विचार इस बयान के हमेशा विपरीत रहा है। हिंदु राष्ट्र में मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक ही माना गया। जिस तरह से मुस्लिम शासकों ने शासित हिंदुओं की रक्षा के लिए जजिया कर का प्रावधान किया ठीक उसी तर्ज पर संघी विचारधरा में, मुस्लिम आबादी को हिंदु राष्ट्र में उसके द्वारा दिए गए कर पर ही सुविधा मुहैया करवाने का प्रावधान है। आज भी मोदी के साथी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हिंदू युवा वाहिनी के नेता योगी आदित्यनाथ खुले मंच से ऐसी ही बातें करते हैं। वस्तुतः मोदी आज दो राहे पर खड़े हैं जहां एक रास्ता सावरकर के दर्शन पर आधारित राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ का है तो दूसरा पीएम की कुर्सी का।
खैर मोदी ने इतिहास की जानकारी के लिए विष्णु पांड्या और रिजवान कादरी को अपना सिपहसालार बनाया है। मोदी को चाहिए कि वे संघ के इन काले कारनामों को जानें और संघ से अपना नाता तोड़ लें। तभी पीएम की कुर्सी वाला रास्ता उनके लिए आसान होगा, नही तो संघ से नाता नहीं तोड़ने वाले आडवाणी की तरह पीएम का उनका टिकट भी कभी कंफर्म नहीं हो पाएगा।
अनिल यादव इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र हैं और समसामयिक विषयों पर लगातार लिखते रहते हैं। उनसे मो. 09454292339 पर संपर्क किया जा सकता है।

1 thought on “मोदी जिस तिरंगे को भारत की शान कहते हैं उस तिरंगे को संघ परिवार ने कभी स्वीकार ही नहीं किया”

  1. ye shriman anil yadav ji sang ki a,b,c,d nai jante lakin apna gyan free me distribute ker rahe h ,nehru ji ne sang ko 26 jan ki parade me shamee ku kiya ? rahi baat roits ki to bharat k kon se city me roits nahi hua ? janha 100% population muslim h vanha kya shanti h ? hume or modi ko aisee khursee nahi chahiya janha rastrwad nahi ho ,

Comments are closed.

error: Content is protected !!