एक तत्काल टिकट मुझे भी चाहिए

शिव शंकर गोयल
शिव शंकर गोयल

वो क्या है कि एक तत्काल टिकट मुझे भी चाहिए था. किसी के कहने पर पहले मैं रेलवे स्टेशन के पास स्थित एक ट्रैवलिंग एजेन्सी के यहां चला गया. वहां मुझे बताया गया कि टिकट के अलावा तत्काल शुल्क के ढ़ाई सौ की बजाय 500 रू. और देने होंगे. मैंने मन में सोचा केजरीवाल के जाते ही फिर वही घोड़े वही मैदान वापस हो गया लगता है. फिर उस एजेंट ने मुझसे पूछा कि आपको जाना कहां है ? मैंने उसे बताया कि मुझे तो संसद में जाना है तो वह सूनी सूनी आंखों से मुझे घूरने लगा और बोला कि वह टिकट यहां नहीं मिलता आप किसी राजनीतिक पार्टी के पास जाएं। इस पर मैं सलाह लेने एक जानकार के पास गया. उन्होंने बताया कि तत्काल टिकट तो कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही देती रहती हैं. उदाहरण के लिए उन्होंने कहा कि एक बार ऐक्टर गोविन्दा को कांग्रेस ने मुंबई से तो धर्मेन्द्र को बीजेपी ने बीकानेर से तत्काल टिकट दिया था ताकि उनकी प्रसिद्धि को भुना सकें. इतना ही नहीं राम जाने क्यों कुछ दिनों पूर्व अंबानी कं. के नाथानी को बीजेपी ने झारखंड से राज्यसभा का तत्काल टिकट दिया. बिहार में तो पूरा एक दल का दल ही तत्काल टिकट लेने बीजेपी के पास आ गया. कहने लगे कांग्रेस की खिड़की वाले नहीं दे रहे तो आपके पास आए हैं, अब आप ही उद्धार करो. इस पर किसी ने दोनों पर टिप्पणी की ‘उन्हें कोई और नहीं, इन्हें कौई ठौर नहीं।
आगे उन्होंने सुझाव दिया कि खुदानखास्ता अगर आपको यह दोनों पार्टियां टिकट न देवें तो आप मफलर लपेट कर आप पार्टी का टिकट लेने की कोशिश करें. मेरे द्वारा जिज्ञासा दिखाने पर कि मफलर से क्या मकसद हासिल होगा उन्होंने लिबास की महत्ता को लेकर तात्कालिक राजनीति पर काका हाथरसी की निम्न तुकबंदी सुना दी:-
कुर्ता पगड़ी अंगरखा, थे प्राचीन लिबास. ब्रिटिश राज में हुए हम कोट-पेंट के दास,
कोट-पेंट के दास, चली गांधी की आंधी. गांधी टोपी के बल पर ले ली आजादी।
कह काका कविराय, जब नेहरू युग आया, पहन जाकिट अपना व्यक्तिव बनाया,
बागडोर जब आ गई, शास्त्रीजी के हाथ, चतुर चंद्र जी ने कहा, चलो समय के साथ,
चलो समय के साथ बात छोडिय़े हमारी, बड़े बड़े साहब बन बैठे धोतीधारी।
कह काका रहे इंदिरा शासन जब तक, क्या पहने तब तक, समझ न पाए अब तक।
मजे की बात देखिए फिर जब राजीव गांधी आए तो छुटभैयों ने शॉल ओढऩा शुरू कर दिया. आलम यह कि भरी गर्मी में भी शॉल ओढ़े ओढ़े फिरते थे. यही लोग थे जो विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय ठेठ गर्मी में कश्मीरी टोपी लगाने लगे और फिर तो एक सिलसिला ही चल निकला. कभी इन्द्र कुमार गुजराल की तरह फ्रेंचकट दाढ़ी तो कभी चन्द्रशेखर की तरह खिचड़ी दाढ़ी रखने लगे। और मौका आया तो चौधरी चरणसिंह या अटलजी की तरह धोती पहनने लगे। जैसा देश वैसा भेष.
यह सब बता कर उन जानकार ने फिर कहा कि आप से तत्काल टिकट लेना हो तो एक सफेद टोपी एवं एक मफलर ले आओ, बाजार में तरह तरह के मफलर मिलने लगे हैं। आपका पूरा लुक बदल जाएगा। मैंने तत्काल बुद्धिमतापूर्ण कदम उठाया और एक मफलर खरीद लाया, लेकिन अब समस्या यह आई कि इसे लपेटूं कैसे? क्योंकि एक बार जब केजरीवाल ने इसे बांयी तरफ से लपेट लिया था तो मीडिया के कुछ हल्कों ने आसमान सिर पर उठा लिया कि यह तो योगेन्द्र यादव के कहे में चलते हैं, वामपंथ की राजनीति करते हैं. यह सुनते ही बीजेपी वालों ने आसमान सिर पर उठा लिया. उन्होंने मफलर पर 30 सवाल उठाने की सोची. इनके समर्थक तरह तरह की टिप्पणियां करने लगे. एक बानगी देखिए।
बहरहाल कि बीजेपी का उद्धेश्य यही था कि किसी तरह केजरीवाल मफलर उतार दें। उधर कांग्रेस वाले भी अपनी धूल झाड़ कर उठने की कोशिश में थे. उन्होंने भी मफलर को लेकर शोरगुल मचाने की कोशिश की. उनका तर्क था कि हमने ही तो इसको मफलर लपेटवाया, वरना और भी ज्यादा खांसता। अब यह हमें ही मफलर में लपेटने लगा. आज उसकी जांच, कल उसकी जांच, अरे भाई, इतने साल राज किया है कुछ तो करते ही. भ्रष्टाचार के लिए तो एक बार नेहरूजी ने भी कह दिया था कि देश का पैसा देश में ही तो है. हम आप की पोल खोलेंगे। जब दोनों ही पार्टियों ने काम नहीं करने दिया तो केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। लेकिन उनके मफलर का रुतबा अब भी बरकरार हैं. लोग तरह तरह के मफलर लपेट कर उनके पास पहुंच रहे हैं. उन्हें केन्द्र सरकार के इस फैसले से भी प्रोत्साहन मिला है, जिसमें कहा गया है कि जब तक टिकट नहीं मिलेगा, ट्रेन ही नहीं चलेगी.
यही सोच कर मैं भी हुलसा हुलसा आप के कार्यालय पहुंचा. प्रचार के लिए मैंने मीडिया के कुछ लोगों को साथ ले लिया और खूब प्रचार करवाया कि मैं अब आप पार्टी में शामिल हो गया हूं. मैंने कुछ व्यक्तियों के साइन करवा कर लोकसभा के लिए एक तत्काल टिकट की मांग रख दी है. हालांकि यह अंदर की बात है लेकिन आपसे क्या छिपाना मेरी बात नहीं मानी गई तो मैं आप से इस्तीफा दे दूंगा. इसके लिए मीडिया के एक हिस्से ने मुझे भरोसा दिया है कि इस इस्तीफे का प्रचार हम कई गुणा बढ़ा चढ़ा कर करेंगे कि आप पार्टी में बहुत असंतोष है. क्या आप कहीं से मुझे एक तत्काल टिकट दिलवा देंगे?
-शिव शंकर गोयल

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