चुनाव यात्रा : दलों का हिसाब-किताब और हताशा

गौरव अवस्थी
गौरव अवस्थी

वह पंजाब मेल थी। हावड़ा से अमृतसर तक जाने वाली। इस पर रायबरेली से सवार हुआ। यात्रा छोटी और थकान बड़ी थी। सो, बर्थ पर सो गया। नीचे यूपी और पंजाब के यात्री  सोचते और देखते यात्रा पूरी कर रहे थे। नींद टूटी और स्टेशन जानने के लिए उठकर बैठा। तभी दाढ़ी  वाले सरदार जी ने यूपी के हाल समझने के लिए बाबू साहब से चर्चा शुरू कर दी।  उस छोटी  सी चर्चा में ही सभी के अपने-अपने दल-तर्क-दर्द उभरे। सरदार जी के सवाल-इत्थे कोण है मतलब किसका जोर है। जवाब में दो यात्री एक साथ बोले-यहाँ तो मोदी ही हैं। ऐसा लगा  एक साथ ही हों लेकिन पूरी बातचीत में अंदाज हो गया कि वे एक ट्रैन के मुसाफिर ही थे  साथी नहीं।  अकाली-बीजेपी से ऊबे सरदार जी और उनके दूसरे साथी सा  गया और कई उदहारण के साथ पंजाब का हाल क्या सुनाया फैसला दे दिया-” हमारे पंजाब में तो इस बार कांग्रेस है। अकाली ने जीणा मुहाल कर दिया। हाथ के इशारे के साथ  लगे -कविन्द्रगढ़ में लोहे की  सबसे ज्यादा फैक्ट्रियां हैं। सबकी सब बंद। एक ब्रेड फैक्ट्री में अकाली का मंत्री पहुंचा। लेबर से पूछा रोज कितनी ब्रेड बनती है। उसने बताया ६ लाख पैकेट। सीधे बता दिया गया कि 8 रुपये वाली ब्रेड 12 में बेचो और 4 रुपये उधर भेजो। अंधेर हो गई। अबकी कान्ग्रेस आएगी हमारे पंजाब में। कहीं-कहीं केजरीवाल भी है। उसे भी मिलेंगी दो-एक सीटें।

   यूपी वाले सज्जन कांग्रेस-केजरी दोनों से चिढ़े थे शायद। सरदार जी के तर्कों का जोरदार विरोध किया। पता नहीं कैसे आप लोग कांग्रेस-केजरी की बात कर रहे हो। कांग्रेस ने बर्बाद कर दिया। महगाई देख रहे हैं। बताइये किसकी दें हैं। साथी यात्री ने कुछ  घोटाले गिनाने शुरू  कर दिए। काला धन स्विस बैंक से कांग्रेस क्यों वापस नहीं ला पाई।  केजरी के किस्से भी चर्चा का हिस्सा बने-” अरे साहब, वह ( कुछ अभद्र शब्द ) है.. उसकी बात करते हैं।  एनजीओ को कहाँ-कहाँ से पैसा मिला क्यों नहीं बताया। पाकिस्तान के पैसे पर चुनाव लड़ रहे हैं। 49 दिन में सरकार छोड़ कर क्यों भागे। जो कहा था उसे करके तो दिखाते…. आदि-आदि। एक दूसरे यात्री भी चर्चा यात्रा में कूद पड़े। लगे कांग्रेस-आम आदमी पार्टी कि बखिया उधेड़ने।
    सरदार के साथी भी जैसे केजरी के भक्त थे या अकाली से ऊबे। कहने लगे एक बात कहूं बुरा ना मानियेगा मोदी-वोदी नहीं केजरी को चांस मिल जाये ना तो वह काला धन वापस ले आएगा। उनकी इस बात पर दोनों झपटे। वह क्या लाएगा। वह तो अन्ना को धोखा देकर  नेता बना है। बादल के दुबारा सरकार बनाने का तर्क भी आया। सरदार यात्री ने कहा- ओ मुकद्दर का तेज रहा नई तो सरकार कहाँ बनती।  इस चर्चा में एक बात जो सामने आयी वह यह कि पंजाब में बीजेपी-अकाली मुश्किल में हैं और यूपी का मिजाज मोदी के साथ है।
 मुसाफिरों के अपने-अपने तर्कों, दलों , नेताओं की बात करते-करते चुनाव चर्चा अचानक हताशा पर आ गयी। दोनों ही तरफ के सहयात्री लगभग इस बात से सहमत दिखने लगे कि मरना तो सामान्य आदमी को ही है। मोदी समर्थक  थके अंदाज में कह ही गए कि चाहे जिसकी सरकार बने बस दुबारा चुनाव की नौबत ना आये। आख़िरकार इसका बोझ पड़ना तो हम और आप पर ही है। हताशा-निराशा के बीच ही ट्रैन एक झटका खाकर रुकी। चर्चा एक्सप्रेस छोड़ मुसाफिरों का ध्यान -ट्रैन कहाँ आ गयी पर टिक गया।  लखनऊ स्टेशन पता चलते ही चर्चा ने वैसे ही विराम ले लिया जैसे बीच में बिजली चले जाने पर टीवी पर किसी फ़िल्म का बंद हो जाना।
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