वही अर्जुन वही बाण….

सीन – वन 
गौरव अवस्थी
गौरव अवस्थी

चुनावी महाभारत छिड़ चुका है। कौरव-पांडव से अलग होकर भी कई सेनाएं युद्ध मैदान में डटी हैं। कुछ अनुभवी हैं और कुछ बिलकुल कच्ची। मगर युद्ध जीत लेने का भरोसा सभी खेमों को है। देश-काल-परिस्थितयों के अनुरूप सभी सेनाओं के सेनापति कभी पगड़ी लगाकर दूसरे कि पगड़ी उछालते हैं और कभी बिना पगड़ी के। इसलिए कि कहीं अपनी ना उछल जाये। दाढ़ी लगाये-फूल खिलाये सेनापति हाथ चलाते नहीं हाथ हिलाते मैदान में अवतरित हुए और शब्दों के बाण छोड़े – भाइयों और बहनो दस साल में पांडवों ( अपने हिसाब से आप चाहे तो कौरव भी पढ़ सकते हैं ) ने आपको क्या दिया? आपके जीवन में बदलाव आया। समस्याएं ख़त्म हुईं। आपके इलाके का कोई विकास हुआ। इन्ही सवालों के बीच एक आवाज यह भी-” जरा जोर से बताइये-बोलिये। भाइयों-बहनो, यह वो ही हैं जो पतंग उड़ने नहीं देते। बरेली का मांझा ढीला कर दिया है। शेर भेजो तो लकड़बग्घे की आवाज में गलियां देते हैं। शेर को जंगल ( गुजरात ) छोड़ शहर में आने को मजबूर किसने किया … बोलो, बोलो … जरा जोर से बोलो भाइयों-बहनो।

युद्ध के अलग मैदान में दूसरी सेना के एक नौजवान सेनापति का आना होने वाला है। सैनिक ( कार्यकर्त्ता) धूप में तप रहे हैं। सैनिकों का काम ही इतना भर है कि सेनापति आये, बताये तो वह सामने वाली फ़ौज पर पिल पड़े। खैर, इंतजार ख़त्म हुआ … सेनापति ने आते ही प्रत्यंचा खीची और कमान ( माइक ) चढ़ाई और एक-एक कर बाण छोड़ने शुरू किये-भैया, आप जानते हैं राज्य में कितना भाई-चारा है। पर वो नफरत के वार करते हैं। राज्य बाँटना चाहते हैं। यह आ गए तो कभी जायेंगे नहीं। जीने नहीं देंगे। सरे घोटाले खुद करेंगे। दूसरी सेना में रहते हुए भी भाई ( वरुण ) भाईचारा मानता है पर माँ ही भाईचारा नहीं मानने देती। यही सद्गुण होते तो काहे महाभारत होता।
यह लीजिये कौरव-पांडव के नए-नए चचेरे भाई सर पर सफ़ेद टोपी ” मैं खाम-खा आदमी ” सिद्ध करते हुए युद्ध मैदान में बिना हेलमेट के कूद पड़े। मैं बताने आया हूँ कौरव-पांडव ने मेरे लिए कुछ नहीं छोड़ा। अदानी-खदानी-सूडानी सब अपनी जेब में रखे हैं। यह भी कोई न्याय होता है। अपने या अपनों को जब-तक कुछ दिल नहीं दूंगा तब-तक पीछा नहीं छोडूंगा। मेरे पास वह अस्त्र ( झाड़ू ) है कि अगर ना लगे तो सब गन्दा रहता है। मेरे लगने पर सारी गंदगी मैं हजम कर लेता हूँ। गंदगी को अपने पास रखने वाला बड़ा या गंदगी करने वाला… आप ही बताओ …
सीन – टू  

चुनावी महाभारत के पितामह भीष्म ( प्यारे मोहन जी ) घर की शैया पर विश्राम पर हैं। दस साल बहुत काम करना पड़ा। देश की सेवा की। अर्थववस्था को सुधारें में कितनी मेहनत करनी पड़ी। पिछले राजा ( कल बिहारी )  ने राज-पाट डुबो दिया था ना! परिवार भी देखने में जब-कब पसीना बहा। इसलिए युद्ध में जाने का अब साहस नहीं बचा। कुछ आराम भी तो चाहिए। अपने संजय ( इलेक्टॉनिक मीडिया ) की मदद से युद्ध का आँखों देखा हाल देख सुन लेते हैं। अचानक पितामह की नींद उचट गई। ” संजय ” को रिमोट से ऑन किया युद्ध का हाल-चाल लेने के लिए। बहुत दिनों बाद रिमोट हाथ में आया है। अंदर तक ख़ुशी की लहर उठी।  बुदबुदाए- अरे वाह ! एक छोटे सा अस्त्र  इतने काम का। मुकद्दर के मारे अभी तक खुद मशीन थे। रिमोट दूसरा दबाता था और चलने खुद लगते थे। पितामह अब संतुष्ट हैं कि चलो छोटे बक्से का ही सही रिमोट तो हाथ आया। रिमोट का “सुख” तो अलग ही है। हे! कृष्ण यह ज्ञान पहले क्यों नहीं दिया। पहले आँख खोल देते भगवन कभी मशीन बनने के लिए हामी ना भरता। रिमोट ही ” हाथ” में रखता भले उससे देश चलता ना चलता। प्यारे मोहन जी पछताते हुए संजय से युद्ध का हाल जानने लगते हैं….

सीन – थ्री  
दीवार पर फ्लैट टंगे “संजय जी” के स्क्रीन पर ” चैनल कंफ्यूज ” के दृश्य दिख रहे हैं। प्यारे मोहन जी ने एक बड़ी जमुहाई के साथ आँख मचली। गौर से संजय की तरफ टकटकी लगाकर देखने लगे। काफी देर हो गयी। कुछ भी नया ना पाकर दूसरे संजय को रिमोट से इशारा किया। यह चैनल टन था। धड़ाधड़ कई संजय खोले-बंद किये। सबमे वही सब जो एक-डेढ़ महीने के सीन थे , वाही पुराने बोल थे। पितामह कुछ निराश हुए और बुदबुदाये-क्या यार कहीं युद्ध में भी ऐसा होता है। कुछ तो अस्त्र-शस्त्र बदले होते।  वहि अर्जुन… वहि बाण.…यह भी कोई बात है। ऐसे महाभारत की तो हमने कल्पना नहीं की थी ना इतने हलके बीज बोये थे। हाईब्रिड वाले थे फिर काहे इतना नीरस और बोगस युद्ध लड़ा जा रहा है मेरी तो सारी कसरत ही बेकार कर दी।  संजय बंद करो यह सब देखना-दिखाना और झल्लाते हुए प्यारे मोहन ने रिमोट का लाल वाला बटन ऑफ कर दिया …
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