आइए, सारे सांसद सम्पूर्ण सैनिटेशन का अभियान चलाएं

adwani blogसन् 2013 मे योजना आयोग ने राष्ट्रव्यापी सम्पूर्ण सैनिटेशन अभियान का आकलन अध्ययन किया था। इस अध्ययन में 27 राज्यों के 11519 घरों का सर्वेक्षण किया गया था यानी यह एक विस्तृत सर्वेक्षण था। इस अध्ययन का सर्वाधिक सदमा पहुंचाने वाला एक निष्कर्ष यह है कि सभी ग्रामीण परिवारों का72.63 प्रतिशत हिस्सा अभी भी ‘खुले में परिवार शौच‘ करता है – इसका अर्थ यह है कि वे झाड़ियों, रेलवे ट्रैक या जहां उन्हें सुविधाजनक हो, वहां शौच करने को बाध्य होते हैं।

हिन्डॉल सेनगुप्ता की पुस्तक जिसके आधार पर मैंने अपना पिछला ब्लॉग लिखा था, की टिप्पणी हैं: इससे क्या फर्क पड़ता है कि लोग खुले आसमान के नीचे पक्षियों के चीं-चीं सुनने के बजाय शौचालय में बैठते हैं? यह सर्वेक्षण इसका उत्तर देता है। ऐसा दिखता है यदि एक ग्राम पंचायत को निर्मल ग्राम पंचायत का दर्जा मिलता है या एक स्थान जहां कोई भी खुले में शौच नहीं जाता, वहां पर परिवारों में बीमारी 0.26 से 0.17 या 35 प्रतिशत कम हुई है। और88 प्रतिशत ऐसे परिवारों ने सर्वेक्षणकर्ताओं को बताया कि उनका ‘सामान्य स्वास्थ्य‘ सुधरा है और 96 प्रतिशत ने कहा कि उनके परिवारों में महिलाएं ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं।

इन दिनों गांधीनगर और अन्य स्थानों पर हम सांसद प्रत्येक परिवार हेतु शौचालय सुनिश्चित करने के अभियान में लगे हैं ताकि ‘खुले में शौच‘ से मुक्ति मिले। हिन्डॉल सेनगुप्ता की पुस्तक कहती है कि पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के मुताबिक मात्र आधे भारतीय ही शौच जाने के बाद अपने हाथ साबुन से साफ करते हैं।

 

सेनगुप्ता आगे जोड़ते हैं -इसलिए कुपोषण से लड़ने में खाद्य सुरक्षा विधेयक की तुलना में शौचालय की समस्या ज्यादा समय लगाएगा। इसे यदि संक्षेप में कहना हो तो-दस्त से मृत्यु।

क्या आप जानते हैं कि कितने भारतीय बच्चे कम वजन और कुपोषण के शिकार हैं? वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन कहता है पांच वर्ष से कम के शिशुओं में कुपोषण का एक मुख्य कारण है दस्त।

यूनिसेफ, भारत के अनुसार शौचलय जाने के बाद यदि साबुन से हाथ धोना ही हो जाए तो भारत में दस्त से होने वाली मौतें 40 प्रतिशत कम हो सकती हैं। वर्तमान में, दुनिया में दस्त से मरने वाले प्रत्येक चार बच्चों में से एक (लगभग8,00,00 प्रति वर्ष) भारत का होता है। इस प्रकार दुनिया भर में दस्त से मरने वाले सभी बच्चों का 25 प्रतिशत मात्र एक देश का होता हैं।

और भारत में दस्त से ग्रस्त कितने बच्चे साबुन से हाथ धोते हैं? केवल 20प्रतिशत शेष अपने हाथ साबुन से नहीं धोते-यह एक चीज आसानी  से उन्हें जीवित रख सकती है।

टेलपीस (पश्च्यलेख)

 

सेदंशवाहकों की हत्या

सन् 2013 के पहले 6 महीने में, भारत पत्रकारों के लिए विश्व में सर्वाधिक खतरनाक स्थान बन गया।पहले स्थान पर सीरिया था जो बशहार-अल-असद के सरकारी बलों तथा विद्रोहियों के बीच छिड़े भीषण गृहयुध्द में फंसा है। लंदन स्थित इंटरनेशनल न्यूज सेफ्टी इंस्टीटयूट के मुताबिक इस अवधि में सीरिया में आठ पत्रकार मारे गए जबकि भारत में 6।

देखें यह कैसे और क्यों मारे गए?

छत्तीसगढ़ के एक पत्रकार नेमीचन्द जैन का गला रेंता गया और उसके पास एक‘नोट‘ पड़ा था। जिसमें उन्हें पुलिस का मुखबिर करार दिया गया था। एक बंगला समाचार पत्र के तीन कर्मचारी-एक प्रूफ रीडर, समाचार पत्र मैनेजर और एक ड्राइवर की हत्या की गई। बाद में समाचार पत्र के सम्पादक ने बताया कि दरअसल वह निशाने पर थे और उनके बदले यह लोग मारे गए।

दो अन्य पत्रकार दुर्घटना में मारे गए

यदि हम बाद के दो को छोड़ भी दें, तो शेष चार मामलों मेें समाचार पत्रों में काम करने वाले सीधे तौर पर लक्षित कर मारे गए। यह भारत को सोमालिया के समकक्ष खड़ा करता है जहां उसी अवधि में चार पत्रकार मारे गए और पाकिस्तान से एक स्थान नीचे, जहां पांच पत्रकार मारे गए। यह पहला मौका नहीं है जब भारत पत्रकारों के लिए एक खराब स्थान सिध्द हुआ है। सन् 2010 में हम ऐसे शीर्ष पांच देशों में एक थे।  1977 में मोरारजी देसाई की सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में मैंने अपने मंत्रालय में एक पूर्व सचिव की अध्यक्षता में एक विशेष समिति नियुक्त की जिसका काम प्रेस सेंसरशिप की आड़ में मीडिया पर की गई ज्यादतियों के बारे में एक श्वेतपत्र तैयार करना था। समिति ने रिकार्ड समय में अपना काम पूरा किया और मैं अगस्त, 1977 में श्वेतपत्र संसद में रख सका। तथ्य सबको चौंकाने वाले थे।

आपातकाल के दौरान 253 पत्रकार पकड़े गये। इनमें से110 मीसा के तहत, 110 डा. आई. आर. और 33 अन्य कानूनों के तहत। बीबीसी के सर्वाधिक लोकप्रिय पत्रकार मार्क टुली सहित 29 विदेशी पत्रकारों का भारत में प्रवेश प्रतिबंधित था। सरकार ने 51  विदेशी पत्रकारों की मान्यता समाप्त कर दी थी और उनमें से सात को निष्कासित कर दिया था।

लालकृष्ण आडवाणी

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