-डा. लक्ष्मीनारायण वैष्णव- सनातन धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म बतलाया गया है सनातन और सत्य के साथ ही लोक परलोक के साथ स्वास्थ्य और वैज्ञानिक रहस्यों से भरा पडा है। जिन रहस्यों को वैज्ञानिक आज भी सुलझाने से कोसों दूर दिखलायी देते हैं उनको कडोरों बर्ष पूर्व ही हमारे ऋषि मुनियों ने समझ लिया था। जिसको पूरी प्रमाणिकता के साथ रखते हुये उसके वैज्ञानिक और धार्मिक रहस्यों को उजागर करते हुये लाभ-और हानि से परिचित करा दिया था। सनातन धर्म के शास्त्रों में वर्णित पुजन पद्धति की ओर नजर डालें तो आप पायेंगे कि यह पूर्णत: विज्ञान पर आधारित है। इसमें एक विशेष चीज का रहस्य से हम आपको परिचित कराने का प्रयास कर रहे हैं वह है ”पंचगव्यÓÓ जिसको लेकर आयुर्वेद में भी वर्णन किया गया है। हजारों बीमारियों से लडने की शक्ति को उत्पन्न मनुष्य के शरीर करने के साथ रोगों के कीटाणुओं का दमन करने की विशेष क्षमता इसमें बतलायी गयी है। गाय के मूत्र,गौबर,दूध,दही और घी को निश्चित मात्रा में मिलाकर तैयार किये जाने वाले ”पंचगव्यÓÓ का सेवन शायद ही एैसा कोई धार्मिक अनुष्ठान हो जिसमें प्रयोग न किया जाता हो? सनातन धर्म के लगभग प्रत्येक संस्कार -पूजन,यज्ञादि कर्म इसके बिना पूरे नहीं किये जाते। प्राचीन काल से ही प्रसव के बाद हुये सूतक दोष को समाप्त करने के लिये स्त्री को पंचगव्य के सेवन कराने की परंपरा है। वहीं दूसरी ओर किसी ब्रम्हचारी एवं साधू,संत का व्रत लेने के पूर्व किये जाने वाले उपनयन संस्कार की बात करें या फिर यज्ञोपवित धारण करने की या फिर विवाह संस्कार की सभी में इसका प्रयोग अनिवार्य बतलाया गया है। इसके बिना यह पूर्ण नहीं माने जाते हैं । हवन पूजन के पश्चात् पंचामृत का वितरण करना एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है जिसमें मुख्य घटक के रूप में गाय का घी,दूध,दही को मिलाया जाता है। इसके महत्व की ओर अगर दृष्टि डालें तो स्कन्द पुराण में वर्णित एक श£ोक के भवार्थ के अनुसार गौ मूत्र,गौबर एवं गाय की पूंछ में भूत,प्रेत ,टोना ,टोटका एवं नजर लगने के प्रभाव को खत्म करने की अदभुत क्षमता है। योगीराज भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा जब राक्षसी पूतना का वध किया गया तो माता यशोदा ने कन्हैया को अपने गोद में उठाकर लाकर गाय की पुंछ को चारों ओर घुमाया एवं गाय के मूत्र एवं गौबर से स्नान कराया था। धार्मिक ग्रन्थों के साथ ही आयुर्वेद में वर्णित गाय की महत्ता पर नजर डालें तो वन में विचरण कर चरने वाली गाय के दूध,दही,गौबर,मूत्र और घी ‘यादा प्रभावशाली होते हैं।
कैसे होता है निर्माण-धार्मिक ग्रन्थों में दिये गये विधानों के अनुसार एक ताम्र पात्र में गाय का घी एक भाग ,दही दो भाग,दूध तीन भाग गोमय आधा भाग एवं गौ मूत्र और कुशोदक एक भाग लेकर एक साथ मिलाने से ”पंचगव्यÓÓ तैयार किया जाता है।
क्या होता है प्रभाव-आयुर्वेद में वर्णित महिमा के अनुसार ”पंचगव्यÓÓ के सेवन से कैसा ही बिष क्यों न हो इसमें डाल देने से मात्र तीन दिवस में जहर का प्रभाव समाप्त हो जाता है। शरीर के मोटापा को हटाने के साथ ही टी बी की बीमारी को भी नष्ट्र करने की क्षमता है। यह पेट की अग्रि को उष्ण करने वाला यानि पाचक,एवं तीनो दोषों की विकृति को समाप्त करने वाला है। वैज्ञानिक एवं चिकित्सा शास्त्र की दृष्टि से देखें तो इसमें प्रोटीन,कार्बोनिक एसिड,फास्फेट,पोटाश,लवण,यूरिक एसिड,यूरिया एवं लेक्टोज जैसे रसानिक तत्वों की उपस्थिति रहती है। गौ मूत्र में ही अकेले मुख,चर्म,उदर,गुदा स्नायु,नेत्र,अस्थि एवं कर्ण की व्याधियों को समाप्त करने की अद्भुत क्षमता है।
महत्च को गषियों ने पहचाना-अनादिकाल से ही चली आ रही उक्त परंपरा के बारे मेें हमारे ऋषियों ने इसकी महत्वता को पहचान लिया था। इसकी उपयोगिता को दृष्ट्रिगत रखते हुये भारी मात्रा इसका उत्पादन किया जाता था। कहने का अभिप्राय है कि गौ पालन पर विशेष ध्यान दिया जाता था। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार महाराज युधिष्ठर के पास उस समय आठ करोड गायें वह भी विभिन्न प्रकार की नस्लों की थी। इस समय गौ सम्पदा को विशेष महत्व दिया जाता था। गाय दान देना और लेना सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण कार्य माना गया है। प्राचीन समय में परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं को दैनिक रूप की क्रिया कलापों में सम्मिलित किया गया था।